कार सेवा का था चाव, राजकुमार-प्रेम स्वरूप ने खेला नौकरी का दांव

उस जमाने में मैं था तो कट्टर कांग्रेसी और सरकारी सेवा में भी था पर 1992 में अयोध्या जाने की तैयारी कर ली।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 03 Aug 2020 09:07 PM (IST) Updated:Tue, 04 Aug 2020 06:12 AM (IST)
कार सेवा का था चाव, राजकुमार-प्रेम स्वरूप ने खेला नौकरी का दांव
कार सेवा का था चाव, राजकुमार-प्रेम स्वरूप ने खेला नौकरी का दांव

सुशील भाटिया, फरीदाबाद

उस जमाने में मैं था तो कट्टर कांग्रेसी और सरकारी सेवा में भी था, पर 1992 में अयोध्या जाने की तैयारी कर ली। इस पर मुझे कुछ लोगों ने ताना मारा कि कांग्रेसी होकर भी कारसेवा के लिए जा रहे हो। तब मुझे यह बात चुभ गई। राम किसी एक के नहीं, वे तो सभी हिदुओं के हृदय में बसते हैं। मुझे प्रभु राम के मंदिर बनाने में योगदान देने से कौन रोक सकता है। बस नौकरी की परवाह किए बिना पहुंच गया अन्य कारसेवकों के साथ अयोध्या। कुछ इस अंदाज में औद्योगिक नगरी के सबसे बुजुर्ग कारसेवकों में से एक लगभग 89 वर्षीय राजकुमार शर्मा ने अपने संस्मरण सुनाने की शुरुआत की।

वर्ष 1932 अविभाजित भारत के झंग जिले (अब पाकिस्तान में) जन्मे और जिला उपायुक्त कार्यालय से उपाधीक्षक के पद से सेवानिवृत्त राजकुमार शर्मा के अनुसार, विवादित ढांचा उनके सामने गिरा और कई शहीद भी हुए। क‌र्फ्यू से बचते हुए वापस लौटे, तो अपने शहर में पुलिस उन्हें तलाश रही थी। इस पर अंडरग्राउंड होना पड़ा, पर पुलिस भाई को उठा ले गई। ऐसे में नौकरी पर संकट आ खड़ा हो गया था। खैर कुछ समय तक मामला गरम रहा। प्रभु राम के काम से गए थे, इसलिए नौकरी बच गई। अब बेहिसाब खुशी है कि मंदिर बन रहा है। सौभाग्यशाली हूं दो बार गया कारसेवा में

प्रेम स्वरूप खत्री 1990 व 92 में दोनों बार अयोध्या श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए कारसेवक बनकर गए। अब 84 वर्षीय खत्री ने बताया कि उस समय सरकारी प्रेस फर्म चेन्नई में कार्यरत थे, लेकिन प्रभु राम के प्रति भक्तिभाव व कारसेवा के प्रति चाव की वजह से अपनी नौकरी भी दांव पर लगा दी थी। अयोध्या में लालकृष्ण आडवाणी भाषण दे रहे थे। अचानक भगदड़ मची और जोशीले कारसेवक विवादित ढांचे के ऊपर चढ़ गए। देखते ही देखते ढांचा टूट गया। इसमें अशोक सिंहल को भी चोटें आई। प्रेम स्वरूप के अनुसार, अशोक सिंहल जी एक कार्यक्रम में फरीदाबाद आए थे। तब से उनका सानिध्य मिला था, इसलिए जान-पहचान हो गई। उनको चोट लगने पर अपना गमछा दिया बांधने को। वापसी पर एक अलग तरह की खुशी व चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे और अब ज्यादा खुशी इस बात की है कि दो बार की सेवा सफल हो रही है और अब मंदिर बनने जा रहा है। मुझे मिला बलिदानी कोठारी बंधुओं को कंधा देने का सौभाग्य : राधेश्याम

कारसेवकों में शुमार राधेश्याम शर्मा ऐसी शख्सियत हैं, जिन्हें राम मंदिर आंदोलन में विवादित ढांचे पर भगवा ध्वज लहराते हुए गोलियां खाकर शहादत देने वाले कोठारी बंधुओं रामकुमार और शरद की अर्थी को कंधा देने का मौका मिला। राधेश्याम कहते हैं कि 28 अक्टूबर को कठिन मार्गो से होते हुए रात-दिन कभी पैदल, कभी टेंपो से होते हुए रात्रि को गोसाईगंज पहुंचे थे। 30 अक्टूबर, 1990 को कोठारी बंधु देखते ही देखते विवादित ढांचे पर चढ़ गए और भगवा झंडा लहरा दिया। माहौल इस कदर जोशीला था कि हर तरफ हर-हर महादेव और जय श्रीराम के जयघोष के स्वर ही सुनाई दे रहे थे। इस पर पुलिस ने फायरिग शुरू कर दी थी और दोनों को बलिदान देना पड़ा। हम स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हैं कि ऐसे अमर बलिदानियों के अंतिम संस्कार में शामिल होने का अवसर मिला। जो लाठियां खाई, उसका अब पुण्यफल मिला : महेंद्र नागपाल

कारसेवा में 1990 में जाने वालों में शामिल बचपन से आरएसएस के स्वयंसेवक रहे महेंद्र नागपाल के अनुसार, वो किशन चंद भाटिया, अमीर चंद चावला, बंसी लाल सिदाना, सोहन लाल भाटिया, ओम प्रकाश के साथ गए थे। बड़ी संख्या में साधु संत भी थे। उनमें कई गुस्सैल थे और पुलिस कर्मियों से उलझ जाते थे। तब पुलिस ने हम लोगों को जेल में डाल दिया। 26 अक्टूबर को वहां लाठी चार्ज भी हुआ। एक साधु पर लाठी पड़ने पर उनके ऊपर लेट गया। लाठीचार्ज में बाएं हाथ पर फ्रेक्चर हो गया। अब पांच अगस्त को प्रधानमंत्री मंदिर निर्माण की नींव रख रहे हैं। बेहद खुशी का मौका है। यह हमारी कारसेवा का एक तरह से पुण्यफल है कि अपने सामने मंदिर बनता देखेंगे।

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