निर्जला एकादशी आज : आज भी कायम है मंदिर-गुरुद्वारों में घड़े-पंखे दान करने की परंपरा

वैसे तो वर्ष में 24 एकादशी आती हैं लेकिन इनमें निर्जला एकादशी का अलग ही महत्व है। निर्जला एकादशी पर वर्षों से चली आ रही बहन बेटियों और ब्राह्मणों को दान की परंपरा आज भी कायम है। अब चूंकि लॉकडाउन चल रहा है ऐसे में बहुत से लोग नर सेवा नारायण सेवा के महत्व को समझते हुए जरुरतमंद की मदद करने को आगे आ रहे हैं। निर्जला एकादशी के मनाने के तौरे-तरीकों की बात करें तो आज भी लोग अपनी बेटी के घर फल चीनी और शर्बत भेजते हैं। शहर के लोग मंगलवार होने वाली निर्जला एकादशी की तैयारियों में जुटे नगर आए। लोगों ने मटके और खजूर के पेड़ के पत्तों से बनाए गए पंखे खरीदे।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 01 Jun 2020 06:37 PM (IST) Updated:Mon, 01 Jun 2020 06:37 PM (IST)
निर्जला एकादशी आज : आज भी कायम है मंदिर-गुरुद्वारों में घड़े-पंखे दान करने की परंपरा
निर्जला एकादशी आज : आज भी कायम है मंदिर-गुरुद्वारों में घड़े-पंखे दान करने की परंपरा

अनिल बेताब, फरीदाबाद : वैसे तो वर्ष में 24 एकादशी आती हैं, लेकिन इनमें निर्जला एकादशी का अलग ही महत्व है। निर्जला एकादशी पर वर्षों से मंदिर-गुरुद्वारों और ब्राह्मणों को दान की परंपरा आज भी कायम है। कहीं-कहीं बहन-बेटियों के घर भी तरबूज, खरबूज, शर्बत भेजने का रिवाज है। अब चूंकि लॉकडाउन चल रहा है, ऐसे में बहुत से लोग नर सेवा, नारायण सेवा के महत्व को समझते हुए जरूरतमंद की मदद करने को आगे आ रहे हैं। सोमवार को शहरवासी 2 जून मंगलवार को निर्जला एकादशी पर किए जाने वाले दान-दक्षिणा की तैयारियों के तहत मटके और खजूर के पेड़ के पत्तों से बनाए गए पंखे खरीदते नजर आए। कृष्ण जी के कहने पर भीम ने रखा था व्रत

निर्जला एकादशी पर ब्राह्मणों को दान की परंपरा आज भी कायम है। लोग पितरों के नाम पर ब्राह्मणों को पंखा, चीनी, फल और फल दान देते हैं। ब्राह्मण पितरों के नाम का संकल्प करा कर दान स्वीकार करते हैं। बहुत से लोग एकादशी का व्रत रखते हैं। व्रत के संपन्न होने पर गाय को रोटी या आटे का पेड़ा भी खिलाया जाता है। सिद्धपीठ हनुमान मंदिर के पुजारी पंडित उमाशंकर के अनुसार एकादशी के व्रत का इतिहास पांडव काल से जुड़ा है। भगवान कृष्ण के कहने पर भीम ने ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष के दिन निर्जला एकादशी व्रत रखने को कहा था, इसके जरिए 24 एकादशी का फल मिलने की बात भगवान श्रीकृष्ण ने कही थी। तब से यह इस व्रत का महत्व बढ़ गया। तत्कालेश्वर शिव मंदिर के पंडित मनोज कौशिक कहते हैं कि निर्जला एकादशी का शास्त्रों में उल्लेख है। निर्जला एकादशी के महत्व को समझते हुए बहुत से लोग इस दिन दान-पुण्य करते हैं। अब चूंकि लॉकडाउन चल रहा है, तो ऐसे में लोग जरूरतमंद की मदद करके भी पुण्य कमा रहे हैं। शारीरिक दूरी का पालन करते हुए लगेंगे शर्बत के स्टाल

यूं तो लॉकडाउन-5 में सभी धार्मिक संस्थान बंद हैं, पर शारीरिक दूरी का पालन करते हुए निर्धारित समय में सेवा कार्यों को किया जा सकता है। श्रीराम मंदिर जवाहर कॉलोनी के प्रधान राम जुनेजा के अनुसार निर्जला एकादशी पर राह चलते लोगों को शर्बत पिलाने की परंपरा को कायम रखेंगे। इसके लिए शारीरिक दूरी के नियमों का ख्याल रखा जाएगा। बहुत से लोग पितरों के नाम से दान करते हैं, तो कई लोग एकादशी पर अपनी बहनों और बेटियों के घर जाकर फल और नकदी भी देते हैं। मैंने एकादशी पर अपनी बहन मोतिया देवी, मलका रानी और बेटी रूपा साहनी के घर फल और शर्बत भेजने के लिए खरीदारी की है।

-बंसी लाल कुकरेजा, एनआइटी नंबर पांच एकादशी पर अपनी बेटी कनिका गुलाटी के घर फल, चीनी, शर्बत और नकदी उपहार के रूप में भेजूंगी। बहन, बेटियों का तो हमेशा हक होता है। हमें इसका ध्यान रखना चाहिए।

-किरण जुनेजा, निवासी एनआइटी नंबर तीन मैं कई वर्षों से निर्जला एकादशी का व्रत रख रही हूं। इस दिन दान करने का बड़ा महत्व है। आजकल कोरोना संकट चल रहा है। ऐसे में हमें अपने घर के आसपास जो गरीब नजर आए, उसको खाद्य पदार्थ या रुपये-पैसों के दान से मदद करना भी से बड़ा पुण्य कार्य और नहीं है।

-ममता, बल्लभगढ़। निर्जला एकादशी हमारी सनातन संस्कृति का अहम हिस्सा है। हमने इस परंपरा को अपने बुजुर्गों से ग्रहण किया। बुजुर्गों ने सीख दी थी कि गर्मी के दिनों में मटके जरूर खरीदें। मंदिरों-गुरुद्वारों में दान दें। पहले मंदिर-गुरुद्वारों के बाहर खूब मटके रखे होते थे। भीषण गर्मी में राह चलते लोग मटकों से पानी पीते थे। मटकों की बिक्री होती है, तो कुम्हार को रोजगार मिलता है। ऐसे ही हाथ पंखों की खरीदारी से कुटीर उद्योग को बढ़ावा मिलता है। आज-कल लोग धार्मिक संस्थानों के लिए छत के पंखें दान करते हैं।

-केसी बांगा, मैनेजिग ट्रस्टी, समन्वय मंदिर सेक्टर-21

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