1857 की क्रांति के किस्से तो सुनाए पर पठानकोट शहीद के परिजनों को भूला प्रशासन

उमेश भार्गव, अंबाला शहर : हरियाणा वीर एवं शहीदी दिवस पर जिलास्तरीय सम्मान समारोह में 185

By JagranEdited By: Publish:Mon, 24 Sep 2018 01:26 AM (IST) Updated:Mon, 24 Sep 2018 01:26 AM (IST)
1857 की क्रांति के किस्से तो सुनाए पर पठानकोट शहीद के परिजनों को भूला प्रशासन
1857 की क्रांति के किस्से तो सुनाए पर पठानकोट शहीद के परिजनों को भूला प्रशासन

उमेश भार्गव, अंबाला शहर : हरियाणा वीर एवं शहीदी दिवस पर जिलास्तरीय सम्मान समारोह में 1857 की क्रांति के किस्से तो खूब सुनाए गए लेकिन इसमें अंबाला के वीरों के योगदान को भूला दिया गया। अंबाला के किस-किस वीर ने कब-कब अपना बलिदान दिया और किस-किसने अपने प्राण मातृभूमि के लिए न्यौछावर कर दिए ऐसा एक भी वक्ता नहीं था जिसने इन वीरों के नाम तक गिनाए हों। इन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करना तो दूर की बात।

पंचायत भवन अंबाला शहर में आयोजित सम्मान समारोह में राव तुला राम, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और इतिहास के पन्नों पर अपने नाम दर्ज करा चुके वीर जवानों के नाम कई वक्ताओं ने गिनवाए। 1857 की लड़ाई मेरठ से नहीं बल्कि अंबाला से शुरू हुई यह बात भी बताई गई लेकिन आजाद भारत की आजादी को बनाए रखने में अमिट योगदान देने वाले अंबाला जिले के वीर शहीदों का एक भी किस्सा पूरे सम्मान समारोह में नहीं सुनाया गया। शायद किसी को इन अमर वीर जवानों के बारे में जानकारी ही नहीं थी। राजकीय विद्यालय सौंडा की अध्यापिका ज्योति ने शहीद राव तुलाराम की बहादुरी व 1857 की क्रांति में हरियाणा के योगदान पर विस्तृत चर्चा कर समारोह की इतिश्री कर दी। कार्यक्रम में विभिन्न शहीदों के परिवारों, स्वतंत्रता सैनानियों के परिवारों सहित कुल करीब 140 लोग शामिल हुए।

---------------

फोटो: 15

पाठनकोट के शहीद गुरसेवक के पिता बोले मुझे नहीं सम्मान समारोह की जानकारी

पठानकोट एयरबेस में हुए आतंकी हमले में पहली बार गरूड़ फोर्स का कमांडो शहीद हुआ। 5 गोलियां लगने पर नीचे गिरा था। एयरफोर्स की कमांडों ¨वग गरूड़ फोर्स का गुरसेवक पहला ऐसा कमांडो था, जिसने शहादत पाई है। अमूमन सेना के पैरा कमांडो, नेवी के मरीन कमांडो व एनएसजी के कमांडो ही आतंकियों से भिड़ते हैं, लेकिन बरसों बाद ऐसा हुआ है कि आतंकियों ने एयरबेस को निशाना बनाया है, इसलिए उनसे लड़ने के गरूड़ कमाडों स्पेशल ऑपरेशन पर तैनात किए गए। शहीद की शहादत को बेशक पूरे देश को गर्व है लेकिन इस सम्मान समारोह में उसके माता-पिता को न्यौता देना प्रशासन भूल गया। शहीद गुरसेवक के पिता सुच्चा ¨सह ने बताया कि उन्हें तो यह जानकारी ही नहीं है कि कोई सम्मान समारोह भी अंबाला में आज हुआ है। न ही किसी अधिकारी का उनके पास कोई फोन आया।

--------------------------

न कोई किस्सा न कहानी, बस कर दिया सम्मान समारोह

दो घंटे चले इस सम्मान समारोह में जिले के गांव गरनाला के वीर सपूत शहीद गुरसेवक और तेपलां के शहीद विक्रमजीत का नाम ही वक्ता ले पाए। लेकिन इन्होंने क्या किया इनका जिक्र भी कोई नहीं कर पाया। इन्होंने क्यों अपनी छाती पर गोली खाई और 1962 चीन की लड़ाई और 1971 की लड़ाई, कारगिल की लड़ाई में शहीद होने वाले अंबाला के शहीदों की शहादत का जिक्र किसी ने नहीं किया।

-----------------------

शहीदों के परिजनों से दैनिक जागरण साझा किया दर्द:

टीम जागरण ने सम्मान समारोह में पहुंचे शहीदों के परिजनों से जब उनका दर्द साझा किया तो कई वीर सूपतों की माता तो कई की धर्मपत्नी की आंखे भर आई। किसी को आज तक नौकरी नहीं मिली तो कोई पेट्रोल पंप और वादे के अनुसार जमीन देने की लड़ाई आज तक लड़ रहा है लेकिन इनकी कोई सुनने वाला नहीं है। टीम जागरण ने जब इन लोगों का दर्द बांटा तो इन्होंने कुछ इस तरह अपनी बात रखी:-

--------------------

फोटो: 10

एक ही मांग थी बेटे के नाम से जाना जाए स्कूल..

शहजादपुर के रमेशचंद व उनकी पत्नी शशी प्रभा ने बताया कि उनका बेटा निर्मल 2002 में शहीद हुआ था। नौकरी करने वाला तो कोई परिवार में था नहीं। बस मांग थी कि जिस स्कूल में पढ़ता था उसका नाम शहीद निर्मल ¨सह राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल शहजादपुर कर दिया जाए।

---------------

फोटो: 11

ईनाम में जमीन देने का किया था वादा

मखनामा नारायणगढ़ की बुजुर्ग गुरनाम कौर ने बताया कि उनके पति हरी ¨सह 1961 में शहीद हुए थे। उनकी शहादत पर इनाम के तौर पर उन्हें गंगानगर में जमीन देने का वादा किया गया था। लेकिन किसी ने जमीन नहीं दी। कोर्ट में लड़ रहे हैं। सरकार ने भी न कोई आर्थिक मदद दी न सहयोग किया। बेटा ¨पदर आज खेती कर परिवार को पाल रहा है।

---------------------

फोटो:12

पिलखनी से आई प्यार कौर ने बताया कि 1962 में चीन से लड़ाई में उनके पति बहादुर ¨सह शहीद हो गए थे। उस समय उनकी एक बेटी दो महीने और दूसरी दो साल की थी। प्यार कौर ने बताया कि सरकार ने एक रुपया भी नहीं दिया। अनपढ़ थी इसीलिए कुछ पता भी नहीं था।

------------------

स्टेडियम का नाम भी नहीं हुआ भाई के नाम..

फोटो: 13

प्रेम नगर उगाला से आए सुरजीत कुमार ने बताया कि उनका भाई सुख¨वद्र ¨सह वर्ष 2004 में शहीद हुआ था। न तो किसी को नौकरी मिली न कोई पेट्रोल पंप या गैस एजेंसी। स्टेडियम का नाम भी शहीद के नाम नहीं किया।

-------------

नौकरी मिली लेकिन पेट्रोल पंप व गैस एजेंसी का वादा नहीं पूरा

फोटो: 14

सुबरी से आए शहीद राकेश कुमार के परिजनों ने बताया कि गांव के स्कूल का नाम तो शहीद राकेश राजकीय उच्च विद्यालय सुबरी कर दिया गया लेकिन पेट्रोल-पंप और गैस एजेंसी का वादा पूरा नहीं किया। हालांकि उन्होंने माना कि परिवार के एक सदस्य को नौकरी भी सरकार ने दी है। राकेश 26 दिसंबर 2000 को आपरेशन रक्षक में शहीद हुए थे।

chat bot
आपका साथी