Khuda Haafiz Review: एक्शन और इमोशन का कॉम्बिनेशन है विद्य़ुत जामवाल की 'खु़दा हाफ़िज', जानें- क्या है ख़ास

Khuda Haafiz Review डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई विद्युत जामवाल स्टारर खुदा हाफ़िज एक्शन और इमोशन का कॉम्बिनेशन है। यहां पढ़िए रिव्यू

By Rajat SinghEdited By: Publish:Fri, 14 Aug 2020 09:28 PM (IST) Updated:Fri, 14 Aug 2020 09:57 PM (IST)
Khuda Haafiz Review: एक्शन और इमोशन का कॉम्बिनेशन है विद्य़ुत जामवाल की 'खु़दा हाफ़िज', जानें- क्या है ख़ास
Khuda Haafiz Review: एक्शन और इमोशन का कॉम्बिनेशन है विद्य़ुत जामवाल की 'खु़दा हाफ़िज', जानें- क्या है ख़ास

नई दिल्ली, (रजत सिंह)। Khuda Haafiz Review: 'यारा' के बाद एक बार फिर एक्शन और इमोशन का कॉम्बिनेशन लेकर विद्युत जामवाल हाज़िर हैं। डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ फ़िल्म 'खुदा हाफ़िज'  के साथ निर्देशक फारुख़ काबिर ने एक अच्छा थ्रिलर काफी कोशिश की है। हालांकि, यह सिर्फ कोशिश बनकर रह जाती है। फ़िल्म में एक्शन और लोकेशन के अलावा काफी कुछ ऐसा है, जो आपको ख़टकता है। आइए जानते हैं...

कहानी 

फ़िल्म कहानी काफी सपाट है। समीर चौधरी की शादी नरगिस से होती है। समीर और नरगिस दोनों ही वर्किंग कपल हैं। लेकिन साल 2008 में आई मंदी उनकी लाइफ को पटरी से उतार देती है। इसके बाद दोनों एक एजेंट के सहारे नोमान (काल्पनिक अरब देश) जाने के अप्लाई करते हैं। हालांकि, होता यू हैं कि नरगिस का अप्रूवल पहले आ जाता है। ऐसे में नरगिस अकेले ही नोमान के लिए उड़ान भर देती है। कुछ दिनों के बाद समीर के पास एक फोन कॉल आता है, जिसमें नरगिस अपने आपको बुरी तरीके फंसा बताती है। इसके बाद अपनी पत्नी को खोज़ने और बचाने के लिए समीर नोमान पहुंच जाता है। क्या वह अपनी पत्नी को बचा पता है? और अगर हां, तो कैसे? यह जानने के लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी। 

क्या लगा ख़ास

- जैसा कि विद्युत जामवाल की हर फ़िल्मों में देखने को मिलता है, वह है एक्शन। एक बार फिर आपको विद्युत की बेहतरीन बॉडी और एक्शन सीन्स देखने को मिलेंगे। इस मामले में एक बार फिर विद्युत निराश नहीं करते हैं। लेकिन इसमें आपको 'कमांडो' के लेवल का एक्शन नहीं मिलेगा। 

- फ़िल्म की लोकशन और भाषा का ख्य़ाल रखा गया है। नोमान, जिस देश को कागज पर गढ़ा गया है, वह काफी हदतक रियल लगता है।  इससे पहले ऐसी लोकशन सलमान ख़ान की फ़िल्म 'टाइगर ज़िंदा हैं' और कई अन्य फ़िल्मों में देखने को मिल चुकी है। एक अलग भाषा को इस्तेमाल किया गया है, ऐसे में कई बार समझने के लिए सबटाइटल पढ़ने की जरूरत पड़ती है। लेकिन यह अज़ीब नहीं लगता है। हालांकि, जब वहां हिंदी बोलते हैं, तो वह हल्का-सा ख़टकता है। लोकेशन का स्क्रीन पर उतारने के लिए अच्छी सिनेमेटोग्राफी और एंडटिंग का इस्तेमाल किया गया है।

कहां रह गई कमी

- विद्युत जामवाल एक अच्छे एक्टर हैं। उनके एक्शन के अच्छे-खासे फैंस हैं, लेकिन इमोशनल सीन्स में वह सफ़ल नहीं हो पाते हैं। सिर्फ कांपने और ज़ोर-ज़ोर से सांस लेने से दुःख प्रकट नहीं होता है। वहीं, एक्ट्रेस शिवालिका ओबरॉय के हिस्से सिर्फ गानें और शुरुआत और अंत आया है। उनसे ज़्यादा स्क्रीन पर अन्नू कपूर, शिव पंडित और आहना कुमरा नज़र आते हैं। हालांकि, अन्नू कपूर , शिव पंडित और आहना अपने किरदार में ठीक-ठाक लगते हैं।

- फारुख़ कबीर की कोशिश काम नहीं आती है। कई छोटी-छोटी चीजें अजीब लगती हैं। जैसे दुनिया के सबसे बड़े तस्करों के पास पूरी फौज़ है, लेकिन चालने के लिए सिर्फ एक पिस्टल। वहीं, नोमान में जैसे सबको चकमा देता है, वह ख़टकता है। क्योंकि वह कोई एजेंट या ट्रेंड ऑफ़िसर नहीं है। इसके अलावा आपको कई सीन्स मिलेंगे, जहां इन वज़हों से आपका फ्लो टूटता है। 

- कबीर ने ही कहानी भी लिखी है। कहानी किसी एक्शन हीरो को ध्यान में रख लिखी गई है। इसे देखकर नेटफ्लिक्स की फ़िल्म एक्सट्रेक्शन की याद आती है। एक लाइन की स्टोरी है और सिर्फ एक्शन। लेकिन ख़ुदा हाफ़िज का एक्शन एक्सट्रेक्शन के लेवल का नहीं है। 

अंत में

अगर आप विद्युत जामवाल के फैन हैं और एक्शन फ़िल्में देखना पसंद करते हैं, तो इसे देख सकते हैं। फ़िल्मों को देखने का सिर्फ एक ही कारण हो सकता है, वह है एक्शन।  

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