Pagglait Film Review: मुद्दों में छुपी भावनाएं बयां करती है सान्या मल्होत्रा की 'पगलैट'
कुछ दिनों पहले रामप्रसाद की तेहरवीं फिल्म रिलीज हुई थी जो तेरहवीं में इकठ्ठा हुए पारिवारिक माहौल पर आधारित थी। नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म पगलैट भी उसी माहौल का चित्रण करती है लेकिन नए एंगल के साथ।
प्रियंका सिंह । कुछ दिनों पहले रामप्रसाद की तेहरवीं फिल्म रिलीज हुई थी, जो तेरहवीं में इकठ्ठा हुए पारिवारिक माहौल पर आधारित थी। नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म पगलैट भी उसी माहौल का चित्रण करती है, लेकिन नए एंगल के साथ। कहानी उत्तर प्रदेश में सेट की गई है। शिवेंद्र गिरी (आशुतोष राणा) के घर में तेरहवीं के लिए रिश्तेदार इकठ्ठा हो रहे हैं। उनके जवान बेटे आस्तिक की मौत हो गई है। बेटे की शादी को पांच महीने ही हुए थे। 27-28 साल की उम्र में आस्तिक की पत्नी संध्या (सान्या मल्होत्रा) विधवा हो गई, लेकिन उसे रोना नहीं आता है। वह फेसबुक पर अपनी बहन द्वारा जीजा की मौत पर पोस्ट किए गए 235 कमेंट्स को पढ़ती है।
उसे पेप्सी,चिप्स और गोलगप्पे खाने का मन करता है। संध्या के बर्ताव से उसके माता-पिता, दोस्त नाजिया जैदी (श्रुति शर्मा) हर कोई हैरान है। फिल्म की पटकथा और निर्देशन उमेश बिष्ट का है। एक घंटा 54 मिनट में उन्होंने कई मुद्दों को समेटने की कोशिश की है। यह भी एक खास वजह है कि बहुत कुछ कहने के चक्कर में कहानी उन भावनाओं को नहीं छू पाती है, जिसे वह महसूस करवाना चाहते थे। हालांकि उन्होंने उस सोच पर प्रहार करने की कोशिश की है, जिसमें समाज एक महिला के कम उम्र में विधवा हो जाने पर उसे या तो मांगलिक समझ लेता है या रूढ़िवादी बेड़ियों में जकड़ देता है। उससे इतर अगर वह बर्ताव करती है, तो लोग उसे असामान्य समझने लग जाते हैं।
तेरहवीं वाले घर के माहौल को उमेश ने बखूबी पकड़ा है। अस्थि विसर्जन पर घर के दामादों को साथ न ले जाने पर उनका नाराज होना, घर की महिलाओं का गॉसिप करना, पुरुषों का आंगन में बैठकर चाय पीते हुए तेरहवीं की तैयारियों में अपनी राय देना, राशन का हिसाब लगाना वास्तविकता के करीब लाता है। फिल्म के कुछ डायलॉग्स जिसमें रघुबीर यादव का किरदार घर की बहू की दूसरी शादी करने की बात करते हुए कहता है कि हम लोग इन मामलों में ओपन माइंडेड हैं। वहीं दूसरी तरफ उसी किरदार का घर में मुसलमान लड़की नाजिया के आ जाने पर बर्तन से लेकर खाना खाने के लिए बाहर भेजना खुले दिमाग की सोच की सच्चाई सामने लाता है।
रूढ़ीवादी घर में अंग्रेजी में एमए बहू के किरदार को सान्या मल्होत्रा ने बखूबी दर्शाया है। पांच महीने में पति की मौत का दुख क्यों नहीं है उसकी गहराई में निर्देशक नहीं गए हैं। आस्तिक की कोई तस्वीर भी उन्होंने फिल्म में नहीं दिखाई है। जवान बेटे की मौत का दुख और उसके न रहने से घर के लोन की चिंता में बेबस माता-पिता का किरदार शीबा चड्ढा और आशुतोष राणा ने निभाने की कोशिश की है, हालांकि वह भावुक नहीं करते। घर के बड़े भाई के किरदार में रघुबीर और परछुन के किरदार में आसिफ खान का काम सराहनीय है। आस्तिक की पूर्व प्रेमिका के छोटे से किरदार में शायोनी गुप्ता प्रभावित करती हैं।