पहले विदेशी छात्र-छात्राएं खूब बेचते थे अंडाणु और शुक्राणु

-मामले की मुख्य आरोपित गिरधावर एन्क्लेव तिलपत पंचायत क्षेत्र की नीलम भी दिल्ली के आइवीएफ सेंटर में अंडाणु बेचने को महिलाओं को ले जाती थी एक केस में मिलते थे 5 हजार रुपये मिलते थे।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 08 Jul 2020 07:53 PM (IST) Updated:Wed, 08 Jul 2020 07:53 PM (IST)
पहले विदेशी छात्र-छात्राएं खूब बेचते थे अंडाणु और शुक्राणु
पहले विदेशी छात्र-छात्राएं खूब बेचते थे अंडाणु और शुक्राणु

अनिल बेताब, फरीदाबाद

किराए की कोख का कारोबार दिल्ली, एनसीआर में खूब फल-फूल रहा है। गरीब परिवार की महिलाओं के साथ ही विदेशी छात्र-छात्राएं भी आइवीएफ सेंटर में अंडाणु और शुक्राणु खूब बेचते रहे हैं। राजधानी दिल्ली में सरोगेट मदर के इस खेल से बड़ी संख्या में महिला-पुरुष एजेंट के रूप में जुड़े हैं। विदेशी छात्र-छात्राएं अंडाणु और शुक्राणु डोनेट करने पर 15 से 20 हजार रुपये हासिल कर लेते थे। कुछ हिस्सा एजेंट का भी होता था।

अवैध रूप से सरोगेसी के मामले में आगरा पुलिस की पकड़ में आई नीलम भी 6-7 साल पहले राजधानी दिल्ली के आइवीएफ सेंटर तक अंडाणु देने को महिलाओं को लेकर गई थीं, मगर इस सेंटर ने यह कह कर मना कर दिया था कि वे पंजीकृत एजेंट के माध्यम से ही महिलाओं के अंडाणु लेते हैं। बाद में नीलम एक महिला एजेंट के माध्यम से आइवीएफ सेंटर पर महिलाओं को ले जाने लगीं थी। वहां वह महिलाओं के अंडाणु दिलवाती थीं। वहां 15 हजार रुपये मिलते थे, जिसमें से पांच हजार रुपये नीलम ले लेती थीं। गिरधावर एन्क्लेव, तिलपत पंचायत क्षेत्र, फरीदाबाद निवासी नीलम ने यह जानकारी आगरा पुलिस को दी है। बता दें कि आगरा में 19 जून को नीलम, रूबी, प्रदीप और दिल्ली के अमित और राहुल को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इनसे तीन बच्चियां बरामद हुईं थीं। पूछताछ में पता चला कि नीलम अवैध रूप से सरोगेसी कराने के बाद बच्चियों को नेपाल ले जा रही थी। विदेशी दंपती का डीएनए मैच न होने पर उठा था मुद्दा

कई वर्ष पहले की बात है, एक विदेशी दपंती ने राजधानी दिल्ली के आइवीएफ सेंटर में सरोगेसी कराई थी। बच्चे के जन्म तक की सारी जिम्मेदारी आइवीएफ सेंटर की थी। डिलीवरी होने पर जब इस विदेशी दंपती को बच्चा सौंपा गया, तो डीएनए टेस्ट कराया गया। इन दिनों किसी भी विदेशी की सरोगेसी पर यहां प्रतिबंध है, मगर कुछ वर्ष पूर्व बड़ी संख्या में विदेशी यहां सरोगेसी कराते थे। सरोगेसी से जन्मे बच्चे को दूसरे देश की नागरिकता तभी मिलती थी, जब यहां उस देश के दूतावास विदेशी दंपती से बच्चे का डीएनए मैच करा लेते थे। उस समय जब डीएनए कराया गया, तो मैच नहीं हुआ था। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की जिलाध्यक्ष डॉ.पुनीता हसीजा कहती हैं कि सरोगेसी के गलत इस्तेमाल रोकने को हर सेंटर की निगरानी होनी चाहिए।

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