गांव खेड़ीकला के यशपाल ने बलिदान देकर कमाया यश, एक के बाद एक 14 आतंकियों को मार गिराया था
बेशक यशपाल के बलिदान को 20 साल से अधिक हो गए हैं लेकिन उनकी बहादुरी के किस्से आज भी ग्रामीणों को याद हैं। सेना में भर्ती होने के बाद 2001 में उनकी पोस्टिंग 30 आरआर केयर आफ 56 एपीओ के तहत कश्मीर में पोस्टिंग हुई थी।
फरीदाबाद [प्रवीन कौशिक]। खेड़ीकलां गांव निवासी यशपाल सिंह नरवत उस वीर जवान का नाम है, जिसने कुपवाड़ा में एक के बाद एक 14 आतंकवादियों को मार गिराने में अपनी रेजीमेंट में अहम भूमिका निभाई थी और फिर मातृभूमि की रक्षा खातिर अपने प्राणों की कुर्बानी दे दी थी। बलिदानी यशपाल के बारे में जब बुजुर्ग मां धर्मपाली से बात करते हैं, तो उनकी आंखे नम हो जाती हैं, लेकिन गर्व करती हुई कहती हैं कि मां से बढ़ कर मातृभूमि होती है।
मातृभूमि की ओर आंख उठाने वाले आतंकियों का मार गिराने से बढ़ कर और कुछ नहीं। बलिदानी की मां आज दीवार पर टंगी बेटे की तस्वीर देखते हुए कहती हैं कि उन्हें आज भी याद है जब बेटा दो महीने की छुट्टी काटकर वापस ड्यूटी पर गया था और कहा था कि जल्द आऊंगा, बेटा आया, गांव का गौरव बढ़ाते हुए तिरंगे में लिपटा हुआ।
ग्रामीणों को याद है यशपाल की यश गाथा
बेशक यशपाल के बलिदान को 20 साल से अधिक हो गए हैं, लेकिन उनकी बहादुरी के किस्से आज भी ग्रामीणों को याद हैं। सेना में भर्ती होने के बाद 2001 में उनकी पोस्टिंग 30 आरआर केयर आफ 56 एपीओ के तहत कश्मीर में पोस्टिंग हुई थी। उस दौरान घाटी में आतंकवाद चरम पर था और कुपवाड़ा में आतंकियों से निपटने की जिम्मेदारी सौंपी गई। मां धर्मपाली के अनुसार यशपाल के साथियों ने उन्हें बताया था कि 4 जून, 2001 को वे साथियों के साथ कुपवाड़ा में गश्त कर रहे थे।
इसी दौरान आतंकी उनके दल पर हमला करने के लिए घात लगाकर छिपकर बैठे हुए थे। आतंकियों की दल पर नजर पड़ते ही उन्होंने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। यशपाल ने खुद को और अपने साथियों को बचाते हुए आतंकियों से डटकर मुकाबला किया। इस दौरान उनके सीने पर कई गोलियां लगीं, लेकिन मां भारती के इस अमर सपूत ने फायरिंग जारी रखी।
इस दौरान उन्होंने 14 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया, पर चूंकि खुद भी कई गोलियों सीने पर खाई थीं, इसलिए धीरे-धीरे मातृभूमि की गोद में ही अंतिम सांस ली। हंसते-हंसते देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने को लेकर साथियों ने उन्हें सलामी दी थी।
स्वजन ने बनवाया स्मारक
बलिदानी के भाई सुरेंद्र बताते हैं कि बेशक भाई ने देश की रक्षा करते हुए बलिदान दिया, लेकिन शासन-प्रशासन की ओर से कोई सुविधाएं नहीं दी गई। यहां तक कि भाई की याद में स्मारक तक नहीं बनवाया। उन्होंने अपने खर्चे पर अस्पताल की जमीन पर स्मारक बनवाया। अब समय-समय पर खुद इसकी साफ-सफाई करते हैं। सुरेंद्र बताते हैं कि भाई की शहादत पर गर्व है। वे अपने भाई की बहादुरी के बारे में अपने बच्चों को बताते रहते हैं ताकि उनमे देशप्रेम का जज्बा बना रहे। उनके बच्चे बहुत ध्यान से उनके बहादुरी के किस्से सुनते हैं।
परिचय: गांव खेड़ीकलां में भरतलाल और धर्मपाली के घर 19 सितंबर 1976 को यशपाल सिंह नरवत का जन्म हुआ था। यशपाल के तीन बड़े भाई रविंद्र, सुरेंद्र और पवन हैं। उन्होंने गांव के स्कूल से ही 10वीं कक्षा पास की थी। पिता भरत लाल और बड़े भाई रविंद्र सिंह सेना में थे। उनके आदश पर चलते हुए 21 वर्ष की आयु में अप्रैल 1997 को नासिक में 290 मीडियम रेजीमेंट में वह भर्ती हुए। 2001 में इनकी शादी हो गई थी। शादी के कुछ दिन बाद ही वे शहीद हो गए थे।