Vijay Diwas 2020: आत्मसमर्पण करते हुए PAK जनरल की आंखों में आ गए थे आंसू, पूर्व सैन्य अधिकारी ने सुनाया दिलचस्प किस्सा
भारतीय वायुसेना से सेवानिवृत्त वारंट अफसर महेंद्र सिंह ने बताया कि जब जनरल नियाजी आत्मसमर्पण पत्र पर हस्ताक्षर कर रहे थेतब उनकी आंखों में आंसू निकल आए। इस पर उनके पीछे खड़े पाक सेना के जवान ने कहा कि साहब आंसुओं के पानी से सरसों के खेत हरे नहीं होते।
फरीदाबाद [सुशील भाटिया]। यह 16 दिसंबर 1971 का ऐतिहासिक दिन था, जब भारतीय सैनिकों की जांबाजी के आगे पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पड़े और पाकिस्तानी जनरल एके नियाजी ने 93,000 सैनिकों और नागरिकों के साथ भारतीय जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण किया। उन ऐतिहासिक पलों के गवाह भारतीय वायुसेना से सेवानिवृत्त वारंट अफसर महेंद्र सिंह ने बताया कि जब जनरल नियाजी आत्मसमर्पण पत्र पर हस्ताक्षर कर रहे थे, तब उनकी आंखों में आंसू निकल आए। इस पर उनके पीछे खड़े पाकिस्तानी सेना के जवान गुलाम मोहम्मद ने कहा कि जनरल साहब आंसुओं के पानी से सरसों के खेत हरे नहीं हुआ करते। उनके इन शब्दों को सुनकर जनरल अरोड़ा ने सराहना की और पाकिस्तानी अफसरों से गुलाम मोहम्मद को सितारा-जुरत (स्टार आफ करेज) से नवाजने की सिफारिश की।
सेवानिवृत्त कर्नल पीके सूद ने रोमांचक संस्मरण सुनाते हुए बताया कि बमबारी हो रही थी, मेरे साथी मदनलाल को गोली लगी और वीरगति को प्राप्त हुए। मैं भी गोली लगने पर घायल हो गया और सैन्य अस्पताल में उपचार के लिए दाखिल हुआ, पर हमारी सैन्य टुकड़ी आगे बढ़ती रही और अंतत: हमारी जांबाज भारतीय सेना के आगे पाकिस्तानियों ने घुटने टेक दिए। हमारी विजय हुई। कर्नल सूद ने कहा कि उन्हें गर्व है कि वो उस भारतीय सेना का अंग रहे हैं, जिसने 16 दिसंबर 1971 को खत्म हुए युद्ध में विजय पाई और बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र का उदय हुआ।
अब सेक्टर-16 में रह रहे और हिमाचल प्रदेश के मूल निवासी कर्नल पीके सूद ने बताया कि उस समय सेना में कैप्टन थे और उनकी तैनाती जसोर में थी। उनकी यूनिट 14 फील्ड रेजीमेंट मेजर उंबजी के नेतृत्व में मोर्चे पर आगे बढ़ रही थी। 15 दिसंबर-1971 को सामने से गोलीबारी में उनके साथी आपरेटर पठानकोट निवासी मदनलाल मातृभूमि पर बलिदान हो गए। कर्नल के अनुसार वो भी गोली लगने से घायल हो गए, हेलीकाप्टर के जरिए सैन्य अस्पताल पहुंचाया गया। कर्नल सूद कहते हैं कि उन्हें हमेशा इस बात का मलाल रहेगा कि वो मोर्चे पर रह कर अपनी सेना की जीत के गवाह नहीं बन सके। कर्नल सूद को वीरता के लिए आहत पदक से भी नवाजा गया था।
सेक्टर-15 निवासी कर्नल ऋषिपाल ने बताया कि यह विजय भारतीय सेना के गौरवमयी इतिहास में स्वर्णिम अध्याय के रूप में दर्ज है। कर्नल ऋषिपाल स्वयं उस युद्ध का हिस्सा थे। उन्होंने बताया कि हमारी सेना ने किस तरह से पाक सेना का मान-मर्दन किया और किस तरह से 93000 सैनिकों के घुटने टिकवाए। ऐसा उदाहरण विश्व में और कोई नहीं मिलता। उस युद्ध में तब पूर्वी पाकिस्तान(अब बांग्लादेश)की मुक्ति वाहिनी के लोगों ने सटीक सूचनाएं देकर भारतीय सेना का खूब सहयोग किया, साथ ही सैन्य सामान लाने-ले जाने में मदद की।
कर्नल बताते हैं कि उन्हें अब भी वो पल याद हैं, जब बांग्लादेश के रूप में नए राष्ट्र का उदय हुआ और तब स्थानीय लोगों ने जय इंदिरा, जय मुजीब, जय बांग्ला, जय हिंद के नारे लगा कर गौरवान्वित किया।
सेवानिवृत्त मेजर जनरल एसके दत्त उस युद्ध में कुमाऊं रेजीमेंट में मेजर के रूप में मोर्चे पर थे। एक संस्मरण सुनाते हुए मेजर जनरल ने कहा कि हमारी विजय निश्चित थी और हम बुलंद हौसलों के साथ आगे बढ़ रहे थे, पर एक बार पाक सेना ने बमबारी की, तो हमारा एक सैनिक घबरा गया और पीछे की तरफ जाने लगा। इस पर दूसरे सैन्य अधिकारी ने उसे रोका और उसका मनोबल बढ़ाया।
मेजर जनरल के अनुसार उन्हें गर्व है कि उस विजयी युद्ध का हिस्सा थे और देश के लिए कुछ करने को मिला। इन सभी सैन्य अधिकारियों ने वीरगति को प्राप्त हुए अपने सभी साथियों को नमन किया और देशवासियों को विजय दिवस की बधाई दी।
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