शहर की फिजा: प्रियंका दुबे मेहता

सेक्टर 29 की देर शाम की चकाचौंध के बीच ध्यान आकर्षित करती तीन वर्षीय गौरा की आंखों में लाचारी थी। अंदाज में परिपक्वता और चेहरे पर अथाह दर्द था।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 26 Feb 2021 06:28 PM (IST) Updated:Fri, 26 Feb 2021 06:28 PM (IST)
शहर की फिजा: प्रियंका दुबे मेहता
शहर की फिजा: प्रियंका दुबे मेहता

रंग और रोशनी तले बेनूर बचपन

सेक्टर 29 की देर शाम की चकाचौंध के बीच ध्यान आकर्षित करती तीन वर्षीय गौरा की आंखों में लाचारी थी। अंदाज में परिपक्वता और चेहरे पर अथाह दर्द था। अनसुलझी, रूखी लटों को देखकर लगता नहीं था कि मुद्दतों से उन्हें कभी कंघी नसीब हुई होगी। बेतरतीबी से किया आइ-मेकअप चेहरे की बेबसी पर मसखरी का मुखौटा डाल रहा था। जरूरतों और मजबूरी की मैली परतों तले दबे हुए त्रासद बचपन की इस तस्वीर को जरा सा ठहरकर कुरेदने पर बालपन की बेफिक्री, तोतली बोली से झलकती बाल सुलभ चंचलता, चेहरे की मासूमियत और आंखों की शरारत, सब मुखर हो उठे। शाम ढलने के साथ ही ऊंची होती संगीत की धुनों, मदमस्त माहौल और वातावरण में तैरती मिश्रित सुंगधों के बीच फूल और गुब्बारे समेटते गौरा और उसके साथियों का समूह निकल पड़ता है अपने गंतव्य की ओर, जो निश्चित रूप से किसी सड़क की अपेक्षाकृत सुरक्षित पटरी ही होगी।

लुभाता सेल्फी का सुस्वाद

कैफे में पहुंचते ही युवक-युवतियों के झुंड ने जिस फुर्ती से आर्डर किया, उससे पता चलता था कि भूख जोरों की लगी है। कुछ ही देर में रंगी-बिरंगी ड्रिक्स के साथ आकर्षक अंदाज में परोसी डिशेज का सिलसिला शुरू होता है। कुछ लोग खाने को टूट पड़ते हैं, तभी एक साथ कई आवाजें आती हैं, 'क्या कर रहे हो, रुको' युवती सहम जाती है, जैसे कोई जुर्म कर दिया हो, मन मसोस कर रुक जाती है। फिर शुरू होता है स्नैप बनाने और स्ट्रीक भेजने का सिलसिला, ऐसे-ऐसे एंगल कि किसी भी प्रोफेशनल फोटोग्राफर को अपनी कमतरी पर सोचने को मजबूर कर दें। वास्तविक भूख को महसूस करते दोस्तों के चेहरों पर गर्मागर्म भोजन न कर पाने का मलाल था, तो आभासी दुनिया पसंद लोगों को बेहतरीन एंगल तलाश लेने की सफलता का गुमान। इस बीच व्यंजन भले ठंडे हो गए हों, लेकिन लक्ष्य पूरा करने की संतुष्टि जरूर थी।

बाजार है बाजार ही रहेगा

भीड़-भाड़ और वाहनों के शोर से सदा कराहते सदर बाजार को सुकून के दिन देने के लिए वाहन और अतिक्रमण मुक्त बनाने की कवायद क्या शुरू हुई कि व्यापारी बिफर गए। सड़कों के सीने से बोझ घटाने की बात व्यापारियों को नागवार गुजरी और उन्होंने साफ इन्कार कर दिया। भीड़ कम हो गई तो काम कैसे चलेगा? वाहनों को प्रवेश नहीं दिया गया तो ग्राहक विमुख हो जाएंगे, जैसे मुद्दों को लेकर व्यापारी इस बाजार के लिए ताजा हवा की राह में रोड़ा बन रहे हैं। प्रशासन और राहगीरी के आयोजक व्यापारियों को मनाने में लगे हैं, लेकिन वे हैं कि टस से मस नहीं हो रहे हैं। उनका तर्क है कि 'रहट' की यही 'खटखट' तो उन्हें 'पानी' मुहैया करवाती है और इसे बंद कर वे सूखा नहीं पड़ने दे सकते। इससे एक बात साफ है कि सदर बाजार है और हर तरह का बोझ उठाना इसकी नियति है।

शुरू हुई स्कूल योद्धाओं की जंग

स्कूल में प्राथमिक कक्षाएं खुलीं तो रंग-बिरंगी यूनीफार्म में विद्यार्थियों के खिले चेहरों से फिजा मे एक अलग सी रंगत छा गई। प्रवेश द्वार पर अभिभावकों की अंगुली थामे विद्यार्थी सीमा पर जाते उस सिपाही की याद दिला रहे थे जिसके स्वजन बड़े युद्ध के लिए चितामिश्रित भावुकता के साथ विदा करते हैं। विद्यार्थी प्रसन्न थे, लेकिन अभिभावकों के चेहरों पर आशंकाओं की लकीरें गहरी थीं। 'निजी स्कूल तो अभी नहीं खुले, फिर सरकारी में ऐसी क्या आफत थी?', अभिभावक ने कहा, तो दूसरे ने जवाब दिया, 'सरकारी तंत्र कागजों से चलता है, निजी संस्थान व्यावहारिक पैमानों पर।' बात तो वर्तमान स्थिति पर सटीक बैठती थी। स्कूल खोलने की अनुमति मिल गई लेकिन निजी स्कूलों में किसी तरह की हलचल देखने को नहीं मिली। निजी स्कूल प्राचार्य चारू मैनी का मानना है कि नए सत्र से कक्षाएं चलाई जाएंगी ताकि विद्यार्थियों की सुरक्षा और अभिभावकों की संतुष्टि सुनिश्चित हो सके।

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