Betaal Review: 'घोस्ट स्टोरीज़' के बाद नेटफ्लिक्स की 'बेताल' ऐसी हॉरर सीरीज़, जो आपको बिलकुल नहीं डराती

Betaal Review यह नेटफ्लिक्स की दूसरी वेब सीरीज है जिसमें आप हॉरर के अलावा सब कुछ देख लेते हैं। अधपकी कहानी औसत एक्टिंग और बिना लॉजिक के सीन आपको बोर कर देते हैं।

By Rajat SinghEdited By: Publish:Mon, 25 May 2020 11:44 AM (IST) Updated:Mon, 25 May 2020 07:42 PM (IST)
Betaal Review: 'घोस्ट स्टोरीज़' के बाद नेटफ्लिक्स की 'बेताल' ऐसी हॉरर सीरीज़, जो आपको बिलकुल नहीं डराती
Betaal Review: 'घोस्ट स्टोरीज़' के बाद नेटफ्लिक्स की 'बेताल' ऐसी हॉरर सीरीज़, जो आपको बिलकुल नहीं डराती

 नई दिल्ली (रजत सिंह)। Betaal Review: नेटफ्लिक्स इस साल कई बड़े धमाके की कोशिश कर चुका है। लेकिन हर बार उसके हाथ दगी हुई गोली लग रही है। 'घोस्ट स्टोरीज़' के बाद नेटफ्लिक्स के लिए पैट्रिक ग्राहम नई हॉरर स्टोरी 'बेताल' लेकर आए हैं। उन्होंने तीन घंटे की फ़िल्म की जगह, करीब तीन घंटे की वेब सीरीज़ बनाई है। शाहरुख़ ख़ान के प्रोडक्शन हाउस तले बनी इस वेब सीरीज़ में विनित कुमार और अहाना कुमरा मुख्य भूमिका हैं। आइए जानते हैं कि यह 4 एपिसोड की वेब सीरीज़ डराने में कितना कामयाब रही...

कहानी

वेब सीरीज़ की कहानी एक आदिवासी गांव की है। जहां अजय मुदलावन नाम का कॉन्ट्रैक्टर हाइवे बना रहा है। लेकिन गांव वाले इसका विरोध करते हैं। एक पुराना टनल है, जिसे खोलकर हाइवे से जोड़ना है। इसके लिए मुदलावन पर दवाब है कि मुख्यमंत्री जल्द ही पूजा करने वाले हैं। वहीं, मुदलावन के दबाव पर बाज स्क्वाड नाम की स्पेशल फोर्स गांव को खाली कराने पहुंच जाती है। इस फोर्स की हेड हैं त्यागी। वहीं, टीम को लीड कर रहे हैं विक्रम सिरोही। 

फोर्स गांव खाली कराने के बाद जब टनल खोलने पहुंचती हैं, तो गांव की एक पुरानी महिला और कुछ आदिवासी बंदूक लेकर इसे रोकने के लिए खड़े हो जाते हैं। गांव वाले फोर्स और विक्रम को सावधान करते हैं कि टनल में शैतान है। लेकिन उन्हें नक्सली बताकर फोर्स हमला कर देती है। इसके बाद टनल को खोला जाता है। टनल को खोलते ही फोर्स के लिए दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। उसमें कुछ अजीब किस्म के शैतान निकलते हैं। त्यागी और आधी टीम उनका शिकार हो जाती है। अब क्या विक्रम सबको बचा पाएगा, यह जानने के लिए आपको वेब सीरीज़ देखनी होगी। 

क्या है ख़ास

वेब सीरीज़ में माहौल छोड़कर कुछ भी ख़ास नज़र नहीं आता है। सब कुछ औसत-औसत सा ही दिखाई देता है। चार एपिसोड की वेब सीरीज़ को पैट्रिक ग्राहम और सुहानी कनवर ने मिलकर लिखा है। वहीं, इसे पैट्रिक के साथ निखिल महाजन ने मिलकर निर्देशित किया है। पैट्रिक और उनकी टीम ने दोनों जगह ही औसत काम किया है। सबसे ख़ास जो लगता है, वह एक्शन और नाइट विजन। आपको देखकर ऐसा लगेगा कि कोई हॉलीवुड एक्शन फ़िल्म बनाई गई है। तकनीक के मामले में यह आपको ठीक लग सकती है।  

कहां रह गई कमी

'घउल' और 'घोस्ट स्टोरीज़' के बाद एक बार फिर नेटफ्लिक्स लोगों को डराने में असफल रहा है। वेब सीरीज़ में गिनकर दो से तीन ऐसे मौके आएंगे, जब आप डर जाएंगे। शायद डरेंगे नहीं, बल्कि आवाज़ और अचानक से आई तस्वीर से चौंक जाएंगे। पहली बार ऐसे जॉम्बी आए हैं, जो ब्रिटिश राज के हैं। वहीं, ख़ास बात है कि वह बंदूक और बम का सहारा ले रहे हैं। कुछ ऐसा है, जैसे कि 'पाइरेट्स ऑफ कैरेबियन' से उठा लिया गया हो। हालांकि, ख़ास बात है कि वह किसी को भी गोली से नहीं मारते हैं, बल्कि काट लेते हैं। काटने के बाद आदमी भी जॉम्बी बन जाता है। लेकिन वह सबके साथ ऐसा नहीं करते हैं, वह भूत की तरह लोगों के दिमाग पर भी कब्जा कर लेते हैं। समझ में नहीं आता है कि क्या बनाने की कोशिश की गई है। कहानी काफी बचकानी है, इसे आगे बढ़ाने के लिए एक्शन का सहारा लिया गया है। वहीं, स्पेशल फौज की एंट्री के प्लॉट को इतना कमजोर बनाया गया है कि आपको अजीब लगता है। मतलब एक सड़क बनाने वाला ठेकेदार पूरी फोर्स को आदेश देता है और फोर्स का लीडर मनाता भी है। 

एक्टिंग और किरदार भी काफी कमजोर लगते हैं। विनित कुमार पूरे वेब सीरीज़ के दौरान अपने चेहरे पर डर का भाव नहीं ला पाते हैं। वह बस अधूरे से परेशान लगते हैं। अहाना कुमरा को काफी कम सीन मिले हैं। अगर वह ना भी होती, तो वेब सीरीज़ की कहानी में कोई ख़ास असर नहीं पड़ता। उनके चहरे पर जले हुए का मैकअप किया गया है, लेकिन क्यों? पता नहीं। अहाना बिलकुल ही औसत लगी हैं। सुचित्रा पिल्लई भी त्यागी की भूमिका में कुछ ख़ास नहीं कर पाती हैं। आदिवासी पुनिया का किरदार मनर्जी ने निभाया है। पुनिया का किरदार काफी महत्वपूर्ण है, लेकिन कमाल की बात है कि पूरा गांव अलग भाषा में बात कर रहा होता है, तो पुनिया कानपुरिया टच लिए हुए भोजपुरी अवधी बोल रही है। कुल मिलाकर आपको बस जीतेंद्र जोशी को देखने में मजा आता है। 

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वेब सीरीज़ चार एपिसोड की है, फिर भी स्लो है। आप दूसरे एपिसोड पर आते-आते बोर करने लगती है। निर्देशक पैट्रिक ग्राहम अगले एपिसोड तक ले जाने लायक थ्रिलर भी क्रिएट नहीं कर पाते हैं।  ख़ास बात है कि इसके अगले सीज़न के लिए आखिर में प्लॉट छोड़ दिया गया है। लेकिन ऐसा नहीं लगता है कि लोग इसका इंतज़ार करेंगे। 

अंत में

हॉरर सीरीज़ की ख़ास बात है कि उसे देखकर डर लगना चाहिए। लेकिन इस वेब सीरीज़ में ऐसा होता ही नहीं है। घोस्ट स्टोरीज़ के बाद यह नेटफ्लिक्स की दूसरी वेब सीरीज है, जिसमें आप हॉरर के अलावा सब कुछ देख लेते हैं। अधपकी कहानी, औसत एक्टिंग और बिना लॉजिक के सीन आपको बोर कर देते हैं। वेब सीरीज़ में गोलियां खूब चलती हैं, लेकिन एक भी ऐसी नहीं है, जो सीधे दर्शकों के दिल में उतर जाए। 

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