36 साल पहले आई चंद्रावल से छाई, शिक्षा की कसक बेटियों से की पूरी

जीजा तूं काला मैं गोरी घनी मेरा चूंदड़ मंगा दे ओ ननदी के बीरा और गाड़े आली गजबण छोरी जैसे सुपरहिट गीतों के साथ साल 1984 में हरियाणवी फिल्म चंद्रावल पर्दे पर आई तो बिजली का चरित्र निभाती रेखा सरीन भी दिखीं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 22 Feb 2019 02:02 AM (IST) Updated:Fri, 22 Feb 2019 02:02 AM (IST)
36 साल पहले आई चंद्रावल से छाई, शिक्षा की कसक बेटियों से की पूरी
36 साल पहले आई चंद्रावल से छाई, शिक्षा की कसक बेटियों से की पूरी

पवन पासी, अंबाला शहर

जीजा तूं काला मैं गोरी घनी, मेरा चूंदड़ मंगा दे ओ ननदी के बीरा और गाड़े आली गजबण छोरी जैसे सुपरहिट गीतों के साथ साल 1984 में हरियाणवी फिल्म चंद्रावल पर्दे पर आई तो बिजली का चरित्र निभाती रेखा सरीन भी दिखीं। फिल्म हिट हुई तो रेखा भी पर्दे पर छा गई। महज 16 साल की उम्र में फिल्मों में अभिनय का सफर शुरू करने वाली रेखा आगे चलकर गुलाबो, छोटी साली और के सूफने का जिक्र जैसी फिल्मों में अभिनेत्री की मुख्य भूमिका में दिखीं। छोटी साली के लिए बेस्ट एक्टर का पुरस्कार भी मिला। यह वह दौर था, जब लड़कियों के लिए घर से निकल नौकरी करना तक ठीक नहीं समझा जाता था, जबकि रेखा वर्जनाएं तोड़ फिल्मी पर्दे का रास्ता तय कर रही थीं। हालांकि कम उम्र में शुरू हुए इस सफर से कहीं न कहीं पढ़ाई लिखाई पीछे छूट गई थी।

अभिनय के दम पर खेल एवं युवा कार्यक्रम विभाग में वाईसीओ के तौर पर नौकरी लगी, तो फिल्मों में सीधे भूमिका निभाने वाला सफर ठहर गया। उस हौसले में कमी नहीं आई, जिसके दम पर फिल्मों में आई थीं। साल 1994 में संदीप सरीन से हुई शादी के अगले साल पहली बेटी तो साल 1997 में दूसरी बेटी ने जन्म लिया। जिस दौर में घर में लड़के के जन्म के बिना परिवार पूरा नहीं माना जाता था, तब रेखा ने दोनों बेटियों को ही अपना बेटा मानते हुए परिवार को पूरा मान लिया। उच्च शिक्षा हासिल करने की जो कसक मन में रह गई थी, वह अब बेटियों को पढ़ा लिखा कर पूरा कर रही हैं। बड़ी बेटी समृद्धि सरीन पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं, तो छोटी बेटी गरिमा एमबीए कर रही हैं।

रेखा सरीन ने अपने फिल्मी सफर में झांकते हुए बताया कि साल 1982 में जब एशियन खेल हो रहे थे, तब वे खेलों में हरियाणवी नृत्य की प्रस्तुति देने वाली छात्राओं का नेतृत्व कर रही थीं। वहीं, चंद्रावल के डायरेक्टर देवी शंकर प्रभाकर और उनके बेटे जयंत प्रभाकर और उषा शर्मा भी थे। जयंत ने उसे फिल्म में नृत्य के लिए मौका दिया। बाद में वह मुख्य भूमिका में आई। चंद्रावल, जर जोरू और जमीन, लाडो बसंती, गुलाबो, छोटी साली और के सूफने का जिक्र आदि फिल्में की। रेखा ने बताया कि उसके पिता पुलिस में थे और छह बहनों और एक भाई के परिवार में उस पर पिता का साया महज डेढ़ साल की उम्र तक ही रहा। उसकी मां ने फिल्म में काम करने को लेकर उसकी भावनाओं का सम्मान किया। इसी प्रकार वह अपनी बेटियों पर भी विश्वास करती हैं और अपना रास्ता खुद तय करने में सक्षम मानती हैं। रेखा के मुताबिक बेटा और बेटी के बीच फर्क नहीं करना चाहिए। जब दामाद घर आएंगे तो वह खुद ही बेटे बन जाएंगे।

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