संत रविदास हम सबके लिए अनुकरणीय : दुड़ाराम

संत शिरोमणि गुरु रविदास ने रचनाओं के माध्यम से धार्मिक एकता व सामाजिक समरसता का संदेश समाज को दिया। ऐसी महान शख्सियत सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत है। उक्त विचार फतेहाबाद के विधायक दुड़ाराम ने संत शिरोमणि गुरु रविदास जी की 644वीं जयंती के अवसर पर गांव दहमन भूना जगजीवनपुरा संत रविदास धर्मशाला नागपाल चौक में आयोजित कार्यक्रमों में बतौर मुख्य अतिथि विचार व्यक्त किए। जगजीवनपुरा स्थित संत रविदास छात्रावास में आयोजित कार्यक्रम में रतिया के विधायक लक्ष्मण नापा जिला प्रधान बलदेव ग्रोहा आदि ने संत रविदास के जीवन पर प्रकाश डाला।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 28 Feb 2021 07:36 AM (IST) Updated:Sun, 28 Feb 2021 07:36 AM (IST)
संत रविदास हम सबके लिए अनुकरणीय : दुड़ाराम
संत रविदास हम सबके लिए अनुकरणीय : दुड़ाराम

जागरण संवाददाता, फतेहाबाद :

संत शिरोमणि गुरु रविदास ने रचनाओं के माध्यम से धार्मिक एकता व सामाजिक समरसता का संदेश समाज को दिया। ऐसी महान शख्सियत सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत है। उक्त विचार फतेहाबाद के विधायक दुड़ाराम ने संत शिरोमणि गुरु रविदास जी की 644वीं जयंती के अवसर पर गांव दहमन, भूना, जगजीवनपुरा, संत रविदास धर्मशाला नागपाल चौक में आयोजित कार्यक्रमों में बतौर मुख्य अतिथि विचार व्यक्त किए। जगजीवनपुरा स्थित संत रविदास छात्रावास में आयोजित कार्यक्रम में रतिया के विधायक लक्ष्मण नापा, जिला प्रधान बलदेव ग्रोहा आदि ने संत रविदास के जीवन पर प्रकाश डाला। विधायक दुड़ाराम ने कहा कि संत रविदास जी हमारे लिए अनुकरणीय और प्रेरणा स्त्रोत है। संत रविदास जी निरगुण भक्ति संप्रदाय के थे और उन्होंने कभी भी मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं किया। वे सरल ह्रदय और सबसे प्रेम भाव रखने वाले संत थे। गुरु रविदास जी के दिए गए संदेश और उनके दिखाए गए सदमार्ग से हमे सीख लेते हुए सादगी और सरलता से अपने लक्ष्य के लिए कर्म करना होगा। उन्होंने कहा कि जीवन को संतों के बताए रास्ते पर चले और गलत काम न करके जीवन को खुशहाल रखे।

उन्होंने कहा कि संत गुरू रविदास की वाणी प्राणीमात्र के लिए समानता एवं कर्म के द्वार खोलने वाली है। संसार की असारता तथा नश्वरता का संदेश देते हुए रविदास इंसान को सत्कर्म की प्रेरणा देते हैं। उन्होंने कहा कि संत रविदास ने अपने विचारों व कार्यों से समाज को सदभाव व समानता का संदेश दिया हैं। भक्ति काल में संत कवियों लक्ष्य किसी पंथ या संप्रदाय विशेष की स्थापना नहीं बल्कि सामाजिक-धार्मिक वैषम्य को समाप्त कर समतामूलक समाज की स्थापना था। संत रविदास ने अधिक स्पष्ट भाषा में कहा कि कर्म ही धर्म है।

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