Gujarat: हाई कोर्ट ने कहा, कोरोना के दौर में अवसाद गंभीर बीमारी बनकर उभरा; इंजीनियरिंग छात्र को दी राहत

Gujarat हाईकोर्ट ने कहा कि कोरोना संक्रमण के दौर में हर कोई अपने भविष्य और अपने स्वास्थ्य को लेकर आशंकित था। ऐसे में अवसाद का शिकार हो जाना सामान्य बात है। इन्हीं स्थितियों में छात्र पढ़ाई पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाया।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Thu, 02 Sep 2021 08:10 PM (IST) Updated:Thu, 02 Sep 2021 08:10 PM (IST)
Gujarat: हाई कोर्ट ने कहा, कोरोना के दौर में अवसाद गंभीर बीमारी बनकर उभरा; इंजीनियरिंग छात्र को दी राहत
हाईकोर्ट ने कहा, कोरोना के दौर में अवसाद गंभीर बीमारी बनकर उभरा। फाइल फोटो

अहमदाबाद, प्रेट्र। कोविड-19 महामारी के दौर में अवसाद एक गंभीर बीमारी बनकर उभरा है। इस पर गौर किया जाना चाहिए। यह टिप्पणी करते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने राज्य के एक सरकारी इंजीनियरिंग कालेज के छात्र का प्रवेश रद करने का फैसला रद कर दिया। यह छात्र कोरोना संक्रमण के दौर में अवसाद का शिकार हो गया था और उसे आत्महत्या करने के विचार लगातार आते थे। उसे अदालत के फैसले की प्रति गुरुवार को मिली है।सूरत के सरदार वल्लभभाई नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी ने अक्टूबर, 2020 में बीटेक के प्रथम वर्ष के एक छात्र का पंजीकरण इस आधार पर रद कर दिया, क्योंकि वह 25 क्रेडिट अंक हासिल करने में विफल रहा था। अगले सेमेस्टर के लिए प्रोन्नत किए जाने के लिए ये क्रेडिट अंक जरूरी थे। छात्र ने कालेज के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। कहा कि वह महीनों तक अवसाद की गंभीर स्थिति से जूझा है और इस दौरान उसे आत्महत्या करने के विचार भी आते रहे। ऐसा जनवरी, 2020 से लेकर जून, 2020 तक लगातार हुआ। उस समय देश में कोरोना वायरस का संक्रमण प्रभावी था जिसके चलते वह परीक्षा में शामिल नहीं हो पाया था।

हाई कोर्ट में जस्टिस एनवी अंजारिया ने अपने फैसले में कहा कि महामारी के दौर में इस तरह का मामला और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। ऐसे में याचिकाकर्ता छात्र का अवसाद का शिकार होना गंभीर लेकिन स्वाभाविक है। अवसाद को गंभीर बीमारी के तौर पर लेना चाहिए। पीठ ने कहा कि कोरोना संक्रमण के दौर में हर कोई अपने भविष्य और अपने स्वास्थ्य को लेकर आशंकित था। ऐसे में अवसाद का शिकार हो जाना सामान्य बात है। इन्हीं स्थितियों में छात्र पढ़ाई पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाया। छात्र द्वारा याचिका में कही गई बात सही प्रतीत होती है। उस पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं बनता। कोर्ट ने छात्र को पूरक परीक्षा देने का मौका दिए जाने का आदेश दिया है।

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