माननीयों की सुरक्षा पर कितना हो रहा खर्च, यह बताने में हिचक रहा गृह मंत्रालय
हरियाणा प्रदेश में माननीयों की सुरक्षा पर हर साल भारी भरकम खर्च
जागरण संवाददाता, भिवानी : हरियाणा प्रदेश में माननीयों की सुरक्षा पर हर साल भारी भरकम खर्च किया जा रहा है। इसकी सूचना देने में हरियाणा गृह मंत्रालय हिचक रहा है। स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन के प्रदेश अध्यक्ष बृजपाल सिंह परमार ने राज्य गृह मंत्रालय के अतिरिक्त मुख्य सचिव से जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत प्रदेश में माननीयों को दी जा रही सुरक्षा पर होने वाले बजट खर्च से संबंधित सूचना मांगी थी। 29 जून को यह आरटीआइ लगाई गई थी। आरटीआइ में यह भी सूचना मांगी गई कि मुख्यमंत्री, सांसद, बोर्ड अध्यक्षों, जिला अध्यक्षों, राज्य सूचना आयोग सहित अन्य वीआइपी को किस श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराई गई है, यह भी जवाब मांगा गया था।
बृजपाल सिंह परमार की आरटीआइ के जवाब में गुप्तचर विभाग के डीजीपी कार्यालय पंचकूला ने जवाब भेजा, जिसमें यह बताया गया कि इस जानकारी दी जा सकती। इसके प्रकटन से किसी की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। बृजपाल सिंह परमार ने बताया कि वीआइपी लोगों की सुरक्षा के नाम पर हर साल करोड़ों रुपयों का बजट जनता के टैक्स से मिले पैसे से खर्च किया जा रहा है। इस सूचना पर आम आदमी को भी जानकारी का आरटीआइ के तहत अधिकार है, लेकिन गृह मंत्रालय सुरक्षा कारणों का हवाला देकर आरटीआइ का ही गुमराह करने वाला गोलमोल जवाब दे रहा है।
बृजपाल सिंह ने बताया कि इस मामले की प्रथम अपील की गई है। अगर सही जवाब नहीं मिला तो राज्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया जाएगा। यह मांगी गई थी जानकारी :
1. मुख्यमंत्री, मंत्री, एमएलए, बोर्ड अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष, सूचना आयोग व अन्य वीआइपी लोगों पर सुरक्षा के नाम पर कितनी राशि खर्च की जा रही है।
2. इन माननीयों की सुरक्षा के लिए अलग-अलग कितने सुरक्षा कर्मचारी कर्मचारी लगाए गए हैं।
3. माननीयों पर कुल कितना बजट वर्ष और महीने के हिसाब से खर्च किया जा रहा है।
4. वीआइपी लोगों के अलावा जिनको सुरक्षा दी गई है उनके नाम सहित जानकारी दी जाए। बॉक्स.
बजट का बड़ा हिस्सा वीआइपी या नेताओं की सुरक्षा पर खर्च किया जा रहा है। स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन ने इसके बारे में जानकारी जुटाने के लिए आरटीआइ से जानकारी मांगी थी लेकिन इसे लेकर गोलमोल जवाब दिया गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि सुरक्षा कारणों के लिए चलते इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सका। ऐसा होने से किसी की जान तक को खतरा हो सकता है। इसलिए इसे ओपन नहीं किया जा सकता। सही बात तो यह है कि जनता को इसके बारे में पता चलना चाहिए। इसलिए आरटीआइ के माध्यम से जानकारी मांगी गई थी।
- बृजपाल परमार, प्रदेश अध्यक्ष, स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन।