क्राइम फाइल : हरेंद्र नागर
ड्यूटी के दौरान बलिदान होने वाले पुलिसकर्मियों को याद करने के लिए पूरे प्रदेश में 10 दिवसीय पुलिस झंडा दिवस मनाया जा रहा है।
जरा याद करो कुर्बानी
बलिदानी पुलिसकर्मियों को याद करने के लिए 21 अक्टूबर को पुलिस स्मृति दिवस के मौके पर महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है। ड्यूटी के दौरान बलिदान होने वाले पुलिसकर्मियों को याद करने के लिए पूरे प्रदेश में 10 दिवसीय पुलिस झंडा दिवस मनाया जा रहा है। पहले बलिदानी के परिवार को उस जिले में बुलाकर सम्मानित किया जाता था, जहां पुलिसकर्मी ड्यूटी करते बलिदान हुआ। अधिकतर पुलिसकर्मियों के परिवार दूसरे जिले में रहते हैं। इससे बलिदानी के स्वजन को आने-जाने में परेशानी होती थी। अब झंडा दिवस के तहत बलिदानी के जिले की पुलिस उनके घर जाकर कार्यक्रम का आयोजन कर रही है। स्थानीय निवासियों के सामने बलिदानी के परिवार को सम्मानित किया जाता है। बलिदानी के विषय में स्थानीय निवासियों को जानकारी दी जाती है। बलिदानियों के लिए पुलिस का प्रयास सराहनीय है। पुलिस अब बलिदानी की गली, मोहल्ले या गांव में जाकर कह रही है जरा याद करो कुर्बानी।
वापस आया इंस्पेक्टर राज
तत्कालीन पुलिस आयुक्त ओपी सिंह ने नई परिपाटी शुरू करते हुए कई थाने व क्राइम ब्रांचों में सब इंस्पेक्टरों को प्रभारी लगाया था। इससे काफी इंस्पेक्टर पुलिस लाइन में पहुंच गए थे। ये इंस्पेक्टर अंदर ही अंदर काफी कुढ़ रहे थे, मगर वे चुप रहे, क्योंकि कुछ कर नहीं सकते थे। जब भी चार इंस्पेक्टर साथ बैठते तो इस पर चर्चा जरूर होती थी। विकास कुमार अरोड़ा ने जिले में पुलिस आयुक्त का पदभार संभालने के बाद प्रभारी लगे सब इंस्पेक्टरों को धीरे-धीरे किनारे करना शुरू किया। यह कार्य इतनी सहजता और कुशलता से किया गया कि किसी को भनक भी नहीं लगी कि सारे सब इंस्पेक्टर किनारे लग गए हैं। अब लगभग सभी थानों और क्राइम ब्रांचों में इंस्पेक्टर प्रभारी बन चुके हैं। इसके चलते इन दिनों इंस्पेक्टरों की बांछें खिली हुई हैं। थाना व क्राइम ब्रांचों में इंस्पेक्टरी राज वापस जो आ गया है। खुशी तो बनती है।
बच्ची किससे कहे अपनी व्यथा
पांच साल पहले अपहरण हुई तीन महीने की बच्ची को कोतवाली थाना पुलिस ने ढूंढ निकाला है। पुलिस का यह कार्य काबिल-ए-तारीफ है। दिल्ली निवासी एक महिला को शादी के 14 साल बाद भी बच्चे नहीं हुए तो उसने अपनी बहन व एक युवक के साथ मिलकर बच्ची का अपहरण किया। बच्ची का अपहरण हुआ तब वह अबोध थी, अब पांच साल की हो गई है, जाने समझने लगी है। उसके लिए अपहरण करने वाली महिला ही उसकी मां है। असली मां-बाप उसके लिए अनजान हैं। बच्ची को फिलहाल शेल्टर होम में रखा गया है, लेकिन वह बार-बार मां (अपहरण करने वाली) के पास जाने की जिद करती है। इस छोटी सी उम्र में बच्ची अजीब भूलभुलैया में फंस गई है। होश संभालने के बाद जिसे उसने माता-पिता समझा, वे उसके कुछ नहीं हैं। अबोध बच्ची अपनी व्यथा कहे तो किससे कहे और उसकी सुनने और समझने वाला कौन है?
दीवाली से पहले निकल रहा दिवाला
लगता है वाहन चोरों ने भी इस बार ठीक-ठाक दीवाली मनाने की ठान ली है। तभी दीवाली से पहले वाहन चोरी की वारदात बढ़ गई हैं। रोज ही तीन से चार वाहन चोरी हो रहे हैं। क्या स्कूटी, क्या मोटरसाइकिल और क्या कार सभी पर हाथ साफ हो रहा है। इधर कुछ दिनों से पुलिस भी कुछ सुस्त सी लग रही हैं, पता नहीं कहां व्यस्त है। सुना है कि पुलिस भी दीवाली की तैयारियों में जुटी है, तभी चोरी की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रही। आप यह ना समझें कि पुलिस दीवाली के लिए सुरक्षा व्यवस्था की तैयारियों में जुटी है। दीवाली से संबंधित और भी तैयारियां करनी होती हैं। हमारे लेकर तो खूब तैयारी करे और जोर-शोर से दीवाली मनाए, मगर थोड़ा ध्यान शहरवासियों का भी कर ले। बेहतर हो कि कुछ ऐसे इंतजाम भी हो जाए कि दीवाली से पहले नागरिकों को दिवाला ना निकले।