परमात्मा जीवमात्र के नि:स्वार्थ मित्र हैं : कमल वशिष्ठ

सेक्टर नौ स्थित श्रीश्री सक्षम बिहारी परिवार एवं सखी मंडल की ओर से आयोजित श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह के सातवें दिन राय परिवार ने पूजन कराया।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 08 Dec 2019 06:20 AM (IST) Updated:Sun, 08 Dec 2019 06:20 AM (IST)
परमात्मा जीवमात्र के नि:स्वार्थ मित्र हैं : कमल वशिष्ठ
परमात्मा जीवमात्र के नि:स्वार्थ मित्र हैं : कमल वशिष्ठ

जागरण संवाददाता, अंबाला शहर : सेक्टर नौ स्थित श्रीश्री सक्षम बिहारी परिवार एवं सखी मंडल की ओर से आयोजित श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह के सातवें दिन राय परिवार ने पूजन कराया। भृगु ज्योतिष अनुसंधान संस्थान के अध्यक्ष पंडित अशोक शास्त्री के शिष्य पंडित कमल वशिष्ठ ने श्रीमद्भागवत की कथा में सुदामा का चरित्र सुनाया। उन्होंने कहा कि परमात्मा जीवमात्र के नि:स्वार्थ मित्र हैं। सुदामा के चरित्र में एक सार है।

जगत में परमात्मा को छोड़कर ऐसा अन्य कोई नहीं है, जो अपना सर्वस्व किसी को दे दे। यदि सेवा और स्तुति करनी ही है, तो भगवान की करो। मनुष्य जब ईश्वर से प्रेम करता है, तब ईश्वर जीव को भी ईश्वर बना देते हैं। जीव का सच्चा मित्र परमपिता ईश्वर ही है। सुदामा ने ईश्वर से निरपेक्ष प्रेम किया तो उन्होंने सुदामा को अपना लिया। अपने जैसा वैभवशाली भी बना दिया। सुदामापुरी भी द्वारिका की तरह समृद्ध बना दी।

भगवान तो उनके चरण कमल का स्पर्श करने वाले को अपना स्वरूप दे देते हैं, तो कुछ धन के दान का तो आश्चर्य ही क्या है। शारीरिक मिलन तुच्छ है, मन का मिलन दिव्य है। यदि धनी व्यक्ति दरिद्रों का हृदय से सम्मान दे तो आज भी सभी नगर द्वारिका से समृद्ध हो सकते हैं।

स्वामी ने कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि काम भाव से किया गया काम स्वर्ग तो दिलाता है, कितु मुक्ति नहीं दिलाता। निष्काम कर्म पाप को भगा देता है। मनुष्य का शरीर ही वह कुरुक्षेत्र है जहां निवृत्ति और प्रवृत्ति का युद्ध होता रहता है। इस शरीर रथ को जो श्रीकृष्ण के हाथों में दे देता है उसी की जीत होती है। कृष्ण कथा हमें अपने दोषों से भली भांति अवगत कराती है। कृष्ण कथा के श्रवण से हमें भजन करने की प्रेरणा मिलती है और वैसा होने पर हमारी इंद्रियां शुद्ध होती हैं। यशपाल शर्मा ने बताया की 8 दिसंबर दिन रविवार को शाम पांच से आठ बजे तक एक शाम ठाकुर के नाम होगी और उसके बाद भंडारे का आयोजन है।

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