Faridabad Coronavirus : सिफारिशों के सहारे महामारी में संक्रमितों के जीवन की डोर

गंभीरावस्था वाले मरीज ही अस्पताल में भर्ती होने का प्रयास करें। अब जमीनी हकीकत यह है कि जिस मरीज को कोरोना के शुरूआती लक्षण दिखाई देते हैं उसकी कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट ही कम से कम सात दिन में आ रही है।

By Prateek KumarEdited By: Publish:Thu, 29 Apr 2021 05:36 PM (IST) Updated:Thu, 29 Apr 2021 05:36 PM (IST)
Faridabad Coronavirus : सिफारिशों के सहारे महामारी में संक्रमितों के जीवन की डोर
मौजूदा परिस्थितियां तो ऐसी बन गई हैं कि हर चीज सिफारिश पर ही मिल पा रही है।

नई दिल्ली [बिजेंद्र बंसल]। शासन-प्रशासन कह रहे हैं कि कोरोना संक्रमण के लक्षण दिखने पर घर पर रहकर ही अपने मरीज का इलाज करो। गंभीरावस्था वाले मरीज ही अस्पताल में भर्ती होने का प्रयास करें। अब जमीनी हकीकत यह है कि जिस मरीज को कोरोना के शुरूआती लक्षण दिखाई देते हैं, उसकी कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट ही कम से कम सात दिन में आ रही है। टेस्ट रिपोर्ट पाजिटिव आने से पहले ही सात दिन तक मरीज अपने घर पर ही एकांतवास में रहकर दवा लेता है मगर अचानक उसका आक्सीजन स्तर सामान्य से कम होने लगे तो उसे बाजार में कहीं भी आक्सीजन नहीं मिलती।

सरकार ने तीन दिन पहले जिलावार आक्सीजन की आपूर्ति के लिए नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की थी। लाेगों ने समझा कि ये नोडल अधिकारी व्यक्तिगत रूप से भी जिस व्यक्ति को जरूरत है, उसे डाॅक्टर की लिखित सलाह पर आक्सीजन उपलब्ध कराएंगे मगर इन अधिकारियों से बात होने पर स्थिति साफ हुई। इन अधिकारियों ने बताया कि सरकार ने सिर्फ अस्पतालों को मिलने वाली आक्सीजन पर निगरानी के लिए उन्हें नोडल अधिकारी बनाया है।

व्यक्तिगत रूप से किसी को आक्सीजन की जरूरत को वे पूरा नहीं करवा सकते। ऐसे में मरीज की हालत यह है कि मरता, क्या नहीं करता। इन नोडल अधिकारियों के पास गिड़गिड़ाने के अलावा वह अपने चुने हुए प्रतिनिधियों तथा रिश्तेदारियों की सिफारिशों तक पहुंचता है। मौजूदा परिस्थितियां तो ऐसी बन गई हैं कि लोगों को अपने मरीज के लिए दवा, बेड, इंजेक्शन से लेकर आक्सीजन तक सिफारिश पर ही मिल पा रही है।

मैं अपना नाम और पता क्या बताऊं साहब,अपनी 65 साल की मां के लिए आक्सीजन के लिए दर-दर भटक रहा हूं। मां को कोरोना के लक्षण हैं। टेस्ट के सात दिन बाद आई रिपोर्ट नेगेटिव थी मगर लक्षणों के साथ बुखार भी चढ़ने लगा। बुखार चढ़ा तो तीन दिन बाद आक्सीजन भी कम होने लगी। अब आक्सीजन स्तर 80 है। जिस डाक्टर की सलाह ले रहे थे, उसने भी यह कहकर फोन उठाने बंद कर दिए कि या तो किसी अस्पताल में भर्ती कराओ या फिर घर में ही आक्सीजन का प्रबंध करो। अखबार में आक्सीजन आपूर्ति वालों के मोबाइल नंबर देखकर, उनसे संपर्क करना चाह रहा था मगर वे यह सुनते फोन काट देते हैं। अब जाकर यह पता चला है कि ये अधिकारी घर पर किसी को भी आक्सीजन नहीं दिलवा रहे। अब बताओ, बाजार में आक्सीजन उपलब्ध नहीं, सरकार दे नहीं रही। अस्पताल में बेड खाली नहीं। कोविड सेंटर वाले भी और ज्यादा गंभीरावस्था के मरीज को ही भर्ती करना चाहते हैं। अब तो परमात्मा पर ही भरोसा है।

एक युवक

सरकार ने हमारी आक्सीजन आपूर्ति नोडल अधिकारी के रूप में नियुक्ति इसलिए की थी कि हम संबंधित जिला के अस्पतालों को उनकी जरूरत के अनुसार आक्सीजन उपलब्ध करा सकें। इस काम में सभी नोडल अधिकारी लगे हैं। फरीदाबाद में 80 टन प्रतिदिन आक्सीजन की जरूरत है मगर सरकार की तरफ से 15 टन ही मिल रही है। काम इसलिए चल रहा है कि यहां के आक्सीजन प्लांट से पांच बड़े हास्पीटल का पहले से एमओयू है। इसलिए करीब 40 टन प्रतिदिन का लोड वहां से कम हो रहा है मगर बकाया 40 टन में से सिर्फ 15 टन ही आक्सीजन मिल रही है। इसके अलावा हमारे पास व्यक्तिगत रूप में आक्सीजन सिलेंडर देने और भिजवाने के फोन आ रहे हैं। व्यक्ति रूप में सिलेंडर देने की सरकार ने मनाही की हुई है क्योंकि लोग इन सिलेंडरों को मरीज ठीक होने पर भी अपने घरों में ही रख रहे हैं।

संदीप गहलान,

नोडल अधिकारी, फरीदाबाद

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