प्रदूषण से बढ़ी गला खराब, बुखार व खांसी जुकाम की समस्या

ठंड के साथ बढ़ता प्रदूषण गंभीर समस्या है। पर्यावरण दिन-ब-दिन खराब होता जा रहा है। आबोहवा लगातार जहरीली हो रही है। सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। राज्य में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। अधिकतर जगहों पर यह खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 30 Nov 2020 05:00 AM (IST) Updated:Mon, 30 Nov 2020 05:00 AM (IST)
प्रदूषण से बढ़ी गला खराब, बुखार व खांसी जुकाम की समस्या
प्रदूषण से बढ़ी गला खराब, बुखार व खांसी जुकाम की समस्या

फोटो : 5 और 6

-अस्पताल की ओपीडी में प्रतिदिन 300 मरीज पहुंच रहें हैं सर्दी जुकाम व गला खराब के -452 पर पहुंच गया था अंबाला का एक्यूआइ

जागरण संवाददाता, अंबाला :

ठंड के साथ बढ़ता प्रदूषण गंभीर समस्या है। पर्यावरण दिन-ब-दिन खराब होता जा रहा है। आबोहवा लगातार जहरीली हो रही है। सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। राज्य में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। अधिकतर जगहों पर यह खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। नवंबर की शुरूआत में अंबाला तो देश का सबसे प्रदूषित आबोहवा वाला शहर बन गया है। अंबाला की एक्यूआइ 452 पर पहुंच गया था। प्रदूषण के असर से बुखार, खांसी व जुकाम हो रहा है। रोजाना अस्पताल की ओपीडी में गला खराब, बुखार, खांसी, जुकाम के लगभग 300 मरीज पहुंच रहें हैं। प्रदूषण के चार प्रकार

जल प्रदूषण

वायु प्रदूषण,

भूमि प्रदूषण और

ध्वनि प्रदूषण। वायु प्रदूषण :

वायुमंडल में सभी प्रकार की गैसों की मात्रा निश्चित है। अन्य प्रदूषणों की तुलना में वायु प्रदूषण का प्रभाव तत्काल दिखाई पड़ता है। वायु में यदि जहरीली गैस घुली हो तो वह तुरंत ही अपना प्रभाव दिखाती है और आसपास के जीव-जंतुओं एवं मनुष्यों को बीमार करने में देर नहीं लगाती है। अंबाला इससे अछूता नहीं है। जल प्रदूषण

विकास के साथ जल प्रदूषण की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। औद्योगीकरण के कारण शहरीकरण की प्रवृत्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। जो पहले गांव हुआ हुआ करते थे, वे अब विभिन्न उद्योगों की स्थापना के बाद शहरों में तब्दील हो रहे हैं। कल कारखाने और फैक्ट्रियों से रोजाना प्रदूषण फैल रहे हैं। भूमि प्रदूषण :

निरंतर घटते वन से वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा घट रही है। इससे जीव-जंतुओं का भी संतुलन बिगड़ रहा है। पेड़, भूमि की ऊपरी परत को तेज वायु से उड़ने तथा पानी में बहने से बचाते हैं और भूमि उर्वर बनी रहती है। वनों की कटाई से प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है। प्रकृति के संतुलन में परिवर्तन, पर्यावरण प्रदूषण का प्रमुख कारण है।

ध्वनि प्रदूषण :

मानव सभ्यता के विकास के प्रारंभिक चरण में ध्वनि प्रदूषण गंभीर समस्या नहीं थी, परंतु मानव सभ्यता ज्यो-ज्यों विकसित होती गई और आधुनिक उपकरणों से लैस होती गई, त्यों-त्यों ध्वनि प्रदूषण की समस्या विकराल व गंभीर हो गई है। तेज आवाज से श्रवण शक्ति प्रभावित होती है, साथ ही रक्तचाप, हृदय रोग, सिर दर्द, अनिद्रा एवं मानसिक रोगों का भी कारण है।

वर्जन :

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प्रदूषण बच्चों के लिए काफी हानिकारक साबित हो रहा है। प्रदूषण व कोरोना के कारण घर के बाहर खेलना उनकी आंखों व स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है। कम से कम घर से बाहर निकले और प्रयास करें कि स्वच्छ वातावरण में ज्यादा समय व्यतीत करें।

डा. शैफाली गोयल, आयुर्वेद विशेषज्ञ छावनी

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