Aravali Encroachment News: हरियाणा में वन क्षेत्र को नए सिरे से परिभाषित करने की उठी मांग
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अरावली के वन क्षेत्र में हुए निर्माणों पर तोड़फोड़ की कार्रवाई जारी है। इस बीच राज्य सरकार ने संबंधित सभी जिलों के अधिकारियों से चर्चा के बाद इन कानूनों को देखते हुए वन क्षेत्र को नए सिरे से परिभाषित करने की मांग उठाई है।
नई दिल्ली/फरीदाबाद [बिजेंद्र बंसल]। अरावली के वन क्षेत्र पर सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख के मद्देनजर हरियाणा सरकार पंजाब भू संरक्षण कानून (पीएलपीए)-1900 और और वन कानून-1927 की समीक्षा करने में जुट गई है। इन कानूनों के आधार पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा सात मई 1992 को जारी अधिसूचना को लेकर भी हरियाणा सरकार कई सवाल उठा रही है।
सुप्रीम कोर्ट इन्हीं कानूनों के मद्देनजर वन क्षेत्र से अतिक्रमण व अवैध कब्जे हटाने के सख्त आदेश दे चुका है। छह जून को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण फरीदाबाद व गुरुग्राम में अरावली के वन क्षेत्र में हुए निर्माणों पर तोड़फोड़ की कार्रवाई भी चल रही है। राज्य सरकार ने संबंधित सभी जिलों के अधिकारियों से चर्चा के बाद इन कानूनों को देखते हुए वन क्षेत्र को नए सिरे से परिभाषित करने की मांग उठाई है। फरीदाबाद, पलवल, नूंह, गुरुग्राम, रेवाड़ी,झज्जर, पानीपत, रोहतक जिला के अधिकारियों ने नगर आयोजना विभाग के प्रधान सचिव अपूर्व कुमार सिंह के साथ हुई बैठक में सुझाव दिया गया है कि वन क्षेत्र की जमीनी सच्चाई जानने के लिए नए सिरे से सर्वे कराने की जरूरत है। इतना ही नहीं अधिकारियों की इस चर्चा में दो अहम पहलू भी सामने आए हैं। पहला यह कि उस पंचायत भूमि को वन क्षेत्र का हिस्सा नहीं माना जा सकता, जिस पर पेड़ खुद लोगों ने लगाए हैं। दूसरा यह कि 1992 की अधिसूचना में फरीदाबाद जिले में करीब आठ हजार हेक्टेयर क्षेत्र अरावली का हिस्सा नहीं है। इसके अलावा राज्य सरकार के भूराजस्व रिकार्ड में भी अरावली का कोई रिकार्ड नहीं है बल्कि गैर मुमकिन पहाड़ (जिस पर खेती न हो सके) का ही रिकार्ड है।
पीएलपीए-1900 में संशोधन के लिए बनाया था यह आधार
हरियाणा सरकार ने 27 फरवरी 2019 को विधानसभा में विधेयक पारित कराकर पीएलपीए-1900 की धारा चार व पांच में संशोधन कानून बनवाया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पारित विधेयक पर राज्यपाल के हस्ताक्षर होने से पहले ही एक मार्च 2019 को रोक लगा दी थी। तब हरियाणा सरकार का तर्क था कि राज्य में वन क्षेत्र फिर से परिभाषित होना चाहिए। लोगों के पेड़ लगाने के कारण पंचायत भूमि और निजी भूमि को भी वन क्षेत्र के रूप में मान लिया गया है। इससे राज्य के 14 जिलों का 25 फीसद क्षेत्रफल प्रभावित हो रहा है। इसमें कृषि योग्य भूभाग भी शामिल है। मास्टर प्लान-2021 में इस जमीन पर भी अनेक तरह की योजनाएं बना दी गई हैं,क्योंकि यहां वन क्षेत्र के लिए जरूरी भूमि कटाव भी नहीं होता। राज्य सरकार ने पिछले दिनों राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड की 40वीं बैठक में भी वन क्षेत्र संबंधी तथ्य रखे हैं।
वास्तव में प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्र के लिए आरक्षित भूमि पर बनी योजनाओं पर भी सात मई 1992 की अधिसूचना से सवाल उठ रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बह रही यमुना नदी में रेत खनन को लेकर पर्यावरण मंत्रलय ने रेत खनन प्रबंधन निर्देशिका-2016 जारी की है। इसमें एनसीआर में बह रही यमुना में रेत खनन नहीं हो सकता।
डा. सारिका वर्मा (पर्यावरणिवद्) का कहना है किगैर मुमकिन पहाड़ को अरावली में वन क्षेत्र का हिस्सा नहीं मानने के राज्य सरकार के फैसले को हम पर्यावरण के साथ खिलवाड़ मान रहे हैं। 27 फरवरी 2019 को राज्य सरकार ने पंजाब भूमि संरक्षण कानून में संशोधन प्रस्ताव पारित कराकर अपने मंसूबों को पहले ही प्रदर्शीत कर दिया था, मगर सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी।
वहीं, डा. आरपी बलवान (सेवानिवृत्त, वन अधिकारी) के मुताबिक,गैर मुमकिन पहाड़ के नाम पर अरावली के वन क्षेत्र को पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम-1900 के दायरे से बाहर निकालने का प्रयास निर्रथक होगा। फरीदाबाद में आर. कांत एन्क्लेव में तोड़फोड़ से पहले बिल्डर कंपनियों सहित प्रभावित लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में ये सब तर्क रखे थे जिन्हें अब हरियाणा सरकार पेश कर रही है।