त्याग व ममता की साक्षात प्रतिमूर्ति है मां
मां एक साक्षात ममता व त्याग की प्रतिमूर्ति है। मां के आंचल में दुनियां का हर सुख प्राप्त होता है। जैसे पंजाबी में कहावत भी है कि मांवां हुंदी है ठंडियां छांवा। कोरोना महामारी की दूसरी लहर के चलते शिक्षण संस्थान बंद होने से इस बार मदर्स डे स्कूलों में नहीं बनाया जा सका लेकिन दैनिक जागरण ने अंतरराष्ट्रीय मदर्स डे पर अपनी महिला पाठकों से चर्चा की प्रस्तुत है उनके विचार।
संवाद सूत्र, टोहाना : मां एक साक्षात ममता व त्याग की प्रतिमूर्ति है। मां के आंचल में दुनियां का हर सुख प्राप्त होता है। जैसे पंजाबी में कहावत भी है कि मांवां हुंदी है ठंडियां छांवा। कोरोना महामारी की दूसरी लहर के चलते शिक्षण संस्थान बंद होने से इस बार मदर्स डे स्कूलों में नहीं बनाया जा सका, लेकिन दैनिक जागरण ने अंतरराष्ट्रीय मदर्स डे पर अपनी महिला पाठकों से चर्चा की, प्रस्तुत है उनके विचार।
.................. मां पृथ्वी पर एक साक्षात भगवान का रूप है। वह बच्चे को जन्म देकर उसका पालन पोषण करती है व अच्छे संस्क ार देकर स्वयं कष्टों का भोगते हुए उसे सुख प्रदान करती है, लेकिन वहीं संतान बड़ी होने के बाद अपनी मां के दुखों का कारण बनती है, जोकि एक शर्मनाक बात है। मदर्स डे पर ऐसे बच्चों को सीख लेनी चाहिये कि वह अपनी माताओं का भरपूर आदर सत्कार करें।
-सुरेश रानी ढींगड़ा, पूर्व चेयरमैन, नगर परिषद।
.....................
वर्ष में केवल एक दिन मदर्स डे मनाने से मां के प्रति दायित्व की पूर्ति नहीं हो जाती। मां को सम्मान तो प्रत्येक दिन व हर क्षण मिले तो भी कम है। मां का कर्ज व्यक्ति जीवन भर नहीं चुका सकता। उनका कहना है कि भगवान पृथ्वी पर हर जगह व हर समय नहीं मिलता, इसलिए उन्होंने अपने रूप में मां को बनाया है। उन्होंने कहा कि मां का सम्मान करना बहुत जरूरी है, परंतु आधुनिक समय में संतान ही मां के दुख दर्द का कारण बन गई है।
-ऊषा जैन, प्रेमनगर, टोहाना।
.................... भगवान ने दुनिया में सर्वोच्च कृति यदि बनाई है तो वह निश्चित रूप से मां है। मां अपने पुत्र के लिए कभी कुमाता नहीं बनती जबकि पुत्र कपूत बनकर मां को कष्ट पहुंचाने का काम करते है। मातृ दिवस पर ऐसे पुत्रों को शिक्षित करना आवश्यक है। मां अपनी संतान की खुशी के लिए हर संकट को पार कर जाती है। मदर्स डे लोगों के लिए एक प्रेरणादायक बन सकता है।
- शीलावंती बत्रा, रामनगर, टोहाना।
..................
मदर्स डे पश्चिमी सभ्यता की देन है लेकिन फिर भी इसका आयोजन प्रशंसनीय है। यद्यपि भारतीय संस्कृति तो ऐसी रही है कि मां के आदेश से भगवान श्रीराम चंद्र जी ने चौदह वर्ष का बनवास हंसते-हंसते स्वीकार किया था। इसलिए प्रत्येक पुत्र का यह फर्ज बनता है कि वह भी अपनी माता का सम्मान करें तथा उन्हें सुख प्रदान करने में अपना भरपूर योगदान दें, तभी वह अपनी मां के दूध का कर्ज उतार सकता है।
- शालिनी बंसल, बक्शी गली, टोहाना।