संस्कारशाला: वैज्ञानिक सोच दिखाती है विकास की राह

वैज्ञानिक मनोवृत्ति हमें जीवन जीना सिखाती है। कोरोना काल में इसे सच कर दिखाया है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से उबरने में इस मनोवैज्ञानिक मनोवृत्ति का ही योगदान है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 27 Oct 2021 06:26 PM (IST) Updated:Wed, 27 Oct 2021 06:26 PM (IST)
संस्कारशाला: वैज्ञानिक सोच दिखाती है विकास की राह
संस्कारशाला: वैज्ञानिक सोच दिखाती है विकास की राह

वैज्ञानिक मनोवृत्ति हमें जीवन जीना सिखाती है। कोरोना काल में इसे सच कर दिखाया है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से उबरने में इस मनोवैज्ञानिक मनोवृत्ति का ही योगदान है। आज हमारा देश कोरोना टीकाकरण अभियान में नई बुलंदियों पर पहुंच रहा है। इंटरनेट मीडिया के माध्यम से मिनटों में हम अपनी बात एक दूसरे को आसानी से पहुंचा सकते हैं। यह सब वैज्ञानिक सोच की ही देन है। आज मनुष्य चांद और मंगल पर रहने की तैयारी कर रहा है। यह सब वैज्ञानिक मनोवृत्ति की ही बदौलत संभव हो रहा है। अब तो त्योहारों का आधार भी वैज्ञानिक बन गया है।

वैज्ञानिक मनोवृत्ति का अर्थ है प्राकृतिक विज्ञान के अलावा अन्य क्षेत्रों जैसे सामाजिक और नैतिक मामलों में वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करना, वैज्ञानिक ²ष्टिकोण में किसी समस्या को समझना, विभिन्न विकल्पों पर विचार करना और फिर निर्णय लेना शामिल हैं। दुनिया भर में प्राकृतिक विज्ञान में विज्ञान शिक्षण, काफी हद तक कौशल (गणितीय और प्रायोगिक) और स्वीकृत विचारों का प्रसारण है। वैज्ञानिक अभिवृति के विकास द्वारा ही छात्र जीवन के उच्च मूल्यों को समझता है और उसमें वैज्ञानिक अभिवृति का विकास होता है। इसलिए विभिन्न शिक्षण संस्थानों ने समय-समय पर कक्षा शिक्षण में वैज्ञानिक अभिवृति के विकास का महत्व स्पष्ट किया है।

आधुनिक समय विज्ञान और प्रौद्योगिकी का है। जीवन से जुड़े क्षेत्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से अछूते नहीं है। सूचना क्रांति और वैज्ञानिक युग के जीवन व्यतीत करने के बावजूद भी हमारे समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी निर्मूल धारणाओं और अंधविश्वासों से घिरा हुआ है। इनमें अशिक्षित और पढ़े-लिखे दोनों ही प्रकार के लोग शामिल हैं। ये लोग झाड़-फूंक, जादू-टोना और टोटकों से लेकर तरह-तरह के भ्रमों पर विश्वास रखते हैं जिसके कारण वे वैज्ञानिक चेतना से अछूते हैं। यह सभी विज्ञान के विकास को बाधित करते हैं। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी समाज की उन्नति में वैज्ञानिक प्रवृति को आवश्यक मानते थे। प्रकृति के रहस्यों का ज्ञान न होने के कारण ही अंधविश्वास को जन्म देता है। कई बार वैज्ञानिक प्रवृत्ति या वैज्ञानिक सोच की कमी के कारण भी ऐसा होता है। अज्ञान मुक्त समाज के निर्माण के लिए शिक्षा का प्रसार महत्वपूर्ण है। सरकार सदैव शिक्षा के प्रसार पर जोर देती रही है। आधुनिक समय में नई प्रौद्योगिकी जैसे उपग्रह के माध्यम से शिक्षा के प्रसार में तेजी लाई जा सकती है। वैज्ञानिक मनोवृत्ति से तात्पर्य है कि हम तार्किक रूप से सोचे। इसलिए प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वैज्ञानिक ²ष्टिकोण के विकास के लिए प्रयास करें। वैज्ञानिक मनोवृत्ति का संबंध सीधे तर्कशीलता से है। वैज्ञानिक ²ष्टिकोण के अनुसार वही बात ग्रहण के योग्य है जो प्रयोग और परिणाम से सिद्ध की जा सके, जिसमें कार्य-कारण संबंध स्थापित किए जा सकें। इसलिए हमें शिक्षा का प्रसार कर वैज्ञानिक ²ष्टिकोण अपनाने पर बल देना चाहिए। किसी भी घटना या परिघटना के रहस्य को वैज्ञानिक ²ष्टि से समझने का प्रयास करें। उसके बाद ही उस पर विश्वास करें। जब तक तर्क सही न हो किसी पर विश्वास न करें। जब तर्क और तथ्य सही होंगे तभी समाज में वैज्ञानिक चेतना आएगी और समाज आगे बढ़ेगा। तार्किक सोच से जो समाज बनेगा उसका सपना ही महान भारतीयों ने देखा होगा। इसलिए हम सभी को वैज्ञानिक चेतना को अपनाते हुए उन्नत समाज की रचना के लिए प्रयास करना चाहिए। वैज्ञानिक मनोवृत्ति मानवता के लिए सुंदर उपहार है। हमारी वैज्ञानिक सोच ही देश को नई दिशा देती है। विकास के नए आयाम स्थापित करती है। तर्क और तथ्य सत्यता के प्रमाण हैं। इसलिए हमारी सोच ही हमें सकारात्मक बनाती है। सकारात्मकता ही हमें समाज में बेहतर स्थान दिलाती है और हमारी सोच को विकसित करती है।

- शिवाली शर्मा, प्रधानाचार्य, रेयान इंटरनेशनल स्कूल, सेक्टर 40

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