Choked Movie Review: कैसी रही नोटबंदी पर अनुराग कश्यप की सिनेमाई टिप्पणी, पढ़ें पूरा रिव्यू
Choked Movie Review चोक्ड अनुराग की बहुत महान रचना तो नहीं है मगर बेहतरीन परफॉर्मेंसेज़ वाली फ़िल्म दर्शक को बांधे रखती है।
नई दिल्ली (मनोज वशिष्ठ)। राजनीति हिंदी सिनेमा का पसंदीदा विषय रहा है। कई दिग्गज फ़िल्मकारों ने राजनीति को केंद्र में रखकर कई अहम फ़िल्में बनायी हैं। समाज पर सियासी घटनाओं के असर का आर्ट और कमर्शियल सिनेमा अपने-अपने ढंग से इस्तेमाल करते रहे हैं।
सोशल मीडिया में मौजूदा राजनीति को लेकर मुखर अनुराग कश्यप ने इस बार पिछले कुछ सालों में हुई सबसे अहम सियासी घटनाओं में से एक नोटबंदी को अपनी फ़िल्म 'चोक्ड- पैसा बोलता है' की कहानी का अहम भाग बनाया है। चोक्ड को इस घटना पर अनुराग की सधी हुई सिनेमाई टिप्पणी कहा जा सकता है।
'चोक्ड' नेटफ्लिक्स पर शुक्रवार को 12.30 बजे रिलीज़ कर दी गयी है। यह फ़िल्म अनुराग की पिछली कुछ फ़िल्मों की तरह बहुत महान रचना तो नहीं, मगर बेहतरीन राइटिंग और परफॉर्मेंसेज़ की वजह से दर्शक को बांधे रखती है।
स्टोरी
कहानी मुंबई में रहने वाले एक मिडिल क्लास परिवार की है। बीवी सरिता बैंक में काम करती है। पति सुशांत बेरोज़गार है। दोनों का एक बच्चा है। सुशांत नौकरी छोड़ चुका है। दोस्त के साथ इंश्योरेंस पॉलिसी बेचने का काम करता है। आमदनी का कोई स्थायी ज़रिया नहीं है। घर चलाने की ज़िम्मेदारी सरिता पर आ गयी है। इसको लेकर दोनों के बीच अक्सर झगड़े होते हैं। सुशांत म्यूज़िक इंडस्ट्री में करियर बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है।
सरिता कभी गाना गाती थी, मगर अब गाने की बात आते ही उसकी तबीयत बिगड़ जाती है। इसके पीछे एक घटना है, जो कहानी में सस्पेंस की छौंक लगाने में मदद करती है। इस घटना के फ्लैशेज़ बीच-बीच में आते रहते हैं। पति-पत्नी की इस कहानी में पहला ट्विस्ट तब आता है, जब एक रात सरिता की किचेन की नाली जाम हो जाती है।
जाली हटाने पर गंदे पानी के साथ प्लास्टिक में लिपटी पांच सौ और हज़ार के नोटों की गड्डियां बाहर आने लगती हैं। सरिता इसे मां लक्ष्मी की कृपा मानकर रख लेती है। यह सिलसिला हर रात चलता है। सरिता किसी से कोई ज़िक्र नहीं करती और इन पैसों को अपने पति का कर्ज़ चुकाने में ख़र्च करती है। अपना जीवन-स्तर सुधारती है।
फिर अचानक नोटबंदी का एलान हो जाता है। पांच सौ और हज़ार के पुराने नोट बंद हो जाते है। यह 'चोक्ड' का दूसरा टर्निंग प्वाइंट है। इसके बाद सरिता की ज़िंदगी कैसे बदलती है? वो पैसों का क्या करती है? नाली में प्लास्टिक में रोल बनाकर नोटों की गड्डियां कौन डालता है? ऐसे ही सवालों के साथ कहानी आगे बढ़ती है।
स्क्रीनप्ले
'चोक्ड- पैसा बोलता है' की आत्मा इसकी राइटिंग है। लेखक निहित भावे का स्क्रीनप्ले और डायलॉग मिडिल क्लास परिवार में पति-पत्नी के रिश्तों, तानों और अपेक्षाओं को कामयाबी के साथ पर्दे पर लेकर आता है। वहीं, सरिता के किरदार के ज़रिए कहानी में सस्पेंस कोशेंट को बनाये रखता है।
'चोक्ड' में नोटबंदी के बाद के घटनाक्रम को असरदार ढंग से दिखाया है। कई ऐसी छोटी-छोटी घटनाओं को शामिल किया गया है, जिनके बारे में उस दौरान सुना या पढ़ा होगा। मसलन, नये नोट के साथ सेल्फी लेने का चस्का। पहली बार नया नोट मिलने पर उसमें चिप ढूंढना।
बैंकों के बाहर लम्बी लाइनें। बैंक कर्मियों के ऊपर जनता का दबाव। नोट बदलने के लिए लोगों की व्यग्रता। वहीं पति-पत्नी के बीच संवादों के ज़रिए दिलचस्प राजनीतिक कटाक्ष भी शामिल किये गये हैं। हालांकि लेखक ने इसे लिखने में संतुलन बनाकर रखा है।
देश की राजनीति को लेकर आम जनमानस की सोच को भी दृश्यों के ज़रिए दिखाने की कोशिश की गयी है।संवादों में मराठी और मलयालम भाषाओं का इस्तेमाल सबटाइटल्स के साथ किया गया है, ताकि किरदारों की बातचीत वास्तविकता के नज़दीक लगे।
एक्टिंग
फ़िल्म में सरिता के किरदार में संयमी खेर हैं। संयमी पहली बार मिडिल क्लास फैमिली की बीवी के रोल में नज़र आयी हैं। संयमी ने मिडिल क्लास कामकाजी महिला के किरदार को पर्दे पर जी भर जीया है। उन्हें अपने किरदार के ज़रिए अपनी अभिनय क्षमता दिखाने का जो मौक़ा मिला, उसका भरपूर इस्तेमाल किया।
संयमी ने ओमप्रकाश मेहरा की फ़िल्म मिर्ज़्या से बॉलीवुड में डेब्यू किया था, जो फ्लॉप रही थी। इससे पहले सयंमी हॉटस्टार की वेब सीरीज़ स्पेशल ऑप्स में नज़र आयी थीं। चोक्ड में सरिता के रूप में संयमी के अभिनय का एक नया पक्ष देखने को मिलता है।
सुशांत के किरदार में मलयाली एक्टर रोशन मैथ्यू का यह डेब्यू है। सुशांत का अभिनय भी धाराप्रवाह है। अपने काम को लेकर वो कहीं असमंजस में नहीं दिखते। बाक़ी सहयोगी कलाकारों में अमृता सुभाष और राजश्री देशपांडे ने प्रभावित किया। दोनों बेहतरीन एक्ट्रेस हैं।
कैसी है फ़िल्म
नोटबंदी के ज़िक्र की वजह से जो लोग फ़िल्म से किसी निर्णायक राजनीतिक कमेंट या किसी विवाद की उम्मीद लगाये बैठे होंगे, उन्हें निराशा होगी। अनुराग और निहित ने कोई तल्ख़ राजनीतिक टिप्पणी किये बिना सांकेतिक दृश्यों के माध्यम से इस सियासी घटना के विभिन्न पहलुओं को कहानी में पिरोकर दिखाया है।
अनुराग की फ़िल्मों में भाषा से कई लोगों को शिकायत रहती है। चोक्ड की भाषा संतुलित और व्यवहारिक है। वैसे भी चोक्ड की कहानी मिडिल क्लास कपल की है तो फ़िल्म में उसका अधिक स्कोप भी नहीं था।
कलाकार- संयमी खेर, रोशन मैथ्यू, अमृता सुभाष, राजश्री देशपांडे आदि।
निर्देशक- अनुराग कश्यप
निर्माता- नेटफ्लिक्स
वर्डिक्ट- *** (3 स्टार)
ट्रेलर नीचे देख सकते हैं-