कोरोना के बीच अब धान रोपाई का संकट, प्रति एकड़ 4000 रुपये मांग रहे मजदूर

कोरोना संकट बेशक कम हो गया है लेकिन दूसरे राज्यों से आने वाले मजूदरों की संख्या अब भी कम है। लाकडाउन को लगे हुए 44 दिन बीत गए है। ऐसे में जो मजदूर जिले में रह रहे थे वो अपने राज्य में चले गए थे। गेहूं की कटाई तक किसानों पर लाकडाउन का असर नहीं था।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 15 Jun 2021 07:00 AM (IST) Updated:Tue, 15 Jun 2021 07:00 AM (IST)
कोरोना के बीच अब धान रोपाई का संकट, प्रति एकड़ 4000 रुपये मांग रहे मजदूर
कोरोना के बीच अब धान रोपाई का संकट, प्रति एकड़ 4000 रुपये मांग रहे मजदूर

जागरण संवाददाता, फतेहाबाद :

कोरोना संकट बेशक कम हो गया है लेकिन दूसरे राज्यों से आने वाले मजूदरों की संख्या अब भी कम है। लाकडाउन को लगे हुए 44 दिन बीत गए है। ऐसे में जो मजदूर जिले में रह रहे थे वो अपने राज्य में चले गए थे। गेहूं की कटाई तक किसानों पर लाकडाउन का असर नहीं था।

मई महीने में तमाम बाजार बंद थे। लेकिन जमींदारों ने अपनी फसल काट कर मंडी में बेच दी। अब जमींदारों को भी महसूस होने लगा है कि कोरोना काल में संकट उनके सामने भी आया है। दरअसल, किसानों ने अब धान की रोपाई करनी है और धान की रोपाई के लिए मजदूर नहीं मिल रहे। पिछले कई सालों से किसानों ने खुद को यूपी व बिहार के मजदूरों पर निर्भर कर लिया है। इस बार यूपी-बिहार के मजदूर आ नहीं पाए। अब किसानों के सामने संकट यही है कि वे धान की रोपाई कैसे करें। लोकल मजदूरों में अब इतनी क्षमता रही नहीं कि वे धान की रोपाई कर सकें। इसकी वजह ये है कि धान की रोपाई में आमदन कम है और मेहनत बहुत ज्यादा है। मनरेगा में काम मिलने के बाद किसानों को यह काम बेहद कठिन लगने लगा है। क्योंकि मनरेगा में काम कम और मजदूरी संतोषजनक मिल जाती है।

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लाकडाउन की आहट से चले गए थे मजदूर

1 मई को लाकडाउन लग गया था। उससे पहले दूसरे राज्यों से आए मजदूरों ने जाना शुरू कर दिया था। उन्हें पता था कि पिछले साल की तरह इस बार भी मुश्किलें होगी। फतेहाबाद क्षेत्र में सबसे ज्यादा मजदूर यूपी व बिहार से ही आते हैं। लाकडाउन के दौरान खुद को असुरक्षित महसूस करते हुए करीब 10 हजार मजदूर यहां से चले गए। अब उनकी कमी सता रही है। यूपी व बिहार के मजदूरों को धान रोपाई में माहिर माना जाता है। वे बहुत कम समय में बहुत बड़े रकबे में धान लगा देते हैं। उनके जितनी क्षमता यहां के मजदूरों में नहीं है। इन मजदूरों का रेट भी कम होता है। अब ये मजदूर आना तो चाहते है लेकिन ट्रेन आदि न चलने के कारण परेशानी हो रही है। कुछ मजदूर अपने निजी वाहनों से आ रहे है लेकिन उन्हें परेशानी हो रही है।

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किसान एडवांड रुपये देकर कर रहे बुकिग

अब लोकल मजदूरों को पता है कि किसानों के पास कोई विकल्प नहीं बचा। दूसरे राज्यों के मजदूरों की वापसी के बाद लोकल मजदूरों के भाव बढ़ गए हैं। गत वर्ष धान रोपाई का भाव 2500 रुपये प्रति एकड़ था। इस बार लोकल मजदूरों ने 4000 रुपये तक मांगने शुरू कर दिए हैं। धान का रकबा रतिया, टोहाना व जाखल है। ऐसे में यहां के किसान बड़ी संख्या में धान की रोपाई करते है। जिला प्रशासन ने धान की सीधी बिजाई के लिए प्रयास तो किया लेकिन इतना नहीं सभी किसान इस विधि को अपनाए। किसानों ने अब जाखल व टोहाना रेलवे स्टेशन पर जमावड़ा जमा लिया है। ट्रेन से उतरने वाले मजदूरों को किसान अपने साथ लेकर जा रहे है।

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ये कहना है किसानों का

रतिया निवासी रामचंद्र, लखविद्र सिंह व सुरजीत सिंह ने बताया कि हर साल धान की रोपाई करते है। मजदूर मिल जाते है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। पिछली बार लाकडाउन पहले लग गया था। लेकिन इस बार लाकडाउन चल रहा है। ऐसे में मजदूर नहीं आ रहे है। लोकन मजदूर कम है। ऐसे में धान की रोपाई प्रभावित होने के साथ ही समय पर नहीं हो सकेगी। वो अधिकर रुपये देने को भी तैयार है।

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किसान धान की सीधी बिजाई करें। इसके लिए मशीन भी है। अगर किसान ऐसा करेंगे तो धान की अच्छी फसल होगी और मजदूरों की जरूरत तक नहीं पड़ेगी। वहीं पानी की जरूरत भी कम होगी। धान की बिजाई करने के 20 दिन बाद पहले पानी की जरूरत पड़ती है।

डा. राजेश सिहाग, उप-कृषि निदेशक फतेहाबाद।

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