आज है निर्जला एकादशी: जरूरतमंदों की मदद कर प्रभु की उपासना करेंगे लोग
ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर बिना अन्न-जल ग्रहण किए लोगों को दान पुण्य की परंपरा है।
जागरण संवाददाता, गुरुग्राम: ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर बिना अन्न-जल ग्रहण किए दान-पुण्य करने की परंपरा है। इस बरस आपदा की घड़ी में मौका भी है, और दस्तूर भी। जो लोग अबतक जरूरतमंदों की मदद नहीं कर पाए वे उन्हें मदद पहुंचाने की योजना बना रहे हैं। कहते हैं कण-कण में ईश्वर का वास है, खासतौर पर असहाय वर्ग का मन प्रभु का घर होता है। ऐसे में भले ही मंदिरों के दरवाजे बंद हैं लेकिन वे रास्ते तो खुले हैं जिनपर चलकर प्रभु तक पहुंचा जा सकता है। कोरोना संकट के इस काल में लोग दान धर्म करके ही अपना व्रत पूरा करेंगे। पहले लोग छबीेले लगाते थे पर कोरोना संक्रमण के खतरे के चलते नहीं लगाएंगे।
सेक्टर 15 निवासी रमेश वशिष्ठ का कहना है कि प्रतिवर्ष वे आधुनिकता के प्रभाव में पानी के बड़े पानी के जग आदि दान देते थे लेकिन इस बार उनके परिवार ने मिट्टी के घड़े, फल और चीनी मंगवाई है। उनके मुताबिक इस बार लोगों को सही मायनों में मदद की जरूरत है। ऐसे में उन्हें साफ पानी, घड़े आदि दान देकर उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है। इससे उन कारीगरों को भी लाभ पहुंचेगा जो मिट्टी के बरतन बनाते हैं।
शहर निवासी बीएस यादव का कहना है कि निर्जला एकादशी में भले ही व्रत करें या नहीं लेकिन लोगों को दान जरूर दें। दान भी वे ऐसे लोगों को दे रहे हैं जिनके पास खाने को भोजन और पीने को स्वच्छ जल नहीं है। उनका कहना है कि जरूरतमंद को दिया गया दान ही सबसे उपयुक्त दान है। उनका कहना है कि वे इस बार मिट्टी के घड़े, खरबूजे और मीठा पानी दान करेंगे। आसपास की झुग्गियों में रह रहे लोगों की जरूरतों के बारे में पूछकर उन्हें आवश्यक वस्तुएं दान दे रहे हैं।
शीतला माता मंदिर के मुख्य पुजारी जय भगवान का कहना है कि दान के इस पर्व पर ठाकुर जी की पूजा करते हैं। आज के दिन से ही गर्मी की शुरुआत मानी जाती है ऐसे में शीतलता प्रदान करने वाली वस्तुओं के दान का विधान है लेकिन इस समय इस अवसर पर जरूरतमंदों को उनकी आवश्यकता का कोई भी सामान देकर इस व्रत का पुण्य प्राप्त किया जा सकता है। वैसे इस अवसर पर पंखा, मिट्टी का जल कुंभ आदि दान देने की परंपरा है। कुम्हारों को मिले ग्राहक
निर्जला एकादशी पर मिट्टी का जलपात्र दान करने की परंपरा को निभाते हुए लोगों ने सोमवार को घड़े व सुराही खरीदे। इससे उन कारीगरों व मिट्टी के बरतन विक्रेताओं को लाभ पहुंचा है जो कि जल शीतल रखने के आधुनिक उपकरणों के बढ़ते उपयोग के कारण अपने बनाए बरतनों के लिए ग्राहकों का इंतजार करते रह जाते थे। बर्तन विक्रेता गति का कहना है कि वे और उनके बच्चे पंकज और नीरज आज भी मिट्टी के घड़े बनाते हैं लेकिन उन्हें इसके लिए ग्राहक नहीं मिल पाते थे। गति के मुताबिक पिछले कुछ समय से मिट्टी के बरतनों की मांग बढ़ी है, खासतौर पर निर्जला एकादशी पर लोगों ने घड़े खरीदे।