सुशील 10 वर्षो से बने हैं बाल अधिकारों के सजग प्रहरी

सुरेश मेहरा भिवानी बाल अधिकारों को लेकर सुशील वर्मा की संजीदगी काबिलेतारीफ है। रा

By JagranEdited By: Publish:Wed, 20 Nov 2019 02:00 AM (IST) Updated:Wed, 20 Nov 2019 06:17 AM (IST)
सुशील 10 वर्षो से बने हैं बाल अधिकारों के सजग प्रहरी
सुशील 10 वर्षो से बने हैं बाल अधिकारों के सजग प्रहरी

सुरेश मेहरा, भिवानी : बाल अधिकारों को लेकर सुशील वर्मा की संजीदगी काबिलेतारीफ है। राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व सदस्य रह चुके ये शख्स हरियाणा राज्य में जरूरतमंद बच्चों के अधिकारों की लड़ाई पिछले दस साल से लड़ रहे हैं। वे अब तक सैकड़ों गुमशुदा बच्चों को उनके घर पहुंचा चुके हैं। गुमशुदा बच्चों और उनके परिजनों की व्यथा पर उन्होंने आसमान से बिछड़े तारे'' नाम से एक डाक्यूमेंट्री भी बनाई थी। यह पिछले साल बाल अधिकार दिवस पर रिली•ा की गई थी। इस डाक्यूमेंट्री को भारत सरकार के राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा भी सराहा गया था।

आयोग सदस्य के तौर पर कार्यकाल पूरा होने के बाद अब सुशील वर्मा बाल क्रांति संस्था के बैनर तले •ारूरतमंद बच्चों के लिए काम कर रहे हैं। वर्ष 2014 में बाल अधिकारों के विषय पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा न्यूयॉर्क में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमीनार में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। बच्चों की तकलीफ देख वह खुद तड़प उठते हैं। बालक शुभम को दिया नया जीवन बात 2012 की है। सड़क दुर्घटना में पिता और मामा की मौत हो गई थी। बालक शुभम मोटरसाइकिल पर उनके साथ था वह बच गया था। उसकी गर्दन में गंभीर चोट होने के चलते वह पांच साल से बिस्तर पर था। 10 नवंबर 2017 को इस बच्चे की व्यथा की खबर प्रमुखता से प्रकाशित की तो दैनिक जागरण की खबर पढ़ सुशील वर्मा अगले दिन 11 नवंबर को उनके घर पहुंचे। शुभम का गरीब परिवार बच्चे का आपरेशन का खर्च वहन करने में असमर्थ था। सुशील ने उस बच्चे का पूरा खर्च खुद वहन करने का निर्णय लिया। दिल्ली एम्स में इस बालक के आप्रेशन की तारीख 26 जनवरी 2018 मिली। लेकिन आप्रेशन 17 फरवरी को हो पाया। 21 फरवरी 2017 को अस्पताल से छुट्टी मिली। यूं कहें कि सुशील के प्रयासों से शुभम अब सामान्य जीवन जी रहा है। आप्रेशन पर एक लाख से ज्यादा खर्च आया जो इन्होंने खुद वहन किया। नेपाल के लापता बालक संदीप को उसके घर पहुंचाया एक अन्य मामले की बात करें तो नेपाल का संदीप नाम का बालक सात साल की उम्र में घर से लापता हो गया था। वह डेढ़ साल से बाल सेवा आश्रम भिवानी में रह रहा था। उसको सिर्फ अपनी दादी का नाम और यह पता था कि गांव के पास एक नदी है। उसे अथक प्रयास करके नेपाल में घर पहुंचाया। एक अन्य घटना पानीपत की है। स्कूल बस से बच्चा उछल कर नीचे गिर गया था, जिससे उसकी मौत हो गई थी। उसे न्याय दिलाने के लिए तीन दिन भूख हड़ताल की। स्कूल संचालक पर भी कार्रवाई हुई। उन्होंने स्कूली बच्चों की सुरक्षित यातायात के लिए जनहित याचिका दायर की है। जिसकी अगले साल 9 जनवरी को हाई कोर्ट सुनवाई होनी है। सुशील कहते हैं कि जरूरतमंद बच्चों को उनके वाजिब हक मिलें इसके लिए निरंतर संघर्ष करना उनके जीवन का हिस्सा बन चुका है।

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