'हिफाजत हमसे है गुल की, भले हम खार हैं तो क्या'

राष्ट्रीय साहित्य मंच के स्थापना दिवस पर साहित्य सदन लीलावती एन्क्लेव में हुई काव्य-गोष्ठी में विभिन्न शहरों से आए कवियों ने कविताएं प्रस्तुत कर रंग जमाया। मंच के संरक्षक डा. दिनेश रघुवंशी ने मौजूदा हालात को देखते हुए गीतों में शहर व गांव का मूल्यांकन किया

By JagranEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 05:38 PM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 06:25 PM (IST)
'हिफाजत हमसे है गुल की, भले हम खार हैं तो क्या'
'हिफाजत हमसे है गुल की, भले हम खार हैं तो क्या'

जागरण संवाददाता, फरीदाबाद: राष्ट्रीय साहित्य मंच के स्थापना दिवस पर साहित्य सदन, लीलावती एन्क्लेव में हुई काव्य-गोष्ठी में विभिन्न शहरों से आए कवियों ने कविताएं प्रस्तुत कर रंग जमाया। मंच के संरक्षक डा. दिनेश रघुवंशी ने मौजूदा हालात को देखते हुए गीतों में शहर व गांव का मूल्यांकन किया- 'शहर में गहरे सन्नाटे या है केवल शोर, मुझे जिदगी ले चल फिर से गांव की ओर।' मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा कवि अशोक चंद्रवंशी ने आगे बढ़ने को प्रेरित किया- 'लक्ष्य बनाओ कदम बढ़ाओ, मुश्किलों से ना घबराओ।' राहुल वर्मा अश्क ने कहा- 'अश्कों को न बुलाओ, किनारा नहीं मिलेगा, मौका ये इस जहां में दोबारा नहीं मिलेगा।'

अब्दुल रहमान मंसूर ने भी अपने कलाम से रंग जमाया- 'पहले ये सोचता वो मुझसे जुदा न हो, अब चाहता हूं, उससे मेरा सामना न हो।' नंगला रोड, एनआइटी निवासी अजय अक्स ने कुछ इस तरह हकीकत बयान की- 'मोहब्बत के सभी पौधों को या रब सियासी बकरियों ने चर लिया है।' मनीष मौन ने कहा- 'निकालो न हमें यूं, हम भले बेकार हैं तो क्या, हिफाजत हमसे है गुल की, भले हम खार हैं तो क्या।'

आशीष नासवा की प्रस्तुति भी असरदार रही- 'वो आज भी दोस्तों में मुझे अपना दोस्त बताता रहा, साथ कोई देख न ले, यह डर भी सताता रहा।' एमएल गर्ग ने कहा- 'मुझको तन्हाइयों से डर लगता है, तेरी रुसवाइयों से डर लगता है।' बबीता पांडे ने भी उम्दा प्रस्तुति दी- 'वो मिट्टी के खिलौनों को सजा कर खेलना, घर-घर बनी कपड़े की वो गुड़िया पुरानी याद आती है।'

काव्य गोष्ठी का संचालन राहुल वर्मा ने किया। अब्दुल रहमान की अध्यक्षता में काव्य गोष्ठी संपन्न की गई। गोष्ठी में भाजपा की जिला उपाध्यक्ष महिला मोर्चा मेघना श्रीवास्तव विशिष्ट अतिथि थीं।

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