गुरु पूर्णिमा का पर्व इंसान के लिए सबसे बड़ा पर्व : सतगुरु कंवर साहेब

गुरु पूर्णिमा का पर्व इंसान के जीवन का सबसे बड़ा पर्व है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 24 Jul 2021 08:54 AM (IST) Updated:Sat, 24 Jul 2021 08:54 AM (IST)
गुरु पूर्णिमा का पर्व इंसान के लिए सबसे बड़ा पर्व : सतगुरु कंवर साहेब
गुरु पूर्णिमा का पर्व इंसान के लिए सबसे बड़ा पर्व : सतगुरु कंवर साहेब

जागरण संवाददाता, भिवानी : गुरु पूर्णिमा का पर्व इंसान के जीवन का सबसे बड़ा पर्व है क्योंकि हिदुस्तान की संस्कृति में गुरु का दर्जा ही सबसे बड़ा दर्जा है। गुरु पूर्णिमा पूर्णता का संदेश देती जो सेवा से ही संभव है। सेवा का भक्ति में विशेष स्थान है। सेवा आपको निखालिस बनाती है। सेवा भाव प्रेम और प्रीत जगाता है जो भक्ति के लिए अति आवश्यक है। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने दिनोद में स्थित राधास्वामी आश्रम में उपस्थित सेवादारों के सामने प्रकट किए। सेवादार कल गुरु पूर्णिमा के अवसर पर होने वाले वर्चुअल सत्संग की तैयारियों हेतु एकत्रित हुए थे।

हुजूर कंवर महाराज ने कहा कि संत तो इतने दयालु हैं कि जो छल कपट से भी भक्ति करता है उसकी भक्ति को भी अपना लेते हैं। उन्होंने कहा कि गुरु सेवक से सेवा करवाकर उसके अनेकों कर्म कटवाते हैं। हुजूर महाराज जीने कहा कि शिष्य को गुरुमुख होना चाहिए। शिष्य यदि इस बात को समझ ले कि गुरु की रजा हर विध से उसके लिए कल्याणकारी है। उन्होंने कहा कि यदि आपका संकल्प पक्का हो तो परमात्मा उस को पूरा करने के लिए सारी व्यवस्था पूरी कर देते हैं। उन्होंने कहा संत सतगुरु सबके मन की जानते हैं लेकिन फिर भी भोले बन कर रहते हैं।

गुरु महाराज ने कहा कि जो जीव गुरु की सेवा करता है वो जन्म-जन्म के बंधन को काटकर अपना कल्याण करवा लेता है इसलिए जितनी साध संगत की सेवा हो उतनी सेवा करो क्योंकि सेवा से आपमे मन में दया और प्रेम उपजेगा जो आपके सब छोटे विचारों को भा ले जाएगा।

उन्होंने राधास्वामी मत से जुड़े महाग्रंथ 'सार वचन सार' का विमोचन भी किया। सार वचन सार राधा स्वामी मत के प्रवर्तक स्वामी जी महाराज द्वारा रचित ग्रंथ 'सार वचन छंद बंद' का व्याख्या सहित भेद है। गुरु महाराज ने कहा कि संतों की मौज को संत ही जाने। उनकी बानी की व्याख्या कोई नहीं कर सकता लेकिन ये भी संतों की ही कोई मौज थी कि कोरोना महामारी के दौरान ये प्रेरणा हुई कि आज की पीढ़ी के लिए जटिल बन चुकी इस बानी को सरल किया जाए। हुजूर महाराज ने फरमाया कि बिना सतगुरु की रजा के ये संभव नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि संतमत और राधास्वामी मत एक दूसरे के पूरक हैं और इनमें वर्णित संतों की बानी को आत्मसात करके ही हम अपने इंसानी चोले को सार्थक कर सकते हैं।

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