लाकडाउन के एक साल: कोरोना काल में रसोईघर से जुड़ी नई पीढ़ी
कोरोना काल में लाकडाउन हुआ तो लोग घरों में सिमट कर रह गए और फिर एक दूसरे के साथ वक्त बांटने से लेकर घर के कामों में हाथ बंटाने का सिलसिला शुरू हुआ।
प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम
कोरोना काल में लाकडाउन हुआ तो लोग घरों में सिमट कर रह गए और फिर एक दूसरे के साथ वक्त बांटने से लेकर घर के कामों में हाथ बंटाने का सिलसिला शुरू हुआ। इसी बीच भावी पीढ़ी रसोई में प्रयोग करने को उत्सुक हुई। सफलता मिली तो हौसले बढ़े और फिर तैयार हो गए बाल शेफ। इटालियन से लेकर चाइनीज और उत्तर भारतीय से लेकर दक्षिण भारतीय व्यंजनों में अपना हुनर दिखाते-दिखाते रसोई के अन्य छोटे-मोटे काम कब सीख गए पता ही नहीं चला।
बच्चों को इन बदलाव से संतुष्टि तो होती ही है, साथ ही मांओं को जो आराम और मदद मिल रही है उसमें उन्हें भी तसल्ली मिल रही है। पहले किताबों और गैजेट्स में जुटे रहने वाले बच्चे अब रसोई में कड़छी भी चलाते हैं और जरूरत पड़ने पर बरतन और घर की सफाई में भी मां की मदद करते हैं। सेक्टर 51 निवासी अनामिका कहती हैं कि 12 वर्षीय बेटी और नौ वर्षीय बेटा जब रसोई में एक दूसरे की मदद करते हैं तो बिना खाए ही उनके व्यंजनों का स्वाद मन तक पहुंच जाता है। वे कहती हैं कि बच्चों को इस तरह काम करता देख मन भावुक हो उठता है।
सेक्टर 43 निवासी प्रतिभा सोनी का कहना है कि उनके बच्चों ने जीवन भर रसोई की व्यवस्था को जी भरकर देखा भी नहीं होगा लेकिन अब वे पूरा किचन अपने आप व्यवस्थित करते हैं। 14 वर्षीय आद्या कहती हैं कि उन्हें अब तक पता ही नहीं था कि किचन में इतना मजा आता है। अब वे रसोई में अपनी पसंदीदा डिश भी बनाती हैं और बर्तन भी साफ कर देती हैं।
शीतल का कहना है कि उनका बेटा जब रसोई में काम करता है तो उसमें भी वही परफेक्शन दिखाता है, जो कि पढ़ाई में दिखाता है। उसे काम करता देख तसल्ली होती है कि कोरोना काल में आए इस बदलाव में समाज का नजरिया बदलेगा और आने वाली पीढि़यों में रसोई केवल महिलाओं के लिए होती है, यह सोच बदलेगी।