इरफान खान को लेकर इमोशनल हुए विक्की कौशल, कहा- 'उनकी जगह ‘सरदार उधम’ में काम करना मेरे लिए सम्मान की बात है'

जब हम ऐसे क्रांतिकारियों की कहानी बताते हैं तो किताबों के माध्यम से जो जानकारी होती हैं वह दर्शाते हैं लेकिन कोई बंदूक चलाने या बम फोड़ने से क्रांतिकारी नहीं बनता। वह अपनी सोच से क्रांतिकारी बनता है। शहीद भगत सिंह और सरदार उधम सिंह की विचारधारा काफी मिलती-जुलती थी।

By Priti KushwahaEdited By: Publish:Mon, 18 Oct 2021 01:19 PM (IST) Updated:Mon, 18 Oct 2021 01:19 PM (IST)
इरफान खान को लेकर इमोशनल हुए विक्की कौशल, कहा-  'उनकी जगह ‘सरदार उधम’ में काम करना मेरे लिए सम्मान की बात है'
Photo Credit : irrfan khan Vicky Kaushal Instagram Photo Screenshot

प्रियंका सिंह, मुंबई। अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हो चुकी फिल्म ‘सरदार उधम’ में विक्की कौशल क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह के किरदार में नजर आए हैं। इस फिल्म को लेकर विक्की कौशल से प्रियंका सिंह की बातचीत के अंश...

आप लगातार पीरियड ड्रामा का हिस्सा बन रहे हैं। एक ऐसे दौर को तैयार करना, जिसे देखा न हो, कितना मुश्किल होता है?

पीरियड ड्रामा फिल्मों में प्रोडक्शन टीम, निर्देशक और रिसर्च टीम पहले आती है। शूजित सरकार सर को सलाम करना होगा, उन्होंने इस फिल्म पर चार साल का प्री-प्रोडक्शन किया है। फिल्म को वास्तविक लोकेशन पर अलग-अलग देशों में जाकर शूट किया गया है। बतौर एक्टर पीरियड फिल्म करते वक्त अपनी भाषा पर बहुत ध्यान देना पड़ता है। कौन से शब्द उस वक्त इस्तेमाल नहीं होते थे। उस जमाने में पंजाबी, हिंदी, अंग्रेजी कैसे बोली जाती थी, इन पर ध्यान देना होता है। खैर, एक्शन सुनने के बाद किरदार के इमोशन पर ही ध्यान देना होता है।

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सरदार उधम सिंह के किरदार में शूजित सरकार पहले अभिनेता स्व. इरफान खान को लेना चाहते थे। उनके असमय निधन से आपको इस किरदार को करने का मौका मिला। क्या दबाव महसूस कर रहे थे?

दबाव से ज्यादा वह मेरे लिए सम्मान की बात थी। इरफान साहब का यूं चले जाना हर किसी के लिए दुखद था। वह मेरे पसंदीदा कलाकारों में से हैं। जब मुझे पता चला कि एक फिल्म जो उन्हें केंद्र में रखकर बनाई जा रही थी, उसमें मुझे मौका मिल रहा है, तो वह मेरे लिए सम्मान की बात होने के साथ ही एक बड़ी जिम्मेदारी भी थी। इरफान साहब जो इस किरदार में कर जाते, वह करना शायद मेरे लिए मुमकिन न हो। उनकी तरह ज्ञान और काबिलियत मुझमें नहीं है, लेकिन मैंने अपनी पूरी कोशिश की है। इस फिल्म के द्वारा मैं इरफान साहब को ट्रिब्यूट दे रहा हूं।

आपके पिता पंजाब से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में जलियांवाला बाग की कहानियों को आपने कितना करीब से महसूस किया?

मैंने उनकी कहानियों को दादी मां से सुना है। मेरी पैदाइश, परवरिश भले ही मुंबई में हुई है, लेकिन मेरा गांव पंजाब में ही है। जलियांवाला बाग से दो घंटे की दूरी पर गांव है। पिछले 33 साल में एक साल भी ऐसा नहीं रहा कि मैं अपने गांव न गया हूं। मेरे घर में जो आता है, उसे महसूस होता है कि वह मिनी पंजाब में है। उसे होशियारपुर में होने का एहसास होता है। घर में माता-पिता और मैं पंजाबी में ही बात करते हैं। खाना-पीना, रहन-सहन देखकर ऐसा नहीं लगेगा कि किसी बालीवुड एक्टर का घर है। सब कुछ बहुत साधारण, मध्यम आयवर्गीय परिवार जैसा है। इसका श्रेय माता-पिता को दूंगा कि उन्होंने हमें अपनी जड़ों से जोड़ रखा है।

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सरदार उधम सिंह की कोई एक खासियत, जिसे आज की पीढ़ी को अपनाने की जरूरत है?

जब हम ऐसे क्रांतिकारियों की कहानी बताते हैं, तो किताबों के माध्यम से जो जानकारी होती हैं वह दर्शाते हैं, लेकिन कोई बंदूक चलाने या बम फोड़ने से क्रांतिकारी नहीं बनता। वह अपनी सोच से क्रांतिकारी बनता है। शहीद भगत सिंह और सरदार उधम सिंह की विचारधारा काफी मिलती-जुलती थी। सरदार उधम सिंह क्रांतिकारी भगत सिंह से पांच साल छोटे थे, फिर भी उन्हें गुरु मानते थे। वह दोनों जो लड़ाई लड़ रहे थे, वह इंसानियत को लेकर भी थी कि दुनिया का हर इंसान समान है। भगत सिंह को 23 साल की उम्र में फांसी हुई थी। 20-21 साल की उम्र में उन्होंने जो बातें कहीं वो हमें आज भी याद हैं। उनकी सोच को जिंदा रखना और उसे युवाओं तक पहुंचाना बेहद जरूरी है।

हम साल भर अमृत महोत्सव मनाएंगे। आपके विचार से यह कितना जरूरी है कि इन फिल्मों के जरिए हर किसी को आजादी की अहमियत याद दिलाई जाए?

हमारी संस्कृति और इतिहास में इतनी अद्भुत कहानियां हैं, जिनमें से दस कहानियां भी हमने अब तक नहीं बताई हैं। यह वो दौर है कि जहां लोगों को अपने इतिहास और संस्कृति के बारे में जानने की जिज्ञासा है, मेकर्स भी उन कहानियों को लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं। साल 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ जो पहली आवाज उठी थी, वहां से लेकर आजाद होने तक एक लंबी लड़ाई लड़ी गई। कई गुमनाम नायकों की कहानियां अब सामने आ रही हैं। मैं खुश हूं कि ऐसी कहानियों का हिस्सा बन रहा हूं।

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आपकी फिल्म ‘द इम्मोर्टल अश्वत्थामा’ फिलहाल बंद है। इसके लिए आपने जो तैयारी की थी, क्या वह आगे किसी और फिल्म पर काम आएगी?

दरअसल, कोविड की वजह से बहुत सारी सीमाएं थीं, जिसकी वजह से फिल्म बनाना मुश्किल हो रहा था। हम सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं, जब हम बेफिक्र होकर इस फिल्म को शूट कर सकें। बतौर कलाकार मुझे नहीं लगता कि कोई भी अनुभव बेकार जाता है। चाहे इस फिल्म के लिए घुड़सवारी सीखी हो या तलवारबाजी। ये चीजें कहीं न कहीं काम तो आएंगी ही। यह सब उसी फिल्म में ही काम आएंगे।

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