आस्था की नींव पर नाच उठी श्रद्धा

मणिकांत मयंक फतेहाबाद कृष्ण पक्ष। द्वितीया। सुखद संयोग। अद्भुत..अभूतपूर्व..अलौकिक..। सैकड़ों किलोमीटर दूर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या मानो हर शहर हर गांव में बस गई हो..। प्रतीत हुआ कि ऐसा पल सच में युगों बाद ही आता है। श्रीराम को समर्पित अछूती आस्था हरि की धरा पर रोम-रोम में बस गई थी। उधर अयोध्या में पांच सौ साल बाद राम मंदिर के पुनर्निर्माण की नींव रखी जा रही थी इधर समाज की संवेदनाएं आसमान छूती रहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों रखी गई आस्था की मजबूत नींव देख हर मोड़ पर नाच ही तो उठी श्रद्धा..। अहा..नयनाभिराम..। हर मुख से यही शब्द-सकल मनोरथ सिद्ध गोसाई..।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 06 Aug 2020 10:03 PM (IST) Updated:Fri, 07 Aug 2020 06:16 AM (IST)
आस्था की नींव पर नाच उठी श्रद्धा
आस्था की नींव पर नाच उठी श्रद्धा

मणिकांत मयंक, फतेहाबाद

कृष्ण पक्ष। द्वितीया। सुखद संयोग। अद्भुत..अभूतपूर्व..अलौकिक..। सैकड़ों किलोमीटर दूर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या मानो हर शहर, हर गांव में बस गई हो..। प्रतीत हुआ कि ऐसा पल सच में युगों बाद ही आता है। श्रीराम को समर्पित अछूती आस्था हरि की धरा पर रोम-रोम में बस गई थी। उधर, अयोध्या में पांच सौ साल बाद राम मंदिर के पुनर्निर्माण की नींव रखी जा रही थी, इधर समाज की संवेदनाएं आसमान छूती रहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों रखी गई आस्था की मजबूत नींव देख हर मोड़ पर नाच ही तो उठी श्रद्धा..। अहा..नयनाभिराम..। हर मुख से यही शब्द-सकल मनोरथ सिद्ध गोसाई..।

सुबह के करीब सवा आठ बजे थे। गुलाबी नगरी फतेहाबाद के मठों-मंदिरों में कहीं अवधपति श्रीराम के जयकारे लग रहे थे तो कहीं कौशिल्या-सुत के पुन:अवतार के सोहर गूंज रहे थे। घरों में अर्चना कर रहे श्रद्धालु खबरिया चैनलों पर श्रद्धावनत थे। बीघड़ रोड स्थित जगजीवनपुरा मोहल्ले में नब्बे साल की रामवती की आंखों में खुशियों के आंसू थे। बोलीं, रोम-रोम में बसने वाले राम के मंदिर की नींव डाल रही सरकार ने बड़ा अच्छा काम किया है। यह भावना किसी एक रामवती की नहीं थी। घर-घर यही संवेदना..। कहीं श्रीरामचंद्र कृपालु भज मन तो कहीं पायो जी मैंने राम-रतन-धन पायो की गूंज..। वक्त के साथ उल्लास भी कदमताल करता रहा। वह पल नजदीक आ रहा था। ढोल-नगाड़ों की धुन तेज होती जा रही थी। शहर की सड़कें, गांवों की गलियां राममय हो रही थीं। हर दिशा में उत्सव, उल्लास उमड़-घुमड़ रहा था। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सब अयोध्या में रामलला के मंदिर की नींव पड़ता देख आह्लादित थे।

बताते चलें कि राममय फिजां के लिए सुबह हवन-यज्ञ का सिलसिला रहा तो शाम ढलते ही दीये जगमगाने लगे। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कार्तिक अमावस की रात दो माह पहले ही आ गई हो। भाद्र कृष्ण-पक्ष में श्रीराम नाम का दीपोत्सव..। आस्था संग एकाकार हो गई श्रद्धा..।

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.. और नारी-स्वर में गूंज उठा श्रीराम का जयघोष

तकरीबन बारह बजे होंगे। स्वयं में अयोध्या को समायी गुलाबी नगरी में अद्भुत नजारा उपस्थित हुआ। अयोध्या में मंदिर की नींव पड़ते ही संपूर्ण शहर नारी-स्वर में श्रीराम के जयकारे से गूंज उठा। यह एक नारी-समूह था। श्रीराम महिला कीर्तन मंडली थी। इस मंडली ने रिक्शा पर मर्यादा पुरुषोत्तम की तस्वीरें सजाकर उन्हें स्थापित कर रखा था। यह मंडली पूरे शहर की परिक्रमा कर रही थी।

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गांवों में बस गई थी अयोध्या नगरी

भूतो न भविष्यति..। ऐसा नजारा? शहर तो शहर.. गांवों में ही मानो अयोध्या नगरी बस गई थी। धांगड़, बड़ोपल, बोदीवाली..। यहां मंदिर भले ही किसी देवी अथवा देवता का था मगर श्रद्धा रामभक्ति में सराबोर..। लड़ियों से सजा मंदिर। सुबह हवन-यज्ञ, शाम को दीवाली-सा उमंग..। मंदिरों में गूंजती रही आरती-अर्चना..। घर-घर एक ही चर्चा-सियाराममय सब जग जानी..।

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