पर्यावरण संरक्षक के साथ आय का सहारा रहे वृक्ष

पेड़-पौधे हमारे जीवन में न केवल छाया और ऑक्सीजन देने का काम करते हैं बल्कि वे किसानों की आमदनी का एक बड़ा जरिया रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 02 Jul 2020 07:03 PM (IST) Updated:Fri, 03 Jul 2020 06:17 AM (IST)
पर्यावरण संरक्षक के साथ आय का सहारा रहे वृक्ष
पर्यावरण संरक्षक के साथ आय का सहारा रहे वृक्ष

महावीर यादव, बादशाहपुर (गुरुग्राम)

पेड़-पौधे हमारे जीवन में न केवल छाया और ऑक्सीजन देने का काम करते हैं, बल्कि वे किसानों की आय का बड़ा सहारा रहे हैं। किसान अपना घर बनाने से लेकर खेती में प्रयोग होने वाले उपकरणों के लिए अपने खेत में लगे पेड़ों की लकड़ी का उपयोग करते रहे हैं। आधुनिकता के इस दौर में लोगों के लिए पेड़-पौधों का महत्व बेशक काम हो गया हो, मगर आज भी हम पीपल और वट जैसे पेड़ों की पूजा करते हैं। नीम, शीशम और कीकर (देसी बबूल) जैसे पेड़ किसानों की आर्थिक मदद करने के साथ-साथ ईधन और औषधीय फल देने में भी सहायक हैं।

दैनिक जागरण ने पेड़-पौधों की महत्ता के बारे में आज अनेक लोगों से चर्चा की। उसमें यह बात उभर कर सामने आई है। अब किसानों के पास खेती-बाड़ी के लिए आधुनिक उपकरण है। कुछ समय पहले तक जब किसान अपने हल-बैल के साथ खेती करते थे। उसमें प्रयोग होने वाले अधिकतर उपकरण किसान अपने खेतों में उगने वाले पेड़ों को काटकर ही बनाते थे। बैलगाड़ी से लेकर हल और मैज किसान अपने खेत में पेड़ काटकर ही बढ़ई से तैयार कराते थे, जिससे उनका काफी खर्चा बच जाता था।

बादशाहपुर निवासी महेश यादव कहते हैं कि पहले जमाने में जब किसान अपना घर बनाते थे तो अपने खेतों में लगे पेड़ को काटकर ही घर के दरवाजे बनवाते थे। धनीराम बोकन बताते हैं की अब किसानों ने खेतों में पौधे लगाने कम कर दिए हैं। पहले किसान खेतों की मेड़ पर काफी पौधे लगा देते थे। नीम और शीशम जैसे पेड़ तो किसानों के लिए एक वरदान साबित होते थे। जब यह पेड़ बड़े हो जाते थे तो इनको बेचकर कई तरह के काम चलाते थे।

किसान नरेश कुमार ने बताया कि पहले गैस चूल्हे का जमाना नहीं था। लोगों के घरों में चूल्हे पर ही खाना पकाने का काम होता था। उस समय लोगों के लिए ईंधन के रुप में भी पेड़ एक बड़ा सहारा बनते थे। कई पौधों के फलों से दवाइयां भी बनाने का काम किया जाता था।

पौधारोपण में खूब लिया भाग, देखभाल पर नहीं दिया ध्यान

बरसात के मौसम में कई संगठन पौधारोपण के प्रति बेहद जागरूक रहते हैं। जगह-जगह पौधारोपण के कार्यक्रम चलाते हैं। युवा पीढ़ी भी स्कूलों में या गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के साथ मिलकर पौधारोपण में भाग लेती है। कई युवकों से जब बातचीत की गई तो उन्होंने पौधारोपण में भाग लेने की बात तो कही, लेकिन उसके बाद उन पेड़ों की देखभाल करने से इंकार कर दिया। ऐसे पौधे रखरखाव के अभाव में लगाए जाने के कुछ समय बाद ही दम तोड़ जाते हैं।

हर वर्ष काफी संख्या में पौधे लगाए जाते हैं, पर उनकी देखभाल ना होने की वजह से यह पौधे वृक्ष का रूप नहीं ले पाते। पौधारोपण में हिस्सा लेने वाले अधिकतर युवा स्वीकार भी करते हैं कि उन्होंने कभी भी पौधारोपण के बाद उन पौधों का हाल नहीं देखा। एडवोकेट हेमंत शर्मा कहते हैं कि वे हर वर्ष पौधारोपण में तो किसी न किसी संगठन के साथ भाग लेते हैं। पौधे भी काफी संख्या में लगाए। इस बात का उनको एहसास ही नहीं हुआ कि इन पौधों को लगाने के बाद देखभाल करना भी जरूरी है। जब पौधों की देखभाल होगी, तभी वह पेड़ का रूप ले पाएंगे।

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