ट्रेन में जगह थी 1400 की पहुंच गए 1950, 170 कामगारों को लौटाया बहादुरगढ़

पश्चिम बंगाल में अपने घर जाने की हसरत से मकान खाली करके गए 170 कामगारों को दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर होना पड़ा।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 01 Jun 2020 07:30 AM (IST) Updated:Mon, 01 Jun 2020 07:30 AM (IST)
ट्रेन में जगह थी 1400 की पहुंच गए 1950, 170 कामगारों को लौटाया बहादुरगढ़
ट्रेन में जगह थी 1400 की पहुंच गए 1950, 170 कामगारों को लौटाया बहादुरगढ़

जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : पश्चिम बंगाल में अपने घर जाने की हसरत से मकान खाली करके गए 170 कामगारों को दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर होना पड़ा। गुरुग्राम से पश्चिम बंगाल को जाने वाली ट्रेन में जगह तो 1400 सवारियों की थी लेकिन विभिन्न जिलों से वहां पहुंच गए 1950। ऐसे में बहादुरगढ़ से भेजे गए 206 कामगारों में से सिर्फ 36 को ही सीट मिल सकी। शेष कामगारों को गुरुग्राम से बहादुरगढ़ वापस भेज दिया गया। यहां पर वे रात को 12 बजे वापस बहादुरगढ़ बस स्टैंड पहुंचे और पूरी रात उन्हें यहीं बितानी पड़ी।

भूखे-प्यासे कामगार व उनके बच्चों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

रविवार सुबह करीब 11 बजे जब कामगारों ने घर भेजने की मांग पर हंगामा करना शुरू किया तो मौके पर पहुंची पुलिस ने उन्हें बस स्टैंड से बाहर निकाल दिया तथा उनके पहले वाले ठिकानों पर जाने की हिदायत दी। हालांकि इस दौरान मोक्ष सेवा समिति ने सभी लोगों को खाना व बच्चों के लिए दूध-बिस्किट का प्रबंध किया। उधर, प्रशासन ने दोपहर बाद गुरुग्राम से वापस आए कामगारों के लिए बालौर कालेज में बनाए गए शेल्टर होम को भी खोल दिया है। उन्हें सूचना भी दी गई, मगर शाम तक एक भी कामगार शेल्टर होम नहीं पहुंचा था। कामगारों की परेशानी की कहानी, सुनिये उन्हीं की जुबानी..

अमीनुर हक बताते हैं कि मैं बहादुरगढ़ में काफी समय से जूता कंपनी में काम करता था। परनाला में परिवार समेत किराये पर रहता था। यहां पर मकान मालिक ने दो माह का किराया माफ कर दिया लेकिन अब कंपनी चालू होने के बाद हमें काम नहीं मिल सका। अब हमें परेशानी हो रही है और हम घर जाना चाहते हैं। पश्चिम बंगाल के कूच बिहार में उनका घर है। वहीं जाने के लिए शनिवार को प्रशासन ने गुरुग्राम भिजवाया था लेकिन ट्रेन में जगह नहीं मिली। वापस बहादुरगढ़ भेज दिया। अब पुलिस वाला आया था वो कह रहा जहां रहते थे वहीं चले जाओ। हम मकान खाली करके आ गए। मकान मालिक ताला बंद करके चला गया। फोन भी नहीं उठा रहा है। ऐसे में हम कैसे घर चले जाएं। हम तो घर जाना चाहते हैं हमें हमारे घर भिजवा दिया जाए बस। कई दिन बिना खाना खाए बिताए, अब नहीं करता यहां रहने को मन

सुधन मंडल बताते हैं कि नूना माजरा में एक ठेकेदार के साथ मजदूरी करता हूं। मैं भी कूच बिहार पश्चिम बंगाल का रहने वाला हूं। परिवार समेत नूना माजरा में ही किराये पर रहता हूं। मकान मालिक ने किराया तो माफ कर दिया लेकिन अब हम मकान खाली करके आ गए थे। सुधन ने बताया कि लॉकडाउन में हम पहले भी कई दिन तक भूखे-प्यासे रहे। आज भी 24 घंटे से हमने कुछ नही खाया पीया है। प्रशासन हमारे खाने-पीने का प्रबंध भले ही ना करें लेकिन हम घर जाना चाहते हैं। हमें घर भिजवाने प्रबंध जरूर कर दें।

दो माह से चल रहे परेशान, न खाना है न ही पैसा

पश्चिम बंगाला के कूच बिहार के रहने वाले सकीना, अंजनी व उसका भाई राहुल गिरी बताते हैं कि हम जूता बनाने की फैक्ट्री में काम करते थे। लॉकडाउन की वजह से घर में ही कैद हो गए। काम मिल नहीं रहा। पैसा है नहीं। खाना भी नहीं है। मकान मालिक ने दो माह का किराया तो माफ कर दिया लेकिन अब उसने भी कहा कि आगे किराया देना पड़ेगा। ऐसे में उन्होंने मकान खाली करके अपने घर जाना ही बेहतर समझा। मगर अब तो ना इधर के रहे और ना ही उधर के। दो दिन से बसों में ही धक्के खा रहे हैं।

बहादुरगढ़ से 206 कामगारों को पश्चिम बंगाल भेजने के लिए बसों में गुरुग्राम भेजा गया था। जो ट्रेन पश्चिम बंगाल जानी थी, उसमें जगह 1400 की थी और कई जिलों से वहां कामगार पहुंच गए 1950। ऐसे में यहां से भेजे गए लोगों को वापस बहादुरगढ़ भेज दिया गया। अब उनके लिए बालौर कालेज का शेल्टर होम खोल दिया गया है। जो भी कामगार गुरुग्राम से वापस आया है, जब तक उसके घर जाने का प्रबंध नहीं होता तब तक वह शेल्टर होम में आकर ठहर सकता है।

-तरुण पावरिया, एसडीएम, बहादुरगढ़।

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