थाना की दहलीज पर आकर पीड़िताओं दुखड़ा सुनाकर मांगा इंसाफ
महिला थाना की दहलीज पर पीड़ित महिलाएं आनी शिकायत लेकर पहुंच रही है। इस दौरान महिलाएं फरियाद लगा पुलिस से इंसाफ मांग रही। पिछले पांच साल के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो करीब 795 महिलाओं ने महिला थाना की चौखट पर आकर इंसाफ मांगा है।
जागरण संवाददाता, अंबाला शहर : महिला थाना की दहलीज पर पीड़ित महिलाएं आनी शिकायत लेकर पहुंच रही है। इस दौरान महिलाएं फरियाद लगा पुलिस से इंसाफ मांग रही। पिछले पांच साल के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो करीब 795 महिलाओं ने महिला थाना की चौखट पर आकर इंसाफ मांगा है। ज्यादा मामले पति-पत्नी की तकरार व दहेज उत्पीड़न से जुड़े हैं। मगर पुलिस की तफ्तीश में तीस फीसदी मामले झूठे पाए गए है। इसके अलावा कुछ मामले छेड़छाड़, दुष्कर्म व पोक्सो एक्ट के हैं।
इस साल दर्ज हो चुके 95 केस
हालांकि महिला थाना में 2015 से 2020 तक कुल 700 केस दर्ज हुए हैं, वहीं इस साल जनवरी से अब तक 95 मामले दर्ज हो चुके। इनमें ज्यादातर मामले दहेज उत्पीड़न और पोक्सो एक्ट, मारपीट, छेड़छाड़ दर्ज हुए हैं। पुलिस के मुताबिक इनमें 26 मामले पेंडिग हैं जबकि बाकी सभी ट्रेस हो चुके हैं। पुलिस का मानना है जब मामले की तफ्तीश होती तब कई मामले झूठे भी पाए जाते हैं।
1091 की बजाय थाना में ज्यादा आ रही शिकायतें
महिला थाना पुलिस ने सहायता के लिए 1091 हेल्पनंबर जारी किया हुआ है। मगर इसके बाद भी ज्यादातर मामले थाना में आ रहे हैं और आरोपितों के खिलाफ केस दर्ज करवा रही है। इसके अलावा छेड़छाड़ के मामलों की भी संख्या बढ़ रही है। लेकिन पुलिस के सामने ज्यादा समस्या उस वक्त आती है जब 1091 पर आई शिकायत पर जो पता सही नहीं पाया जाता है। ऐसे में पुलिस को उस दौरान दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पिछले पांच साल का डाटा
साल मामले
2015 33
2016 107
2017 182
2018 144
2019 126
2020 142 ज्यादातर मामलों को सुलझा लिया
हमने ज्यादातर मामलों को सुलझा लिया है। ज्यादातर दोनों पक्षों में समझौता करवाने की कोशिश रहती है। बकायदा दोनों की काउंसिलिग की जाती है। लेकिन जब उनमें समझौता नहीं होता तो केस दर्ज कर दिया जाता है। उसके बाद मामला कोर्ट में चला जाता है। चाहे तो दोनों कोर्ट में जाकर भी अपनी सहमती का जिक्र कर सकते हैं। ऐसे में कोर्ट के ऊपर निर्भर रहता है वह फिर केस को किस तरह से लेता है। लेकिन इस मामले में दोनों पक्षों की सहमती बनेगी तभी समझौता हो सकता है।
-देवेंद्र कौर, एसएचओ।