World Environment Day 2021: मौजूदा हालत को देखते हुए अर्जुन कपूर ने कहा- 'न संभले तो मास्क से पीछा नहीं छूटेगा...'

पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली अभिनेत्री दीया मिर्जा किसी के जन्मदिन पर उन्हें कोई तोहफा देने की बजाय उनके नाम का पौधा लगाती हैं। वह कहती हैं कि मैं कंजूस नहीं हूं न ही अपने पैसे बचा रही हूं। मैं पर्यावरण को बचा रही हैं।

By Priti KushwahaEdited By: Publish:Sat, 05 Jun 2021 03:00 PM (IST) Updated:Sat, 05 Jun 2021 03:00 PM (IST)
World Environment Day 2021: मौजूदा हालत को देखते हुए अर्जुन कपूर ने कहा- 'न संभले तो मास्क से पीछा नहीं छूटेगा...'
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मुंबई, प्रियंका सिंह, दीपेश पांडेय। संपूर्ण मानवता का अस्तित्व प्रकृति पर ही निर्भर है। कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी, असंतुलित होता मौसम, बढ़ते प्रदूषण की वजह से बीमारियों का खतरा एक अलार्म की तरह है कि जीवनोपयोगी ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने और पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए पर्यावरण संरक्षण बहुत जरूरी है। पर्यावरण की जिम्मेदारी किसी एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं हो सकती है। हिंदी सिनेमा में पर्यावरण की अहमियत, जलवायु परिवर्तन के असर और प्रकृति आपदाओं का विभत्स रूप दिखाती कड़वी हवा, अ फ्लाइंग जट, तुम मिले, भोपाल एक्सप्रेस, मेरे प्यारे पीएम, केदारनाथ, इरादा जैसी फिल्में बनी हैं। पांच जून को मनाए जाने वाले विश्व पर्यावरण दिवस की इस साल की थीम है पारिस्थितिकी तंत्र बहाली यानी पृथ्वी को दोबारा बेहतर व्यवस्था में लाना। पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पेड़ उगाने से लेकर शहर और ग्रामीण इलाकों को साफ और हरा-भरा रखने, नदियों की सफाई करने और पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने से हो सकती है। कई बॉलीवुड सितारे हैं, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करते हैं और जागरूकता फैलाते हैं।

 

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न संभले तो मास्क से पीछा नहीं छूटेगा 

अभिनेता अर्जुन कपूर प्लास्टिक के इस्तेमाल पर लगातार रोक लगाने की बात करते रहते हैं। वह कहते हैं कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की सबसे बड़ी समस्या है बढ़ती जनसंख्या और उनमें जागरूकता की कमी। प्लास्टिक की बोतलें पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाती हैं, लेकिन लोग लगातार उनका इस्तेमाल कर रहे हैं। मेटल की बोतलें घर लाएं, वह प्लास्टिक से बेहतर हैं। बतौर सेलिब्रेटी हम इस पर बात कर सकते हैं, लेकिन कुछ लोग यह सोचकर हमें अनसुना कर देते हैं कि उन्हें पर्यावरण से क्या लेना-देना। वह भूल जाते हैं कि प्राकृतिक आपदा किसी एक पर नहीं आती। इस वक्त पूरा विश्व कोरोना वायरस से जूझ रहा है। यह वास्तविक खतरा है। विश्व पर्यावरण दिवस हमें हर साल एक रिमांडर देता है कि यह लड़ाई एक दिन नहीं, बल्कि रोज सुबह उठकर लड़नी है। पर्यावरण जितना आपको दे रहा है, उतना उसे लौटाने की जिम्मेदारी हमारी भी है, वरना आने वाली पीढ़ी दिक्कत में आ जाएगी। जरुरत से ज्यादा गर्मी, ठंड, बरसात इशारा है कि पर्यावरण के साथ सब सही नहीं है। आज इसकी देखभाल करेंगे, तो हमारी आने वाली पीढ़ी एंज्वाय कर पाएगी, नहीं तो मास्क से पीछा कभी नहीं छूटेगा। शायद ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर घूमने की नौबत आ जाए। मैं तो लोगों को याद दिलाते रहता हूं आज से ही शुरुआत करें, देर नहीं हुई है। प्लास्टिक का इस्तेमाल अपने रोजमर्रा के जीवन में कम करें। पानी बर्बाद न करें। यह बहुत छोटी चीजें हैं, लेकिन हमारी आबादी बड़ी है, इसलिए बदलाव बड़ा ही होगा।

 

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जितनी हरियाली, उतना अच्छा 

निर्माता कुमार मंगत पाठक ने अभिनेता अजय देवगन के साथ मिलकर गुजरात में सोलर पावर प्रोजेक्ट लगाया है। बिजली को पैदा करने के लिए वह इको-फ्रेंडली तरीकों पर जोर देते हैं। निर्माता होने के बावजूद इन कामों को लेकर कुमार कहते हैं कि किसी न किसी को तो इस बारे में सोचना होगा। हमारे मित्र ने इसका आइडिया दिया था कि सोलर पावर प्रोजेक्ट पर्यावरण के लिए फायदेमंद है। फिर अजय देवगन भी जुड़े। जगह-जगह लोग अपने स्वार्थ के लिए पेड़ काट रहे हैं। पेड़-पौधे हमारी धरोहर हैं। मैंने मुंबई के पास बसे लोनावला में एक जगह खरीदी है। वहां दो साल बाद मैं घर बनाऊंगा। लेकिन उससे पहले मैंने वहां 120 पेड़ लगाने की योजना बना ली है, ताकि वहां का माहौल अच्छा हो जाए। पेड़ न सिर्फ वहां का ऑक्सीजन का लेवल बढ़ाएंगे, बल्कि उस जगह की हवा भी शुद्ध रखेंगे। पेड़ होंगे, तो पक्षी आएंगे। मैंने, मेरी पत्नी और बच्चों ने मिलकर लिस्ट बनाई है कि कौन-कौन से पेड़ लगाने हैं। आम, पीपल, बरगद, गुलमोहर के पेड़ हैं, जो छाया देंगे। उनकी सिंचाई के लिए पानी का इंतजाम भी किया जा रहा है। पूरा घर सोलर सिस्टम से चलाने की योजना है। मेरे मुंबई के घर में छोटे-छोटे 20-25 पौधे लगाए हुए हैं। जितना हरियाली आसपास हो उतना अच्छा है।

सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकते

साल 2017 में निर्देशिका अपर्णा सिंह ने इरादा फिल्म का निर्देशन किया था। फिल्म बठिंडा में थर्मल पावर प्लांट्स और फैक्ट्रीज की वजह से दुषित हवा, पानी और उसकी वजह होने वाली बीमारी के आसपास बुनी गई थी। अपर्णा कहती हैं कि लोग कमर्शियल फिल्में बनाना चाहते हैं, लेकिन मैं समाज को लेकर संवेदनशील हूं। जब मुझे पता चला था कि एक पूरी कैंसर ट्रेन चलती है, तो मैं अपनी टीम के साथ बठिंडा गई, वहां का हाल देखा तो लगा कि इस पर तो फिल्म बननी चाहिए। पर्यावरण को दुषित करने के दुष्परिणाम कितने भयावह हो सकते हैं, वह फिल्म में दिखाने की कोशिश की, क्योंकि सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। जब हम मालवा पहुंचे, तो कुछ ऐसे लोग देखे, जिनकी उम्र ज्यादा थी, लेकिन लंबाई कम थी। वहां के लाइन प्रोड्यूसर ने बताया कि यह नो पेन बेबी हैं यानी उन्हें दर्द नहीं होता है। 17-18 साल से ज्यादा वह जिंदा नहीं रह सकते हैं। मालवा इलाके में यूरेनियम डिपॉजिट बहुत है। वहां का पानी दुषित है। बठिंडा में बडी फैक्ट्रीज और ऑयल रिफाइनरीज हैं, उसकी वजह से प्रदुषण ज्यादा है। फिल्म में दिखाने के लिए बहुत कुछ था, लेकिन हमने इसकी वजह से होने वाले मैन मेड कैंसर पर फिल्म केंद्रित रखी। आज इम्यूनिटी पसंदीदा विषय है, लेकिन वह इम्यूनिटी हानिकारक केमिकल वाले आहार से नहीं मिलेगी, न ही इसे पैसों से खरीदा जा सकता है। इम्यूनिटी लंबी प्रक्रिया है, जो सही हवा, पानी और आहार से मिलेगी। इरादा फिल्म में बड़े कलाकार थे, उनके जुड़ने से फर्क पड़ा। लेकिन अगर पर्यावरण से जुड़े मुद्दों वाली फिल्में में बड़े स्टार नहीं भी हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि फिल्म न बनाएं। छोटे स्तर पर ही सही, लेकिन जरूरी कहानियां लोगों तक पहुंचाएं।

 

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आने वाली पीढ़ी को समझाएं महत्व 

अभिनेता जैकी श्रॉफ पर्यावरण के लिए काफी काम करते हैं। वह कहते हैं कि आने वाली पीढ़ी भी इसके बारे में सोचे, इसलिए जरूरी है कि अभी से उन्हें पर्यावरण की अहमियत समझाई जाए। मैं जब स्कूल में था, तब मुझे एक प्रोजेक्ट दिया गया था, जिसमें मेथी के दाने को मिट्टी में लगाकर उगाना था। वह बातें दिमाग में रह गईं। फिर घर पर पौधे लाने लगे, उनके बारे में पढ़ने लगे। घर में अगर जगह है तो दूब या दुर्वा लगाएं। यह जमीन ठंडी रखता है। पौधे में अपना एक प्राकृतिक इंटरनेट सिस्टम होता है, जिसे फंगल इंटरनेट कहते हैं। एक पौधा अगर बीमार होता है, तो वह इसके जरिए दूसरे पौधे से बात करता है और दूसरा पौधा उसकी कमियों को पूरा करता है। जब पौधे पर्यावरण को संतुलित करने के लिए आपस में एक-दूसरे का इतना ख्याल रखते हैं, तो हमारा भी फर्ज बनता है। अपने परिवार वालों के नाम पर पौधे लगाएं। मैंने अपनी मां के नाम पर साढ़े चार साल पहले कदम्ब नाम का पौधा लगाया है। बेटी के नाम पर आम का पेड़ और अपने नाम पर तुलसी का पौधा लगाया है।

 

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प्रकृति की जगह पैसा नहीं ले सकता

विभिन्न सामाजिक मुद्दों को लेकर मुखर रहने वाली अभिनेत्री रिचा चड्ढा पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी काफी सक्रिय रहती हैं। उनका कहना है कि आज के दौर में ज्यादातर लोग साल में सिर्फ एक दिन इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट डालकर पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी मान लेते हैं, लेकिन पर्यावरण के लिए हमें प्रतिदिन सजग रहने की जरूरत है। आज की युवा पीढ़ी पर्यावरण के महत्व को समझ चुकी है। वह जानती हैं कि आपके पास कितना भी पैसा हो, वह प्रकृति की जगह नहीं ले सकता है। सिर्फ इंटरनेट पर हैशटैग चलाने से कुछ नहीं होगा, अपने ग्रह को बचाने के लिए हमें बहुत ही क्रांतिकारी कदम उठाने की जरूरत है। मैं अपनी बालकनी पर खुद की सब्जियां वगैरह उगाती हूं, घर के कचरे का उपयोग मैं खाद बनाने में करती हूं और भूमिगत जल बचाने के लिए हम ऐसी मशीन का उपयोग करते हैं, जो हवा में उपस्थित नमी को पानी में बदलती है। उसी पानी का उपयोग अपने पौधे सींचने के लिए करती हूं।

 

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तोहफा देने की बजाय पौधा लगाएं

पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली अभिनेत्री दीया मिर्जा किसी के जन्मदिन पर उन्हें कोई तोहफा देने की बजाय उनके नाम का पौधा लगाती हैं। वह कहती हैं कि मैं कंजूस नहीं हूं, न ही अपने पैसे बचा रही हूं। मैं पर्यावरण को बचा रही हैं। मैं अपना दिमाग बेकार के तोहफे देने में खर्च नहीं करती हूं। मैं उनके नाम के 11 पौधे लगा देती हूं और उसका प्रमाण पत्र भेज देती हूं। जहां वह पौधे लगे होते हैं, वह खुद जाकर उसे बड़ा होते हुए देख सकते हैं। जब कभी वह पौधा पेड़ बन जाएगा, तो उसकी छांव में बैठ सकते हैं।

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