कारगिल में दुश्मनों को मिट्टी में मिला मनजीत सिंह ने पाई थी शहादत
- कारगिल युद्ध में शहीद मनजीत सिंह ने छाती पर गोली खाई थी फिर भी हिमत नहीं हारी और मरते दम तक दुश्मनों से लोहा लिया। वे कारगिल में प्रदेश के पहले शहीद थे।
- छाती पर खाई थी गोली, फिर भी हिम्मत नहीं हारी, पिता ने कहा था - शहादत पर है गर्व
- गांव का प्रवेश द्वार है शहीद के नाम पर, स्वजनों को सरकार ने दी थी गैस एजेंसी
संवाद सहयोगी, मुलाना : कारगिल में जब दुश्मनों ने षड्यंत्र कर भारत का एक हिस्सा हड़पने की कोशिश की, तो देश के जवानों ने अपना खून और जान देकर इसकी रक्षा की। अंबाला के मुलाना हलका के गांव कांसापुर के मनजीत सिंह ने इस युद्ध में साढ़े 18 साल की आयु में ही देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। उनके बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। शहीद की यादें आज भी गांव में हैं, जबकि स्वजनों का कहना है कि मनजीत की शहादत पर गर्व है। परिवार में जो युवा हैं, उनको भी सेना में भेजेंगे। सरकार ने शहीद के परिवार को आर्थिक मदद दी, वहीं एक गैस एजेंसी भी अलाट की।
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कारगिल में प्रदेश के पहले शहीद हैं मनजीत सिंह
कारगिल युद्ध में प्रदेश से पहले शहीद मनजीत सिंह हुए थे। बराड़ा के गांव कांसापुर में पैदा हुए मनजीत सिंह सन 1998 में आठ-सिख रेजीमेंट अल्फा कंपनी में भर्ती हुए। डेढ़ वर्ष के बाद ही पाकिस्तान ने हमला बोल दिया और मनजीत की ड्यूटी कारगिल में लगा दी गई। 7 जून 1999 को टाइगर हिल में दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए वे शहीद हो गए।
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17 वर्ष की आयु में भर्ती हुए थे
कारगिल युद्ध में सभी शहीदों में मनजीत सबसे कम उम्र के तथा हरियाणा के पहले सैनिक थे। करीब 17 वर्ष की आयु में सेना में भर्ती हुए थे और साढ़े अठारह वर्ष की आयु में शहीद हो गए। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई वाली सरकार ने उनके परिवार को द्वारका दिल्ली में एक फ्लैट तथा बराड़ा में गैस एजेंसी अलाट की। इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकार से 10 लाख रुपये भी दिए गए थे।
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यह बोले-शहीद के माता-पिता
शहीद मनजीत के पिता गुरचरण सिंह व मां सुरजीत कौर का कहना है कि उन्हें अपने बेटे मनजीत सिंह की शहादत पर नाज है। शहीद के भतीजों को पढ़ाया-लिखाया जा रहा है और उनको भी फौज में भेजेंगे।