मिट्टी के इन कलाकारों की मिट्टी में बसती है जान

जागरण संवाददाता अंबाला कैंट के गांधी मैदान में चल रहा सरस मेला कारीगरों को जहां एक

By JagranEdited By: Publish:Sun, 24 Feb 2019 06:40 AM (IST) Updated:Sun, 24 Feb 2019 06:40 AM (IST)
मिट्टी के इन कलाकारों की मिट्टी में बसती है जान
मिट्टी के इन कलाकारों की मिट्टी में बसती है जान

जागरण संवाददाता, अंबाला: कैंट के गांधी मैदान में चल रहा सरस मेला कारीगरों को जहां एक मंच प्रदान कर रहा है, वहीं मिट्टी के कलाकारों की कलाकारी के लोग कायल हो रहे हैं। पलवल और मेवात से आए यह कलाकार अपनी कला से लोगों को हैरान कर रहे हैं, वहीं आजीविका का यह साधन उनको इतना पसंद है कि पीढि़यों से यह परंपरा निभा रहे हैं। खास है कि यह कलाकार मिट्टी के इस कारोबार को अब छोड़ना नहीं चाहते, जबकि उनकी ¨जदगी का यह हिस्सा बन चुका है।

पहले करते फैक्ट्रियों में काम, अब खुद का कारोबार

मेवात से आई माया देवी अपने परिवार के साथ यहां मिट्टी को मूर्त रूप देने का काम करती हैं। सिर्फ मूर्त रूप ही नहीं देती, अपितु मूर्तियों को मूर्त रूप देती हैं। इसके साथ ही अन्य सामान भी इस तरह से बनाती हैं एक तरह से यह जीवंत हो जाते हैं। माया देवी ने बताया कि शादी से पहले जगह-जगह मजदूरी का काम करती थी। इसके बाद जब उनकी शादी हुई, तो ससुराल में आकर यह कला सीखी। कुछ महिलाओं ने मिलकर आशा स्वयं सहायता ग्रुप बनाया, जिसमें कई महिलाओं ने अपना कामकाज शुरू किया। इसके बाद तो सभी की ¨जदगी ही बदल गई। अब सरस मेला जहां पर भी आयोजित किया जाता है, जहां वह अपना मिट्टी का बनाया हुआ सामान लेकर जाती हैं। साल भर में आठ से दस मेलों में भाग लेते हैं, जिसमें अच्छी खासी आमदनी भी होती है। इसके अलावा मेवात में भी मिट्टी के पुतलों सहित अन्य सजावटी सामान भी बनाते हैं। मेवात में स्थानीय स्तर पर भी इनकी डिमांड है, जबकि सरस मेले में भी अच्छी आमदनी हो जाती है। परिवार में चार बच्चे हैं, जो पढ़ रहे हैं, लेकिन बच्चे को मिट्टी नहीं किताबों से प्यार है।

मिट्टी के बर्तनों का कारोबार पांच पीढि़यों से कर रहे

पलवल के गांव खाकिया से आए डालचंद का परिवार पांच पीढि़यों से मिट्टी के बर्तनों का कारोबार कर रहा है। मिट्टी से इतना प्यार है कि कभी इसे छोड़ने के बारे में सोचा तक नहीं। वे यहां सरस मेले में अपनी बेटी कमलेश, जो बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा है और आईएएस बनने का सपना देखती है, के साथ आए हैं। बातचीत में डालचंद की बेटी कमलेश ने बताया कि पांच पीढि़यों से वे इस मिट्टी के साथ खेल रहे हैं। हर तरह का बर्तन मिट्टी से बना डालते हैं, जबकि सरस मेलों में मिट्टी के बने सामान की बिक्री अच्छी खासी हो जाती है। मिट्टी की बनी पानी की बोतलों का कुछ क्रेज अलग है, जबकि इस में यदि गर्म पानी भी डाल दिया जाता है, तो यह कुछ समय के बाद ठंडा हो जाता है। इसी तरह मिट्टी के तवे, पतीले, कटोरियां, कप आदि भी बनाते हैं। उन्होंने बताया कि गांव में जिस तरह से मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल पहले होता था, उसी तरह अब शहरी क्षेत्रों के लोग भी मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं।

chat bot
आपका साथी