ढैंचे की खेती करें किसान, बढ़ती है भूमि की उपजाऊ क्षमता : डा. नागपाल
संवाद सहयोगी बराड़ा प्रदेश भर में साठी धान की खेती से भूमि के नुकसान व भूजल के गिरते स्
संवाद सहयोगी, बराड़ा : प्रदेश भर में साठी धान की खेती से भूमि के नुकसान व भूजल के गिरते स्तर को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा भूजल परिक्षण अधिनियम 2009 को पिछले कई सालों से सख्ती से लागू किया गया है। कृषि विभाग ने किसानों को गेहूं कटाई के बाद साठी धान की जगह हरी खाद के लिए प्रति एकड़ 12 किलोग्राम ढांचे की बीज बिजाई कर जल साधनों के संरक्षण एवं भूमि को उपजाऊ शक्ति बढ़ावा देने की सलाह दी है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार राज्य के किसान पारंपरिक खेती के रूप में धान गेहूं का फसल चक्र अपना कर दोनों फसलों के बीच के समय में साठी धान की फसल उगाकर अतिरिक्त आय का साधन बनाते रहे हैं, लेकिन साठी धान की खेती से पानी की बर्बादी व भूमि के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। प्रदेश भर में जिस तरह तेजी से भूजल स्तर नीचे गिरता जा रहा है, यह चिता का विषय है। इसी बात के मद्देनजर पिछले कुछ वर्षों में हरियाणा सरकार ने साठी धान की खेती पर रोक लगा दी थी। 15 मई से पूर्व धान की नर्सरी तथा 15 जून से पूर्व धान की रोपाई पर हरियाणा भूमिगत जल परिक्षण अधिनियम 2009 के अधीन दंडनीय अपराध घोषित किया हुआ है। बढ़ती है भूमि की उपजाऊ क्षमता
ढैंचा फसल को हरी खाद के रूप में लेने से जमीन के स्वास्थ्य में जैविक, रासायनिक तथा भौतिक सुधार होते हैं। जलधारण की क्षमता बढ़ती है। बिजाई के 45-50 दिनों के बाद ढैंचा की पलटाई कर खेत में सड़ाने से नाइट्रोजन, पोटाश, गंधक, कैल्शियम, मैग्नीशियम, जस्ता, तांबा, लोहा आदि तमाम प्रकार के पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। ढैंचा फसल के बाद ली जाने वाली फसल का उत्पादन बढ़ जाता है। ढैंचा से जमीन की उर्वरा ताकत तो बढ़ती ही है, साथ ही जल संरक्षण और संर्वधन में भी फायदा मिलता है। फोटो नंबर :: 08
हरियाणा सरकार द्वारा ढैंचे का बीज 80 फीसद अनुदान पर उपलब्ध करवाया जा रहा है, जबकि किसान को बीस फीसद ही वहन करना पड़ता है। एक किसान अधिकतम 60 किलोग्राम (5 एकड़ का) बीज अनुदान पर प्राप्त कर सकता है। किसान द्वारा अपना मोबाइल नंबर दिया जाना भी अनिवार्य है।
- डा. गिरीश नागपाल, उपकृषि निदेशक, अंबाला