Bhonsle को रिलीज़ करने में क्यों लगे दो साल? मनोज वायपेयी ने बताई कहानी

26 साल के करियर में कई किरदारों को यादगार बनाने वाले मनोज बाजपेयी फिल्म निर्माण में भी सक्रिय हैं। कुछ दिन पहले ही उनकी फिल्म ‘भोंसले’ सोनी लिव पर रिलीज हुई है।

By Nazneen AhmedEdited By: Publish:Sun, 12 Jul 2020 02:40 PM (IST) Updated:Sun, 12 Jul 2020 02:47 PM (IST)
Bhonsle को रिलीज़ करने में क्यों लगे दो साल? मनोज वायपेयी ने बताई कहानी
Bhonsle को रिलीज़ करने में क्यों लगे दो साल? मनोज वायपेयी ने बताई कहानी

स्मिता श्रीवास्तव। 26 साल के करियर में कई किरदारों को यादगार बनाने वाले मनोज बाजपेयी फिल्म निर्माण में भी सक्रिय हैं। कुछ दिन पहले ही उनकी फिल्म ‘भोंसले’ सोनी लिव पर रिलीज हुई है। वो इस फिल्म के डायरेक्टर भी हैं। करियर, डिजिटल प्लेटफॉर्म की बढ़ती मांग और निर्माता बनने के पहलुओं पर उनसे बातचीत के अंश...

सवाल : करियर में आगे बढ़ने के लिए जिज्ञासु होना कितना जरूरी है?

जवाब : जिज्ञासा एक पहलू है जो आपको जीवन में आगे लेकर जाती है। बिना जिज्ञासा के आप किसी चीज को खोजते या कुछ नया सोचते नहीं हैं। यह बहुत अहम है। 

सवाल : ‘भोंसले’ की रिलीज में दो साल लग गए। क्या डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी फिल्में रिलीज करना मुश्किल है?

जवाब : ‘भोंसले’ दो साल के बाद इसलिए रिलीज हुई क्योंकि हमने फैसला लिया था कि इसे सभी प्रतिष्ठित फिल्म फेस्टिवल में लेकर जाएंगे, उसके बाद ही रिलीज करेंगे। मार्च-अप्रैल में इसे रिलीज करने की योजना थी लेकिन लॉकडाउन हो गया। फिर सोनी लिव की तरफ से अच्छा ऑफर आ गया। पहले लग रहा था कि ओटीटी प्लेटफॉर्म से इंडिपेंडेंट फिल्मों को सपोर्ट मिलेगा लेकिन अब मैं देख रहा हूं कि उनका झुकाव धीरे-धीरे दूसरी तरफ हो रहा है। इंडिपेंडेंट फिल्में उनकी प्राथमिकता सूची से हटती जा रही हैं। यह दुखद है।

सवाल : आपने बड़े निर्माताओं के साथ काम किया है। उनके अनुभव से क्या सीखने को मिला?

जवाब : मैं हमेशा से निर्माता के साथ संवेदनाएं, सहानुभूति, सहयोग रखता हूं। मैं उन्हें कभी अधर में नहीं छोड़ता। अपने नाम पर मार्केट से पैसे उठाना आसान काम नहीं है, क्योंकि लौटाना उन्हें ही है। 

सवाल : क्या वजह है कि आप बतौर निर्माता कॉमर्शियल फिल्मों की बजाय कंटेंट ओरिएंटेड सिनेमा को तवज्जो दे रहे हैं?

जवाब : मेरे कई निर्माता-निर्देशक दोस्त कहते हैं कि सिनेमा बिजनेस है। मेरे लिए सिनेमा कला का माध्यम है, उसके बाद यकीनन उसमें बिजनेस है। लेकिन मैं एक ही पहलू पर जोर नहीं देता, पूरी ईमानदारी से अपना जोर लगाता हूं। ये फिल्में कम बजट में बनती हैं, इसलिए फीस कम करनी पड़ती है, तो मैं फिल्म का सह-निर्माता भी बन जाता हूं। अहम बात यह है कि अच्छी कहानी मुझे बेहतर अभिनेता बनने में मदद करती है। इस तरह की कहानियां मुझे बहुत बल और प्रतिष्ठा देती हैं, जो मेरे लिए ज्यादा जरूरी है। 

सवाल : ‘भोंसले’ में डायलॉग बहुत कम हैं। इस तरह काम करने में किन बातों को ध्यान में रखना होता है?

जवाब : जब डायलॉग कम होते हैं, तो आपकी मेहनत और फोकस सब एक जगह केंद्रित होता है। ऐसे में उसकी तैयारी भी अलग होती है। तब एक्सप्रेशन पर मेहनत करनी होती है।

सवाल : अक्सर फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित फिल्में बॉक्स ऑफिस पर उतना बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाती हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म के आने से उनके प्रति नजरिया बदलेगा?

जवाब : हमारे लिए जरूरी है कि हम ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुंचें। ओटीटी प्लेटफॉर्म इसमें मदद कर रहा है। लोग देख रहे हैं और प्रशंसा भी कर रहे हैं। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ की रिलीज ने आठ साल पूरे किए। दर्शक इसे आज के दौर की ‘शोले’ कह रहे हैं। 

सवाल : नेपोटिज्म पर फिर से बहस छिड़ी है। इस पर आपका क्या कहना है?

जवाब : हमने तो अपनी तरफ से इस पर काफी बोल लिया। अब मौका आया है कि सजग फिल्म पत्रकार इस पर लिखना शुरू करें। निर्माता-निर्देशक के पास कलाकार चुनने का अधिकार है लेकिन आदर और सम्मान हम सभी के पास है।

सवाल : ‘सूरज पर मंगल भारी’ को भी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाने की तैयारी है?

जवाब : उसका प्लेटफॉर्म अलग है। जब सिनेमाघर खुलेंगे, वह फिल्म तब आएगी। यह कॉमेडी फिल्म है। जब दर्शक साथ बैठकर देखेंगे, तो उसका मजा ज्यादा आएगा।

सवाल : ‘सत्या’ क्राइम कल्ट फिल्म रही है। क्या वजह है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म क्राइम वल्र्ड को ज्यादा एक्सप्लोर कर रहा है?

जवाब : दर्शकों के पास आजादी है कि वे क्या देखें और क्या नहीं। ‘फैमिली मैन’ इंटेलिजेंस सेवाओं से जुड़े व्यक्ति के परिवार को लेकर ज्यादा बात करती है। ‘मेड इन हेवन’ में सिर्फ शादी की दुनिया को एक्सप्लोर किया था। ऐसे ही कई शोज हैं, यह आप पर निर्भर करता है कि आप कौन सा शो देखना चाह रहे हैं।

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