अब उतर रहा है अस्पतालों पर चढ़ा डेंगू के प्रकोप का बुखार, दाखिल मरीजों में आई कमी

रोजाना भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या में भी आधे से ज्यादा कमी आ गई है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 15 Nov 2021 05:42 PM (IST) Updated:Mon, 15 Nov 2021 05:42 PM (IST)
अब उतर रहा है अस्पतालों पर चढ़ा डेंगू के प्रकोप का बुखार, दाखिल मरीजों में आई कमी
अब उतर रहा है अस्पतालों पर चढ़ा डेंगू के प्रकोप का बुखार, दाखिल मरीजों में आई कमी

जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ :

मौसम में बदलाव के चलते अस्पतालों पर चढ़ा डेंगू के प्रकोप का बुखार अब उतर रहा है। अस्पतालों में दाखिल मरीजों में अब कमी आ रही है। रोजाना भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या में भी आधे से ज्यादा कमी आ गई है। हालांकि लोगों को इस महीने के आखिर तक सावधानी बरतनी होगी। जिले में डेंगू के मरीजों की संख्या अब तक 255 का आंकड़ा छू चुकी हैं। इनमें से 100 से ज्यादा बहादुरगढ़ क्षेत्र के हैं। निजी अस्पतालों में दाखिल मरीजों की संख्या हुई कम:

डेंगू के केस तो आ रहे हैं, लेकिन शहर के निजी अस्पतालों में अब दाखिल मरीजों की संख्या कम हो गई है। 10 दिन पहले तक जो स्थिति थी, अब उसमें बदलाव आ गया है। सोमवार को बहादुरगढ़ में डेंगू का नया एक केस ही मिला। औसतन जितने मरीज रोजाना निजी अस्पतालों में भर्ती होते थे, उसके मुकाबले अब संख्या कम है। चिकित्सकों का मानना है कि बारिश के बाद बुखार का सीजन आता है। इसमें जरूरी नहीं होता कि बुखार के सभी मामले डेंगू के ही हों। निजी अस्पतालों में जो डेंगू का प्राथमिक टेस्ट किया जाता है, उसमें यह पाजीटिव अधिकतर मामलों में पाजीटिव आ जाता है। जहां तक प्लेटलेट्स की बात है तो वे हर बुखार में कम होते हैं। डेंगू की पुष्टि एलाइजा टेस्ट से होती है। इधर, ठंड बढ़ने से अब मच्छरों की सक्रियता कम हो रही है। रात का तापमान धीरे-धीरे कम हो रहा है। इससे मच्छर का नया लार्वा नहीं पनप रहा है। दूसरा, अब गर्म कपड़े भी निकले आए हैं। शरीर को पूरी तरह ढकने वाले कपड़ों का इस्तेमाल हो रहा है। ऊपर से प्रदूषण का भी मच्छरों पर असर पड़ा है। मगर फिर भी नवंबर के आखिर तक सावधानी बरतनी होगी। उसके बाद ठंड और बढ़ेगी तो डेंगू का मच्छर भी लगभग खत्म हो जाएगा। प्लेटलेट्स के लिए अभी भी है दिक्कत :

डेंगू बुखार में मरीजों के लिए प्लेटलेट्स जुटाना बड़ी चुनौती है। वैसे तो इसमें बुखार उतारने के अलावा दूसरी दवा से परहेज किया जाता है। लिक्विड पर ही जोर दिया जाता है। मगर जब प्लेटलेट्स की जरूरत पड़ती है, दिक्कत तब आती है। पिछले दिनों कई निजी अस्पतालों में तो किट भी खत्म हो गई थी। हालांकि अब किट की समस्या नहीं है। मरीज भी पहले से कम हो गए हैं। आरजे अस्पताल के संचालक राजेश जून ने बताया कि पहले रोजाना जितने मरीज दाखिल रहते थे, उनके मुकाबले संख्या अब लगभग आधी है। रोजाना आने वाले मामले कम ही हो रहे हैं। इस महीने के आखिर तक लोगों को ज्यादा सावधानी बरतनी होगी। अभी नए केस आ रहे हैं। जहां पर केस निकले हैं, वहां पर मच्छरदानी दी गई है। मरीजों को तो हर हाल में मच्छरदानी में ही रखा जा रहा है।

--डा. सरिता गौरी, उप सिविल सर्जन एवं नोडल अधिकारी, झज्जर

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