Tokyo 2021 Paralympics: जानिए हरियाणा के रंजीत सिंह के बारे में, धौनी से प्रेरणा लेकर खेल के लिए छोड़ दी थी नौकरी
भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धौनी के जीवन पर आधारित फिल्म से प्रेरणा लेकर नौकरी छोड़ने वाले आदर्श नगर बल्लभगढ़ निवासी युवा पैरा खिलाड़ी रंजीत सिंह भाटी का चयन टोक्यो पैरालिंपिक के लिए हुआ है।
फरीदाबाद [अभिषेक शर्मा]। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धौनी के जीवन पर आधारित फिल्म से प्रेरणा लेकर नौकरी छोड़ने वाले आदर्श नगर, बल्लभगढ़ निवासी युवा पैरा खिलाड़ी रंजीत सिंह भाटी का चयन टोक्यो पैरालिंपिक के लिए हुआ है। रंजीत भाला फेंक प्रतियोगिता में देश का प्रतिनिधित्व करेंगे। रंजीत ने दिल्ली में हुए पैरालिंपिक ट्रायल में 44.50 मीटर भाला फेंककर टोक्यो पैरालंपिक का टिकट प्राप्त किया है। रंजीत सिंह भाटी से पहले शूटर मनीष नरवाल और सिंहराज अधाना भी भारतीय पैरालिंपिक टीम में स्थान बनाने में कामयाब रहे हैं।
पैरालिंपिक में पदक पक्का करने के लिए रंजीत इन दिनों अपनी स्पीड पर काम कर रहे हैं। खेल विभाग ने इनकी प्रतिभा को देखते अलग से कोच भी नियुक्त किया है। भाला फेंक कोच पवन कुमार को डेपुटेशन पर पलवल से फरीदाबाद बुलाया गया है। वहीं एक अन्य कोच कृष्ण कुमार पालीवाल भी रंजीत के बेहतर अभ्यास में मदद कर रहे हैं। कृष्ण कुमार एक अन्य जगह कार्यरत हैं और उन्होंने रंजीत को प्रशिक्षण देने के लिए छुट्टी ली हुई है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी है पहचान
रंजीत ने वर्ष 2019 में मोरक्को ग्रांड प्रिक्स में हिस्सा लिया था और चौथा स्थान प्राप्त किया था। इस वर्ष गुरुग्राम में हुई राज्य स्तरीय प्रतियोगिता और बेंगलुरु में हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर पैरालिंपिक ट्रायल के लिए क्वालीफाई किया। उपनिदेशक खेल विभाग गिर्राज सिंह ने बताया कि रंजीत में पदक जीतने की क्षमता है। चयन होने पर जिला खेल अधिकारी रमेश वर्मा ने भी रंजीत को शुभकामना दी है।
खेल के लिए छोड़ी थी नौकरी, माता-पिता हुए थे नाराज
रंजीत ने बताया कि वह महेंद्र सिंह धौनी से प्रभावित हैं। धौनी की तरह अपने खेल को बेहतर बनाने के बारे में सोचते रहते हैं। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। दिल्ली में एक कंपनी में काम करने के चलते अपने खेल को समय नहीं दे पाते थे और एक दिन नौकरी छोड़ दी। रंजीत के फैसले से उनके पिता रामबीर सिंह और मां वैजंती काफी नाराज हुई थीं, क्योंकि उनका खेलों से दूर तक कोई वास्ता नहीं है। उनके परिवार में आजतक किसी ने भी खेलों को गंभीरता से नहीं लिया है। वह सिर्फ अपने बेटे रंजीत को नौकरी करते देखना चाहते हैं। उन्हें पैरालिंपिक जैसे इतने बड़े खेलों के आयोजन के महत्व के बारे में कुछ भी नहीं जानकारी नहीं है।
दुर्घटना के बाद हुए थे दिव्यांग
वर्ष 2012 से पूर्व एक सामान्य व्यक्ति की तरह जीवनयापन करने वाले रंजीत एक्सप्रेस-वे पर मोटरसाइकिल अनियंत्रित होने से दुर्घटना ग्रस्त हो गए थे। इसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे और एक महीने तक वेंटिलेटर पर रह कर जिंदगी की लड़ाई लड़ी। अंत में जीत जिंदगी की हुई और उन्हें ठीक होने में दो साल से भी अधिक समय लगा। सड़क दुर्घटना में दाएं पैर में गंभीर रूप से चोट आने के कारण अब वह सामान्य व्यक्तियों की तरह नहीं चल पाते हैं।