शहर की फिजा : प्रियंका दुबे मेहता

प्रशासन की पुकार आ बैल मुझे मार एक तूफान से अभी उबरे नहीं हैं कि दूसरे के लिए आ

By JagranEdited By: Publish:Sat, 18 Sep 2021 06:56 PM (IST) Updated:Sat, 18 Sep 2021 06:56 PM (IST)
शहर की फिजा :   प्रियंका दुबे मेहता
शहर की फिजा : प्रियंका दुबे मेहता

प्रशासन की पुकार, आ बैल मुझे मार एक तूफान से अभी उबरे नहीं हैं कि दूसरे के लिए आ बैल मुझे मार की स्थिति का उदाहरण पेश कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं जिला प्रशासन की। अभी तक एक महामारी के जख्म भरे भी नहीं हैं और दूसरी घातक बीमारी के स्वागत के सभी इंतजाम पूरे हो गए हैं। सेक्टर नौ ए के जलमग्न प्लाटों को देखकर तो कम से कम यही लगता है। शनिवार तक डेंगू के 19 मामले आ गए हैं लेकिन प्रशासन स्थान-स्थान पर जमा पानी को लेकर निश्चिंत होकर बैठा है। खाली प्लाटों में भरे पानी को देखकर लगता है, मानो बाकायदा मच्छर पालन के लिए स्थान बनाया गया हो। बीमारियों से टूटे-संभलते लोग तो अब छाछ को भी फूंक-फूंक पीने की आदत डाल चुके हैं लेकिन जिला प्रशासन पर कोई असर नहीं दिख रहा। क्या जागरूकता अभियान और हिदायतें निवासियों के लिए ही हैं, प्रशासन पर वह लागू नहीं होतीं। साख डुबेते काल सेंटर फर्राटेदार अंग्रेजी, लहजा ऐसा कि चाहे अमरीकी हो या ब्रितानी या किसी और देश के नागरिक, किसी को अंदेशा तक नहीं होता कि फोन पर सामने से आ रही आवाज सात समंदर पार बैठे शख्स की है। भाषाई ज्ञान और लहजों पर पकड़ जैसी बहुआयामी प्रतिभा के कारण भारतीय काल सेंटरों को बेहद सलीके से चलाते आ रहे थे। सबकुछ ठीक था, जबतक यह प्रक्रिया खरीद-फरोख्त और तकनीकी समस्याओं के समाधान जैसी उपयोगी चीजों के लिए चल रही थी। कभी शहर की पहचान और गर्व का विषय रहे काल सेंटर अब अपराध का पर्याय बनते नजर आ रहे हैं। कभी कुशलता, दक्षता और भरोसे के लिए साख बनाने वाले यह केंद्र धोखेबाजी, धमकी और ब्लैकमेलिग का जरिया बनते जा रहे हैं। सेक्टर 44 स्थित एक और काल सेंटर पकड़ा गया। फर्जीवाड़े के कारण शहर की छवि का उजला सितारा आज देश की प्रतिष्ठा पर ग्रहण लगाता जान पड़ रहा है।

सुकून छीनता स्कूलों का 'टेक्निकल ग्लिच'

शिक्षा के मंदिरों में इन दिनों अभिभावकों को परेशान करने के सारे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। बच्चों की शिक्षा के बजाय स्कूलों का पूरा ध्यान येन केन प्रकारेण फीस वसूलने पर है। ऐसे दावपेंच खेल रहे हैं कि अभिभावक अवसाद में जा रहे हैं। स्कूल आए दिन बच्चों की आइडी ब्लाक कर देते हैं। कक्षा से निष्कासित बच्चे का लटका मुह देख अभिभावक परेशान होते हैं। फोन करते हैं, इमेल करते हैं तो स्कूल तकनीकी चाशनी में लिपटे उसी चिर परिचित 'टेक्निकल ग्लिच' का हवाला देते हुए आइडी बहाल कर देते हैं। कुछ स्कूल यह प्रक्रिया नियमित तौर पर अपना रहे हैं, तो कुछ अभिभावकों को रिकवरी विभाग के किसी वसूली भाई की तरह सीधे धमका रहे हैं। कुछ तो और भी आगे हैं, आने वाले सत्र की एडवांस फीस ले ली लेकिन पिछले महीनों की बची फीस को समायोजित करने के बजाय अभिभावकों को दोषी बता रहे हैं।

सीएम साहब, कब तक दोहराएंगे एक ही जुमला जिला अस्पताल के लिए बजट पास हुए दो साल हो गए हैं लेकिन न भवन बदला और न ही सुविधाएं। योजना कागजों की शोभा बढ़ा रही है। जब तक घोषणाएं फाइलों में बंद हैं, तब तक सरकार को किसी नई घोषणा की जरूरत ही नहीं है। उसी को दोहराएं जाएं और अपनी वाहवाही करवाए जाएं। तभी तो प्रदेश के मुख्यमंत्री हर मौके पर इसी पुरानी घोषणा को नए-नए शब्दों में लपेट, वादों का गोला बनाकर जनता की तरफ उछाल देते हैं और बेचारी भोली जनता फिर से नई उम्मीदें लगा लेती है। हाल ही में शहर आए सीएम साहब ने एक बार फिर सुविधा संपन्न अस्पताल बनाने की घोषणा कर दी। अब कोई पूछे कि इसमें नया क्या है। पकड़े तो अभी भी कान ही हैं, चाहे सीधे हाथ से, चाहे हाथ घुमाकर। बात तो तब है, जब बात कानों से कुछ आगे बढ़े और योजनाओं का क्रियान्वयन तक पहुंचे।

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