पराली जला रहे किसान, 30 की लोकेशन ट्रेस, होगी कार्रवाई
जागरण संवाददाता फतेहाबाद प्रशासन की सख्ती के बावजूद किसान धान की पराली जला रहे हैं।
जागरण संवाददाता, फतेहाबाद :
प्रशासन की सख्ती के बावजूद किसान धान की पराली जला रहे हैं। अधिकारी दिन में बैठक करते हैं और किसान रात को पराली जला देते हैं। इस बार फिर आसमान में पराली का धुआं छाने लगा है। प्रशासन की रिपोर्ट के मुताबिक इस बार 30 जगहों के बारे में पता लगा है, जहां पर किसानों ने पराली जलाई है। इन किसानों को पहले नोटिस जारी किए जाएंगे और उसके बाद अगली कार्रवाई होगी।
पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए उपायुक्त धीरेंद्र खड़गटा ने बृहस्पतिवार को लघु सचिवालय स्थित बैठक कक्ष में कृषि विभाग, राजस्व विभाग, पंचायत विभाग, अग्निशमन विभाग सहित अन्य विभागों के अधिकारियों की बैठक ली। उन्होंने कहा कि जागरूकता अभियान चलाकर किसानों तथा आमजन मानस को धान की पराली तथा अन्य फसल अवशेषों को न जलाएं तथा फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में अवगत करवाएं।
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दमकल गाड़ी पहुंचनेंगी मौके पर
उपायुक्त ने कहा कि जिले में कहीं भी आगजनी की घटना की सूचना मिले तो तुरंत काबू पाने के लिए 101 नंबर पर अग्निशमन विभाग से संपर्क करें। किसानों तथा आम नागरिकों को जागरूक करें और इस बारे गांव-गांव में मुनियादी भी करवाएं। उन्होंने कहा कि पटवारी, ग्राम सचिव, सरपंच, नंबरदार, समाजसेवी भी आगजनी की घटनाओं पर शीघ्र काबू पाने के लिए प्रशासन तथा अग्निशमन विभाग को अवगत करवाएं।
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जागरण किसनों को जागरूक करने के लिए लगातार चला रहा है मुहिम पराली जलाने से कई तरह का नुकसान होता है इस बारे में किसानों को जागरूक करने के लिए दैनिक जागरण ने पिछले तीन साल से अभियान चलाया हुआ है। अभियान का असर भी दिख रहा है। पिछले साल की तुलना में इस बार किसान कम पराली जला रहे हैं। गत वर्ष 15 अक्टूबर तक 800 से ज्यादा जगहों को चिन्हित किया था, जहां किसानों ने पराली जलाई। अबकी बार यह संख्या फिलहाल 30 है। दैनिक जागरण का किसानों से आग्रह है कि वे खेतों में धान की पराली व फसल अवशेषों को न जलाएं। फसल अवशेषों को जलाने से वातावरण पर बुरा असर पड़ता है। धुंए व गैस के कारण बीमारियों का प्रकोप बढ़ता है। मौसम में बदलाव के कारण बारिश में कमी आती है। मिट्टी में विद्यमान मित्र कीटों में कमी हो जाने के कारण भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है तथा पशुओं के चारे में भी कमी आती है। फसली अवशेष जलाने से पैदा हुए धुएं के कारण राजमार्गो पर दुर्घटना होने का डर बना रहता है। जीव जंतुओं एवं प्राणियों की त्वचा तथा आंखों में बीमारी होने की आशंका बनी रहती है।