शौर्य गाथा: नक्सलियों से लड़ते हुए खेम सिंह ने किए थे प्राण न्योछावर

सीमा पर मां भारती की रक्षा करना हो या देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बने नक्सलियों के खिलाफ जंग। सेना व अर्ध-सैनिक बलों में तैनात सोहना क्षेत्र के जवानों ने हमेशा हर मोर्चे पर अदम्य साहस का परिचय दिया।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 06:34 PM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 06:42 PM (IST)
शौर्य गाथा: नक्सलियों से लड़ते हुए खेम सिंह ने किए थे प्राण न्योछावर
शौर्य गाथा: नक्सलियों से लड़ते हुए खेम सिंह ने किए थे प्राण न्योछावर

सतीश राघव, सोहना (गुरुग्राम)

सीमा पर मां भारती की रक्षा करना हो या देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बने नक्सलियों के खिलाफ जंग। सेना व अर्ध-सैनिक बलों में तैनात सोहना क्षेत्र के जवानों ने हमेशा हर मोर्चे पर अदम्य साहस का परिचय दिया। इसी सूची में भोंडसी निवासी जांबाज खेम सिंह का नाम सबसे ऊपर आता है। खेम सिंह ने कई नक्सलियों को मार गिराने के बाद प्राण न्योछावर कर दिए थे। गांव के लोग आज भी उनका नाम बड़े सम्मान से लेते हैं। गांव में उनकी प्रतिमा पर रोजाना पुष्प चढ़ाए जाते हैं। पिता को अंतिम विदाई देते वक्त खेम सिंह के नौ साल के बेटे हिम्मत सिंह ने प्रण किया था कि पिता की तरह वह भी देश सेवा करेंगे, जिसे पूरा भी कर दिया। इस समय हिम्मत सेना की ओर से जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं।

खेम सिंह सीआरपीएफ में 1989 में भर्ती हुए थे। उनकी 40वीं बटालियन में असम के हाफलांग के पास नक्सलियों के खिलाफ आपरेशन चला रहे थे। 22 जुलाई 2001 को बारूदी सुरंग बिछाकर नक्सलियों ने सीआरपीएफ की टुकड़ी पर हमला किया था। हमले में बुरी तरह घायल होने के बाद भी खेम सिंह व उनके साथी जवानों ने 12 नक्सली मार गिराए थे। लड़ते हुए ही खेम सिंह ने प्राण न्योछावर कर दिए थे। वीर जवान का पार्थिव शरीर गांव भोंडसी लाया गया था।

अंतिम यात्रा के दौरान गांव भारत माता की जय व खेम सिंह अमर रहे के नारों से गूंज रहा था। खेम सिंह के बेटे हिम्मत ने पिता को तो खो दिया था पर उनके चेहरे पर निराशा की जगह पिता की वीरता पर गर्व की चमक थी। बच्चे ने पिता को मुखाग्नि देते वक्त प्रण लिया था कि वह भी बड़े होकर वर्दी पहनेंगे। जुलाई 2016 में वह सेना में भर्ती हो गए। दो बार आतंकियों के खिलाफ हुई मुठभेड़ में वह अदम्य साहस भी दिखा चुके हैं।

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