जोगिया द्वारे-द्वारे-जब दिमाग से नहीं दिल से बोले झंडी वाले पंडितजी

जब दिमाग से नहीं दिल से बोले झंडी वाले पंडितजी राजनीति में आमतौर पर नेता दिल से नहीं बल्कि दिमाग से बोलते हैं मगर इन दिनों झंडी वाले पंडितजी अपने धन्यवाद कार्यक्रमों में दिल से बोल रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 06 Dec 2019 06:24 PM (IST) Updated:Fri, 06 Dec 2019 06:24 PM (IST)
जोगिया द्वारे-द्वारे-जब दिमाग से नहीं दिल से बोले झंडी वाले पंडितजी
जोगिया द्वारे-द्वारे-जब दिमाग से नहीं दिल से बोले झंडी वाले पंडितजी

राजनीति में आमतौर पर नेता दिल से नहीं बल्कि दिमाग से बोलते हैं मगर इन दिनों झंडी वाले पंडितजी अपने धन्यवाद कार्यक्रमों में दिल से बोल रहे हैं। पिछले दिनों एक कॉलोनी में अपने धन्यवाद कार्यक्रम के दौरान उन्होंने लोगों के सामने दिल चीरकर दिखा दिया। बोले-मैंने क्या काम नहीं किया जो 18 हजार वोट उसे दे दीं। झंडी वाले पंडितजी बोले-मेरा कसूर तो बताओ? कुछ नरम तो कुछ गरम शब्दों में पंडितजी ने बहुत कुछ कहा मगर यह भी कहा कि वे द्वेष की राजनीति नहीं करेंगे। हां, उन्होंने यह जरूर कहा कि उनकी पंडिताई और ज्योतिष विद्या पर कोई शक नहीं करे क्योंकि उन्हें यह पता है कि किसने उनके चलते हुए ट्रक से गन्ना खींचा है। वे माथा देखकर पहचान लेते हैं। इस दौरान पंडितजी ने कुछ चुनौती भरे शब्द भी कहे मगर पंडितजी की इस शब्दावली से एक ही बात याद आई कि मनो के पिछले कार्यकाल में भी गुरुग्राम वाले अपनी तीन पीढि़यों की राजनीति का हवाला देते हुए कुछ ऐसे ही अपनी बादशाहत दिखाते हुए बोले थे। अब साहब सब कुछ होते हुए भी राजनीतिक फकीरी में दिन काट रहे हैं। खैर, पंडितजी के साथ ऐसा नहीं होगा क्योंकि वे सदपुरा की गोशाला से आया ताजा दूध पीते हैं। किसी के अरमान मर गए तो किसी की बांछें खिल गईं

मुखियाजी गुरुग्राम में और उपमुखियाजी औद्योगिक नगरी में जनशिकायतें सुनने प्रति माह आया करेंगे। यह खबर द्वितीय पंक्ति के नेताओं में जंगल की आग की तरह फैली। औद्योगिक नगरी में फैली इस आग से कुछ नेताओं ने तो बढ़ती ठंड से बचने को हाथ ताप लिए मगर कुछ ने तो अपना सब कुछ जला लिया। असल में हाथ तापने वाले नेताओं ने हरे और पीले रंग के कपड़े पहने थे तो जलने वालों ने थोड़ा हरा और ज्यादा भगवा रंग के कपड़े पहने हुए थे। एक 18 हजारी नेता तो ऐसा भी था जिसके कपड़े सफेद थे मगर वह भी खुश था। अब उपमुखिया जी जब औद्योगिक नगरी में आएंगे तब उनके सामने ठाकुर साहब भी चौड़े नजर आएंगे। ठाकुर साहब के पास दवाई बेचने का लाइसेंस है मगर वह उन्होंने किराये पर दिया हुआ है। अब वे नकली दवाई बेचने वालों पर लगाम लगाएंगे। भाई लोगों, ठाकुर साहब के धैर्य की परीक्षा भी कोई कम नहीं है। जिदगी बीत गई बेचारे ठाकुर साहब को हरी पगड़ी पहनते पहनते अब जरा पीले-हरे रंग की पगड़ी में कुछ उम्मीद जगी है। हारकर जीतना जानते हैं सौम्य नेताजी

सौम्य नेताजी हारकर जीतना जानते हैं। इसके अनेक उदाहरण हैं मगर अब ताजा उदाहरण उनकी अपनी बिरादरी की महासभा के प्रधान के चुनाव का है। सौम्य नेताजी को पता था कि बिरादरी में उनकी बात कोई नहीं टाल पाएगा मगर वे नहीं गए तो फिर कोई ..भी नहीं पाएगा। सो, सौम्य नेताजी चुनाव के अखाड़े में खुद ही उतर गए। अब हम तो पहले ही कह चुके हैं कि मुखियाजी के दम पर औद्योगिक नगरी में खाता न बही, जो सौम्य नेताजी कह दें वही सही। फिर क्या था, वहां सिद्धबाबा के मंझले पुत्र से लेकर पलवल के दबंग, सोहना के पंचायती और तिगांव वाले शरीफ गुर्जर भी थे। पांचों ने सौम्य नेताजी से ही प्रधान पूछ लिया। सौम्य नेताजी भी बचपन में कंचे के पक्के खिलाड़ी रहे हैं। वहां पिल्लू खोदते थे जहां जमीं मुलायम हो। सख्त जमीं पर तो कोई और ही पागल ऐढि़यों से जोर लगाता था।  खैर, सौम्य नेताजी ने ऐसा गैर विवादित नाम दिया कि सिद्धबाबा के मंझले पुत्र क्या पलवल, सोहना और तिगांव वाले ने भी मुहर लगा दी। सिद्धबाबा को मंझले पुत्र की यह हां में हां मिलाने की बात कुछ अच्छी नहीं लगी मगर अब वे भी शांत हैं क्योंकि मंझले बेटे ने इस बार चुनाव में सिद्धबाबा को अपना चमत्कार भी दिखा दिया था। डिपल बाबू और साध्वी पर मुखियाजी ने दिखाया लाड़

बड़ा आदमी बड़ा ही होता है। मुखियाजी ने भी इस बार राजनीतिक मजबूरी के चलते विधानसभा की कमेटियां बनवाते समय अपने कुछ लाड़लों पर ऐसा ही लाड़ दिखाया। पलवल के डिपल बाबू को स्थानीय निकाय और पंचायती राज संस्थानों की कमेटी तो साध्वी को शिक्षा,चिकित्सा कमेटी का अध्यक्ष बनवा दिया। मनो सरकार में पिछली बार ये दोनों ही पॉवरफुल रहे थे। डिपल बाबू हो या साध्वी ये दोनों मुखियाजी के अंधभक्त हैं। ऐसे कि कुछ तो अपनों के लिए जान ले लेते हैं, ये जान देने में भी पीछे नहीं हटेंगे। खैर, चलो कुछ ज्यादा ही हो गया, ये राजनीति है, यहां साधारण कुर्सी पर बैठे लोगों को रात तो छोड़ो दिन में भी ऐसे सपने आते हैं कि वे भी मुखियाजी की कुर्सी पर बैठ सकते हैं। अपनी औद्योगिक नगरी में से यूं तो चोटी वाले पंडितजी, शरीफ गुर्जर, लक्कीमैन सहित पृथला वाले आजाद क्षत्रिय को भी किसी न किसी कमेटी में लिया है मगर आजाद क्षत्रीय जिस कमेटी में हैं, वह कमेटी बहुत अहम है। शाम ढलते ही मुखियाजी से मिलने पहुंच गए चोटी वाले पंडितजी

एनआइटी से जीते चोटी वाले पंडितजी भी कुछ कम बड़े राजनीतिक खिलाड़ी नहीं हैं। पंडितजी पिछले दिनों मंगलवार के दिन दिन ढलते ही चंडीगढ़ मुखियाजी के निवास जा पहुंचे। यहां पंडितजी ने मुखियाजी से ऐसी पैठ बैठाई है कि अब आने वाले दिनों में मुखियाजी को एनआइटी में सबका साथ, सबका विकास का नारा चरितार्थ करना होगा। चलिए, चोटी वाले पंडितजी की बात चली है तो आपको छोटी सी कहानी पढ़ने पर मजबूर कर देते हैं। एक चिड़िया थी और उसकी चोंच में एक छोटी सी चीज थी। राजा जब अपने महल में शाम को छत पर खुली हवा का आनंद ले रहे थे तो वह राजा के महल की मुंडेर पर बैठकर बोली-मेरे पास जो चीज है, राजा के पास नहीं है। राजा ने अपनी सत्ता के बूते चिड़िया की चीज छीन ली। चिड़िया फिर महल की मुंडेर पर बैठकर चीखने लगी कि राजा चोर है, उसने मेरी चीज छीन ली। राजा ने बदनामी के डर से चिड़िया को चीज वापस कर दी, चिड़िया फिर मुंडेर पर बैठी और चहचहाने लगी कि राजा उससे डर गया, उसकी चीज वापस कर दी। वैसे यह कहानी सिर्फ आपके ज्ञानवर्धन के लिए है, इससे चोटी वाले पंडितजी का कोई लेना-देना नहीं है। अचानक न जाने अपने आलाधिकारी को क्या हो गया

आलाधिकारी देर से हरकत में आए मगर जब आए तो उन्होंने अपनी जुबान से वह वाक्य निकाल दिया जिसे लेकर औद्योगिक नगरी का प्रबुद्ध वर्ग आए दिन चर्चा करता है। असल में औद्योगिक नगरी में जो कर्मचारी या अधिकारी एक बार जाता है, उसका यहां से मोह भंग नहीं होता। ऐसा नहीं है कि सभी कर्मचारी या अधिकारी स्वार्थ के कारण ही औद्योगिक नगरी पर फिदा हैं, कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें यहां का सामाजिक माहौल पसंद आता है मगर ज्यादातर ऐसे हैं जो इस नगरी में लूट के ²ष्टिकोण से ही आते हैं। खैर, आलाधिकारी ने जिला अस्पताल में औचक निरीक्षण के दौरान जो कदम उठाए, उनकी सराहना तो हर व्यक्ति कर रहा है।

प्रस्तुति: बिजेंद्र बंसल

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