'रश्मि रॉकेट' के लिए निर्देशक ने तापसी पन्नू को दिखाया था एक खास ऑडियो विजुअल, जानें इसके पीछे की पूरी कहानी...
स्पोर्ट्स मुझे बचपन से पसंद रहा है। इस मुकाम पर आकर खेल ने मेरी जिंदगी बदल दी है। मेरी दिनचर्या काफी बदल चुकी है। थैंक्स टू स्पोर्ट्स फॉर इन माय लाइफ। मेरे सुबह उठने के वक्त से लेकर सोने का समय सब खेल के अनुशासन ने चेंज कर दिया है।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। अभिनेत्री तापसी पन्नू खेल आधारित फिल्मों को लगातार वरीयता दे रही हैं। फिल्म 'सूरमा' में वह हॉकी खिलाड़ी की भूमिका में नजर आई। अब जी5 पर 15 अक्टूबर को रिलीज होने जा रही फिल्म 'रश्मि रॉकेट' में वह एथलीट की भूमिका में नजर आएंगी। यह फिल्म महिला खिलाड़ियों के जेंडर टेस्ट का मुद्दा उठाती है। इसके अलावा भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज की बायोपिक भी कर रही हैं। तापसी ने अपनी फिल्मों को लेकर बातचीत की :
मीनिंगफुल सिनेमा कहीं न कहीं आपकी पहचान बन रहा है?
मीनिंगफुल सिनेमा या कह लीजिए कि ऐसा सिनेमा जिसे देखकर आपको ऐसा न लगे कि दिमाग को बाहर छोड़कर आए तो मजा आए या फिर देखकर बाहर निकले और भूल गए। ऐसा वाला सिनेमा करना नहीं पसंद करती हूं मैं। मैं चाहती हूं कि कोई फिल्म करुं तो घर जाने के बाद लोग फिल्म को, मुझे याद रखें। थोड़ी देर उसे जेहन में रखें। बाद में लोगों के पास बहुत काम है भूल जाएंगे। पर थोड़ी देर तो उसके बारे में सोचे।
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खेल आधारित फिल्में आपकी जिंदगी में किस तरह का परिवर्तन लाई हैं?
स्पोर्ट्स मुझे बचपन से पसंद रहा है। इस मुकाम पर आकर खेल ने मेरी जिंदगी काफी बदल दी है। मेरी दिनचर्या काफी बदल चुकी है। थैंक्स टू स्पोर्ट्स फॉर इन माय लाइफ। मेरे सुबह उठने के वक्त से लेकर खाने और सोने का समय सब खेल के अनुशासन ने चेंज कर दिया है। यह सारा स्पोर्ट्स जो मैं फिल्मों के लिए सीख रही हूं उसने यह बदलाव किया है। यह वो समय नहीं है कि स्कूल या कॉलेज में खेल में भाग लेने की तैयारी हो रही है। यह फिल्मों में किरदार निभाने की वजह से खेल मेरी जिदंगी का बहुत अहम हिस्सा बन गया है। खेल ने मेरी दिनचर्या, खुद की बॉडी, मेरे सोचने के नजरिए में काफी चीजें बदल दी हैं।
आपने कहा था कि 'रश्मि रॉकेट' के लिए तमिल फिल्म निर्देशक नंदा पेरियासामी ने आपको एक ऑडियो विजुअल (एवी) दिखाया था। उसके पीछे की कहानी क्या है?
पता नहीं वो ऑडियो विजुअल उन्हें कहां से मिली। मैंने उनसे इस बारे में पूछा नहीं। जब वो मेरे पास ऑडियो विजुअल लेकर आए तो उसे देखकर मुझे बहुत शॉक लगा कि ऐसा होता है। क्योंकि मैंने कभी इसके बारे में नहीं सुना था। खुद मैं स्पोर्ट्स को पसंद करती हूं, उसे फॉलो करती हूं तो मुझे हैरानी हुई कि मुझे कैसे नहीं पता। इस वजह से मैंने काफी ऑनलाइन रिसर्च शुरू किया कि यह जेंडर टेस्ट कब से हो रहा है और अभी तक हो रहा है यह जानकर मैं काफी आश्चर्यचकित हुई थी। उस समय लगा कि यह मानवाधिकार और अपनी पहचान का मुद्दा है यह सिर्फ खेल का मुद्दा नहीं है। आपको कोई कैसे बता सकता है कि आप औरत है या नहीं। यह क्या बात हुई कि आपको औरत होने का सुबूत देना पड़ेगा। यह कुछ अटपटी सी बात लगी। तो मैंने सोचा कि यह मुद्दा उठाया जाए जिस पर कोई बात नहीं हुई है, जिनके साथ यह हुआ वो ही गुमनाम हो जाते हैं, क्योंकि हिम्मत नहीं होती सबमें बात करने की कि मेरा जेंडर टेस्ट फेल हो चुका है और मैं सबको साबित करके दिखाऊंगी कि मैं औरत हूं।
अपने देश में आपको इस तरह के मामले मिले?
काफी मामले हैं। कई मामले हैं जिसमें सुसाइड करने की कोशिश हुई है। कुछ मामलों में फाइड बैक हुआ है। कुछ मामलों में जेंडर टेस्ट फेल होने की वजह से उसे मर्द ही करार दे दिया। काफी अलग-अलग प्रभाव रहे हैं इस इस टेस्ट के उन लड़कियों पे मानसिक तौर पर। प्रोफेशनली तो बैन कर देते हैं। मानसिक तौर पर उनकी जिंदगी में क्या बदलाव आते हैं वो भी अलग-अलग हैं। यहां तक कि इस साल के जो टोक्यो ओलिंपिक्स हुए थे उसमें भी दो नमिबिया (Namibia) की खिलाड़ियों को जेंडर टेस्ट के चलते बैन कर दिया गया था। उन्हें जो सलाह दी जाती है कि अगर आपको औरतों की रेस में क्वालीफाई करना है या तो आप ऐसा इंजेक्शन ले लीजिए जो आपको टेस्टोस्टेरोन (testosterone) (यह प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला हार्मोन है जो शरीर की वृद्धि और विकास को प्रभावित करता है। पुरुषों और महिलाओं में टेस्टोस्टेरोन का स्तर अलग-अलग होता है) लेवल कम करें या फिर आप अपनी सर्जरी करा लीजिए ताकि आपका जो असंतुलन है वो ठीक हो पाए। एथलीट जो जिंदगी भर अपनी बॉडी का ध्यान रखते हुए इस फिटनेस लेवल पर पहुंचा है उसे बोला जाता है कि अपनी बॉडी के साथ थोड़ा छेड़छाड़ कीजिए। ताकि हमारे हिसाब से जो औरत है उस कैटेगरी में पहुंच सके। फिर भाग सकती है वरना उनको कहा जाता है कि आप मर्दों की रेस में भागिए।
आपने किसी एथलीट से मुलाकात भी की?
मैं किसी एक को फालो नहीं करना चाहती थी। क्योंकि वो एक इंसान के हिसाब से किरदार मुड़ जाता है। मैंने पढ़ा सबके बारे में। सबने कैसे इस मसले को लिया। उनके रिएक्शन को पढ़ा। उन्होंने बैन होने के बाद क्या किया इसके लिए इंडियन और इंटरनेशनल एथलीट दोनों के बारे में पढा़। पर किसी एक एथलीट से बात नहीं की वरना आपका झुकाव होने लग जाता है एक खास किरदार की तरफ। मैं नहीं चाहती थी कि किसी एक एथलीट पर यह फिल्म आधारित हो। यह बायोपिक नहीं है। बहुत सारी घटनाओं से प्रेरित होकर इन्हें कहानी में पिरोया गया है। यह जेनेरिक कहानी रहे काल्पनिक कहानी न रहें तो बेहतर है।
पहली बार ट्रैक पर दौड़ने का शूटिंग अनुभव कैसा रहा ?
शुरुआत में बहुत जोर का धक धक होता है दिल। मैंने स्कूल के बाद अब जाकर ट्रैक पर भागी हूं। बीच में तो सिर्फ ट्रेड मिल पर ही भागना होता था। शुरुआत में दिल धक धक होता था कि इतना हाई इंटेंसिटी स्पोर्ट्स है, बीच में मैं चोटिल भी हो चुकी थी तो मुझे वो दर्द पता है कि जब चोट लगती है तो क्या होता है इस खेल में। एक बार चोट लग जाए जो आप कुछ हफ्तों तक आप भागना भूल ही जाओ। कई बार महीनों तक। इतनी आसानी से रिकवरी नहीं होती। जब भी स्टार्टिंग ब्लॉक पर बैठती थी तो दिमाग में बस यही चलता कि भगवान न जाने नेशनल लाइन तक टच करते-करते इस बार कौन सी मसल दर्द करेगी। क्योंकि जब आप भाग रहे होते हो तो होश नहीं होता है कि कौन सी मसल को आप ज्यादा या कम इस्तेमाल कर रहे हो। वो हार्स पावर (शक्ति को मापने की इकाई) की तरह आप भागने में पूरी तरह जान लगा देते हो। फिनिश लाइन के बाद जब आप थोड़ा सा रिलैक्स करते हो तो अहसास होता है कि यह खिंच गया ज्यादा। शुरुआत में यह डर होता था कि आज क्या दर्द होने वाला है।
फिल्म में प्रेगनेंसी में खेलने का मुद्दा भी है...
वह थर्ड एक्ट है फिल्म का जिसे हमने जानबूझ कर ट्रेलर में नहीं दिखाया। हम चाहते थे कि जब जनता फिल्म देखे तो उसे ट्रेलर से आगे जाकर कुछ देखने का मौका मिले। एक्ट्रा सरप्राइज करें। वो भी एक अलग मुद्दा है। वो सिर्फ महिलाओं के साथ होता है। (हंसते हुए) सिर्फ महिलाएं ही गर्भवती हो सकती हैं। यह अपने आप में बड़ा मुद्दा है। रिलीज के बाद इसके बारे में बात करुंगी। यह किरदार मेरे लिए बहुत इमोशनल भी था लोगों को मेरा फिजिकल ट्रांसफार्मेशन देखकर लग रहा है कि फिजिकली यह मेरे लिए चैलेंजिंग था। फिजिकली चैलेंजिंग तो था उसे होमवर्क के तौर पर करके छोड़ दिया था। जब मैं फिल्म शूट करने आई तो वहां पर मेंटल चैलेंज स्टार्ट हुआ क्योंकि फिजिकली जो बॉडी बननी थी वो बन गई। ऐसा किरदार निभाना जिसे बोल दिया गया है कि तुम तो औरत ही नहीं हो। भरे बाजार में तुम्हें अपनी पहचान साबित करनी होगी कि तुम औरत हो। उसके बाद टैबू आते हैं कि प्रेग्नेंट होगी तो भाग पाएगी या नहीं। सही होगा या नहीं अलग ही बहस जारी हो जाती है, जिस पर काफी एथलीट बहस करते हैं। काफी ब्रांड उन्हें प्रेगनेंसी की वजह से अलग कर देते हैं। इस मुद्दे पर मैं रिलीज के बाद बाद करना चाहूंगी।
शारीरिक कायांतरण के लिए खाने में कुछ खास चीजों को मिस किया ?
दो चीजें जिन्हें मिस किया एक था छोला भटूरा दूसरा केक। बाकी कुछ ज्यादा मिस नहीं किया।
हार जीत तो परिणाम है कोशिश हमारा काम है। यह आपका टैग लाइन है फिल्म में। इंडस्ट्री में जब आई थी तब आपका सोच क्या थी ?
यह वाली फिलासफी थोड़ी सी कॉमन इसलिए भी है क्योंकि मैंने जिस तरह के विषय चुन करके रिस्क लिया है तब यही सोचा था कि ज्यादा से ज्यादा क्या होगा फेल हो जाएंगे पर लाइफ तो नहीं खत्म हो जाएगी। यहां बात नहीं बनी तो कुछ और काम कर लेंगे। यही सोचकर मैं रिस्क लेती हूं। हार जीत तो परिणाम है कोशिश हमारा काम है इसे मैं काफी हद तक फॉलो करती आई हूं। मैं इसलिए भी फॉलो कर रही थी जिस तरह और लोगों की कोशिशों से मुझे प्रेरणा मिली ऐसे ही क्या पता मेरी वजह से कुछ और लोगों को प्रेरणा मिले कि इसने किया तो एक बार हम भी कोशिश करके देखते हैं।