मास्क तो पहनिए ही चाहे जहां रहें, क्योंकि हैं आप कार में, सरकार में नहीं
कोरोना काल की विषम परिस्थितियों के बावजूद कवि समाज लोगों को जागरूक करने व अपना दायित्व निभाने के प्रति पूर्ववत वचनबद्ध है।
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़:
कोरोना काल की विषम परिस्थितियों के बावजूद कवि समाज लोगों को जागरूक करने व अपना दायित्व निभाने के प्रति पूर्ववत वचनबद्ध है। यह कहना है कलमवीर विचार मंच के संस्थापक कृष्ण गोपाल विद्यार्थी का। उन्होंने बताया कि इसी क्रम में रविवार को काव्य रसिकों के लिए ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें बहादुरगढ़ के अलावा रोहतक, जींद, चरखीदादरी और गुरुग्राम के रचनाकारों ने भी शिरकत की। कार्यक्रम का शुभारंभ कवि कलाकार वीरेंद्र कौशिक की पंक्तियों से हुआ। उन्होंने कहा कि कुदरत ने ढाया ये कैसा कहर है, दुखी गांव हैं और परेशां शहर है। घरों में भी बैठे हैं हम मास्क पहने, मगर जान की फिक्र आठों पहर है।
चरखीदादरी की चर्चित कवयित्री पुष्पलता आर्य ने देश के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी का हवाला देते हुए ठूंठ हो चुके पेड़ों के माध्यम से यह संदेश दिया कि आंसू के बदले सुख के झरने देते, मित्र हमें भी कुछ सांसें भरने देते। रो-रो कर पेड़ों के ठूंठ ये बोले, गर हम जीते तो यूं न तुम्हें मरने देते! जींद की प्रसिद्ध कवयित्री शकुंतला काजल ने वर्तमान कोरोना प्रकोप का प्रमुख कारण लोगों की लापरवाही को बताया। उन्होंने कहा कि गंगा मैया रो रही, रोवें सूने घाट। कब लौटेंगी रौनकें, जोह रहे हम बाट। जोह रहे हम बाट, बात पर इतनी कहते, खड़ी न होती खाट अगर सब हद में रहते। गुरुग्राम की कवयित्री सुशीला यादव ने कोरोना के प्रकोप से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करते हुए कहा कि कोरोना प्रकोप ये दिन दिन बढ़ता जाय, ना राहत ना राह कोई बनी जान पर आय! हे गिरधर गोपाल तुम्हीं अब पीर हरो ना! ऐसा चक्र चलाओ भागे दूर कोरोना! कुमार मोनू राघव ने कोरोना गाइडलाइन के पालन का आह्वान करते हुए व्यंग्य किया कि धीरे-धीरे चलिए, रफ्तार में नहीं। अकेले में रहिए, भरमार में नहीं। मास्क तो पहनिए ही चाहे जहां रहें, क्योंकि हैं आप कार में सरकार में नहीं। रोहतक के चर्चित व्यंग्यकार पवन मित्तल ने कोरोना त्रासदी का मार्मिक शब्द चित्र प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि स्वजनों द्वारा विसर्जित अस्थियां, गंगा में प्रवाहित होकर, विलीन हो जाती थी पंचतत्वों में,
अब इस परिवर्तन के दौर में, अस्थियों की जगह शरीर बह रहे, क्योंकि विषाणु के खौफ ने, सबको कर दिया है अकेला। कार्यक्रम का समापन संयोजक वीरेंद्र कौशिक के आभार ज्ञापन के साथ हुआ।