पैरालंपिक खेलों में सिल्वर मेडल जीत दुनिया पर छा गई Bhavina Patel, जानें क्या है उनकी दिली तमन्ना
गुजरात के मेहसाणा के एक छोटे से गांव की रहने वाली भाविना पटेल (Bhavina Patel) ने पैरालंपिक खेलों में भारत को सिल्वर मेडल जीतकर साबित कर दिया कि खेलों की दुनिया में वह परिचय की मोहताज नहीं हैं।
अहमदाबाद, जागरण संवाददाता। पैरालंपिक खेलों में भारत को सिल्वर मेडल दिलाने वाली भाविना पटेल उत्तर गुजरात के मेहसाणा के एक छोटे से गांव से निकली और दुनिया पर छा गई। भजन मंडल अहमदाबाद में कंप्यूटर की शिक्षा लेने आई भावना पटेल ने एक दिन कुछ बच्चों को टेबल टेनिस खेलते देखा और उसी दिन इस खेल को अपनाते हुए रोज 4 से 5 घंटे के प्रैक्टिस करने लगी। पैरालंपिक खेलों में इससे पहले दीपा मेहता ने वर्ष 2016 में पदक दिलाया था। भावना ने पदक पर निशाना लगाया उधर उन पर सरकार व संस्थान ने प्यार वो पैसों की बरसात कर दी। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने भाविना को 3 करोड़ रुपए देने की घोषणा की वही भारतीय टेबल टेनिस फेडरेशन में 31 लाख रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की है।
परिचय की मोहताज नहीं
भाविना पटेल उत्तर गुजरात के मेहसाणा जिले में बसे एक छोटे से गांव सुंढीया की रहने वाली है। हां जी खेलों की दुनिया में वह परिचय की मोहताज नहीं है टेबल टेनिस में स्वर्ण पदक नहीं जीत पाने का उन्हें गम जरूर है लेकिन उनके पिता हसमुख पटे कहते हैं की बेटी देश का नाम रोशन कर दिया हमारे लिए तो सिलवर भी गोल्ड मेडल जैसा ही है। हसमुख भाई ने जब बेटी से सिल्वर पदक जीतने के बाद बात की तो उसने बताया कि अभी डबल्स के मुकाबले बाकी है तथा उसमें वह गोल्ड मेडल जरूर लाएगी। उसकी मां निरंजना पटेल बताती है कि बेटी के रजत पदक जीतने से वह बहुत खुश हैं और गर्व से उनका व सिर ऊंचा हो गया।
हौंसले बुलंद हो तो कोई बाधा मुश्किल नहीं
पिता हसमुख पटेल गांव में एक छोटी सी दुकान चलाते हैं उन्होंने बताया कि जन्म के बाद भावना गिर गई जिसके चलते उसे पैरालिसिस हो गया वह चल नहीं पाई लेकिन आज उसने यह साबित कर दिया की हौंसले बुलंद हो तो कोई बाधा मुश्किल नहीं है। हसमुख भाई बताते हैं कि जब पिछले साल अचानक कोरोना महामारी के कारण सब कुछ बंद हो गया तो भी उनकी बेटी ने प्रैक्टिस करना नहीं छोड़ा और रोबोट के साथ प्रैक्टिस जारी रखी।
खेल के प्रति गजब का जज्बा
अंधजन मंडल अहमदाबाद के निदेशक डाक्टर भूषण पुनानी बताते हैं कि 2008 में वह यहां संस्था में कंप्यूटर सीखने के लिए आई थी संस्था परिसर में ही जब कुछ बच्चों को टेबल टेनिस खेलते देखा तो वह खेल को लेकर प्रेरित हुई। कंप्यूटर के साथ उसने यहां टेबल टेनिस का भी खूब प्रशिक्षण लिया इसके बाद वे पहली बार बेंगलुरु मैं खेलने गई जहां उनको जीत हासिल हुई। यही उनके लिए सबसे बड़ी प्रेरणा बनी। वह प्रतिदिन 4 से 5 घंटे प्रैक्टिस करते हैं उनकी सहयोगी सोनल पटेल बताती हैं कि भाविना में खेल के प्रति गजब का जज्बा है तथा अब तक वह 18 देशों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी है।
आज भी है ये तमन्ना
वर्ष 2010 में दिल्ली में हुए कामनवेल्थ गेम्स में जाने से पहले जब वे गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी टीम के साथ मिलने पहुंची तब उन्होंने उनकी हौंसला अफजाई की और सरकार की ओर से दिव्यांग खिलाड़ियों को हर संभव मदद उपलब्ध कराई। भाविना पटेल ने पैरालंपिक खेलों में भले पदक जीत लिया हो लेकिन आज भी उनकी दिली तमन्ना क्रिकेट के महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर से मिलने की है वह कहती हैं की मैं हमेशा सचिन से प्रेरित हुई हूं तथा उनकी हर बात उन्हें प्रेरणा देती हैं और आत्मविश्वास पैदा करती है।
भाविना को मिलेगी पदोन्नति
कर्मचारी राज्य बीमा निगम के क्षेत्रीय निदेशक राजेश कुमार ने कहां है कि भाविना ने देश वह उनकी संस्था का नाम रोशन किया है उन्हें संस्था में पदोन्नत कर सामाजिक सुरक्षा अधिकारी का पद दिया जा सकता है। गौतम ने बताया कि भारत लौटने पर उनका जोर-शोर से स्वागत किया जाएगा। भाविना हाल राज्य बीमा निगम में डिवीजन क्लर्क के पद पर कार्यरत थी उन्हें भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की एक विशेष परियोजना के तहत भर्ती किया गया था।