फोटोग्राफी में करते थे कमाल, अब तरबूज बेचते हैं लाल-लाल

वक्त का कुछ पता नहीं कैसे-कैसे दिन दिखा देता है। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि कोरोना वायरस जैसा संक्रमण देश ही नहीं पूरे संसार की आर्थिक स्थिति को डगमगा देगा। कोरोना वायरस से बचने के लिए लॉकडाउन ने आम आदमी के सामने बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 01 Jun 2020 07:31 PM (IST) Updated:Mon, 01 Jun 2020 07:31 PM (IST)
फोटोग्राफी में करते थे कमाल, अब तरबूज बेचते हैं लाल-लाल
फोटोग्राफी में करते थे कमाल, अब तरबूज बेचते हैं लाल-लाल

प्रवीन कौशिक, फरीदाबाद : वक्त का कुछ पता नहीं, कैसे-कैसे दिन दिखा देता है। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि कोरोना वायरस जैसा संक्रमण देश ही नहीं पूरे संसार की आर्थिक स्थिति को डगमगा देगा। कोरोना वायरस से बचने के लिए लॉकडाउन ने आम आदमी के सामने बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है। नौकरी-पेशा से लेकर दुकानदार व अपना कामकाज करने वाले सभी के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। इनमे से एक तिगांव निवासी उत्तम है। उत्तम का मूल पेशा शादी समारोह व अन्य बड़े कार्यक्रमों में फोटोग्राफी का है। अपने फन के माहिर उत्तम का काम ठीक-ठाक चल रहा था कि देश में कोरोना ने दस्तक दी और लॉकडाउन हो गया। उत्तम बेरोजगार हो गया।

लॉकडाउन के दो चरण तक तो कुछ जमा पूंजी चलती रही, लेकिन जब घर का खर्च चलाने में दिक्कत आने लगी तो उत्तम परेशान हो गया। हैरान- परेशान उत्तम कोई अन्य काम करने के बारे में सोचने लगा। अब काम शुरू करने के लिए रकम की जरूरत होती है, जो उत्तम के पास थी नहीं, इसलिए परेशानी बढ़ गई। उत्तम का गांव में ही एक दोस्त है गिरीश नागर जिसके पास अपनी पिकअप गाड़ी है। गिरीश की गाड़ी भी इन दिनों नहीं चल रही थी। इसलिए दोनों के बीच तालमेल बैठ गया और फिर नया काम करने पर सोच-विचार हुआ। काफी सोचने के बाद योजना बनी कि यमुना नदी किनारे खेतों से तरबूज लेकर आएंगे और इन्हें गांव-गांव जाकर बेचेंगे। काम कोई छोटा-बड़ा नहीं होता, बस इसी सोच के साथ दोनों की गाड़ी आगे बढ़ी। अब गाड़ी गिरीश की, पर खर्चा होगा, वह आधा-आधा और लाभ का बंटवारा भी इसी तरह होगा। अब दोनों ने तिगांव सहित अन्य गांव में जा-जाकर तरबूज बेचना शुरू कर दिया है। दिनभर तपती धूप में दोनों तपकर थोड़े-बहुत पैसे कमाकर परिवार का गुजारा कर रहे हैं। उत्तम बताते हैं कि उनके दो बेटी व एक बेटा है। घर चलाने के लिए कुछ करना था, इसलिए यही काम ठीक लगा जो कम पैसे में शुरू हो सकता था। उधर, गिरीश नागर ने बताया कि उसने गाड़ी किस्तों पर ली थी जिसकी 13 हजार रुपये हर महीने किस्त देनी होती है। इसलिए यदि इस काम को छोटा समझेंगे तो मुश्किलें बढ़ जाएंगी।

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