अंबाला में मुनाफे का सौदा बनी मशरूम की खेती
बदलते परिवेश में फसलों का विविधिकरण जोर पकड़ रहा है। किसान परंपरागत खेती में बदलाव करते हुए अब फलों फूलों सब्जियों दलहन तिलहन मशरूम इत्यादि की खेती की करने लगे हैं।
जागरण संवाददाता, अंबाला शहर : बदलते परिवेश में फसलों का विविधिकरण जोर पकड़ रहा है। किसान परंपरागत खेती में बदलाव करते हुए अब फलों, फूलों, सब्जियों, दलहन, तिलहन, मशरूम इत्यादि की खेती की करने लगे हैं। अब किसानों का प्रति एकड़ में अधिक उत्पादन के साथ-साथ प्रति एकड़ में आय की ओर भी रूझान बढ़ने लगा है। नगद फसलों की ओर किसानों को रूझान बढ़ रहा है, वहीं ऐसे कई किसान है जो अन्य किसानों के लिए उदाहरण बन कर उभरे है। इन्ही किसानों में गांव रज्जूमाजरा के युवा प्रगतिशील किसान गुरदेव व संदीप हैं। इनका कहना है कि मशरूम की फार्मिंग करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
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इस तरह से शुरू किया काम
किसान गुरदेव व संदीप द्वारा एमआइडीएच (मिशन फार इंटीग्रेटिड डेवलेपमें आफ हार्टीकल्चर) स्कीम का लाभ लेते मशरूम फार्मिंग की जा रही है। इसके लिये इन्होंने प्रोडक्शन यूनिट तथा कंपोस्ट यूनिट के लिये 20-20 लाख रुपये का ऋण इस स्कीम के माध्यम से लिया है, जिस पर उन्हें 16 लाख रुपये का अनुदान मिला है। उन्होंने बताया कि वे लगभग पिछले 11 सालों से मशरूम फार्मिंग कर रहे हैं। पहले वे किराये पर यूनिट लेकर राजपुरा, इस्माईलाबाद, डेराबस्सी में यह काम करते थे। अब उन्होंने गांव रज्जू माजरा में भी राधे मशरूम फार्म नाम से प्रोडक्शन तथा कम्पोस्ट यूनिट लगाई है। उन्होंने बताया कि प्रोडक्सन यूनिट पूरी तरह से एयरकंडीशन है। मशरूम की खेती के लिये यह जरूरी है कि आपको इसकी तकनीक और इसकी फार्मिंग के बारे में पूरी जानकारी हो, जिससे की आप मुनाफा कमा सकें।
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आधा एकड़ में खेती
किसानों ने बताया कि लगभग आधा एकड़ खेत में यह यूनिट स्थापित की है। यूनिट में एक बार में 12500 बैग रखने की व्यवस्था है और साल में 4 बार बैग रखे जाते हैं। एक बैग में 10 किलोग्राम कम्पोस्ट तथा बीज रखा जाता है, जिससे दो किलो मशरूम तैयार होती है। तैयार हुई मशरूम चंडीगढ़, अम्बाला, नेपाल, लखनऊ तक जाती है। यूनिट से ही खरीददार तैयार मशरूम ले जाते हैं। यूनिट में 5 रूम हैं, जिनमें 45 दिन में मशरूम तैयार हो जाती है और 3.5 से 4 क्विटल मशरूम प्रतिदिन तैयार होती है, जिसे 200 ग्राम की डिब्बी में पैक किया जाता है। यूनिट में 30 से अधिक अन्य लोगों को भी रोजगार दिया है। यूनिट से खर्चा निकालकर प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख रुपये की आमदन हो जाती है। बीज तैयार करने के लिये जो कल्चर आता है, वह इंग्लैंड और यूरोपीय देशों से आता है। उस कल्चर को लैब में गेहूं, बाजरा या ज्वार पर चढ़ाया जाता है और उसके बाद यह मशरूम का बीज तैयार होता है।
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तूड़ी और पराली से तैयार होती है कंपोस्ट
कंपोस्ट यूनिट में तूड़ी व पराली के द्वारा कंपोस्ट तैयार की जाती है जोकि आर्गेनिक खाद होती है। मशरूम के उत्पादन के बाद इस कंपोस्ट को किसान बिक्री भी कर सकते हैं या अपने खेत में डालकर उपजाऊ शक्ति भी बढ़ाई जा सकती है।
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यह कहते हैं बागवानी अधिकारी
जिला बागवानी अधिकारी डा. अजेश कुमार ने बताया कि किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। मशरूम की खेती के लिये यह आवश्यक है कि इसकी तकनीक और इसकी फार्मिंग की पूरी जानकारी किसान को होनी चाहिए। इसकी खेती के लिये यह आवश्यक है कि यूनिट के अंदर का तापमान मेनटेन रहे। मशरूम कम जमीन में ज्यादा पैसा कमाने के लिये सबसे उत्तम खेती है।