जब बिना हीरोइन ही शुरू हो गई थी 'राम तेरी गंगा मैली' की शूटिंग, रजा मुराद ने खोले फिल्म से जुड़े कई राज
राज कपूर ने डिंपल कपाडिय़ा और पद्मिनी कोल्हापुरी जैसी अभिनेत्रियों का भी स्क्रीन टेस्ट लिया लेकिन उन्हें कोई भी सही नहीं लगी। फिर उन्होंने किसी नई अभिनेत्री को कास्ट करने का फैसला किया। एक तरफ हीरोइन की तलाश जारी थी और दूसरी तरफ शूटिंग भी शुरू कर दी थी।
दीपेश पांडेय, मुंबई। साल 1985 में रिलीज हुई राज कपूर निर्देशित फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' को हिंदी सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों में शुमार किया जाता है। इस फिल्म के निर्माण की प्रक्रिया बता रहे हैं फिल्म में भगवत चौधरी का किरदार निभाने वाले अभिनेता रजा मुराद...
साल 1982 में मैंने राज कपूर जी के साथ फिल्म 'प्रेम रोग' में काम किया था। उन्होंने जब मुझसे इस फिल्म के लिए संपर्क किया तब मैं 33 वर्ष का था, जबकि मुझे किरदार 55 वर्षीय व्यक्ति का निभाना था। इसलिए वह मेरा स्क्रीन टेस्ट लेना चाहते थे। स्क्रीन टेस्ट के लिए उन्होंने सेट पर बाकायदा धोती, कुर्ता, बनियान, विग और मूंछें मंगाकर रखी थीं। स्क्रीन टेस्ट के लिए जैसे ही मैं अपने किरदार के गेटअप में राज जी के सामने आया, उन्होंने मुझे गौर से देखा और कहा कि अब स्क्रीन टेस्ट की जरूरत नहीं है। आप किरदार के मुताबिक लग रहे हैं। मुझसे पहले इस किरदार के लिए अमरीश पुरी से संपर्क किया गया था। वह भी इस किरदार को निभाने के लिए तैयार भी थे, लेकिन उन्होंने फिल्म के लिए पांच लाख रुपये की फीस मांगी।
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राज साहब इतने पैसे देने के लिए तैयार नहीं थे, तब उन्होंने इस किरदार के लिए मुझसे संपर्क किया। शुरू में काफी दिन तक राज साहब को फिल्म के लिए उपयुक्त हीरोइन ही नहीं मिल पा रही थी। इसके लिए उन्होंने डिंपल कपाडिय़ा और पद्मिनी कोल्हापुरी जैसी अभिनेत्रियों का भी स्क्रीन टेस्ट लिया, लेकिन उन्हें कोई भी सही नहीं लगी। फिर उन्होंने किसी नई अभिनेत्री को फिल्म में कास्ट करने का फैसला किया। एक तरफ फिल्म के लिए हीरोइन की तलाश जारी थी और दूसरी तरफ उन्होंने फिल्म की शूटिंग भी शुरू कर दी थी। फिल्म की शूटिंग के सेट पर ही अलग-अलग लड़कियां गंगा के किरदार के लिए स्क्रीन टेस्ट देने आती रहती थी।
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फिल्म के एक सीन में मैं अपने साथ नरेन (राजीव कपूर) को लेकर दुर्गा पूजा पंडाल में जाता हूं, जिसमें नरेन और राधा (दिव्या राणा) की मुलाकात होती है। इस सीन के लिए कोलकाता का सेट लगाने के बजाय राज जी इसे मुंबई के शिवाजी पार्क के नजदीक स्थित बंगाल एसोसिएशन क्लब के एक वास्तविक दुर्गा पूजा पंडाल में शूट कर रहे थे, वहीं पर एक गोरी-चिट्टी और नीली आंखों वाली लड़की स्क्रीन टेस्ट के लिए आई। उस लड़की का मेकअप वगैरह करा कर सफेद कपड़ों में गंगा के किरदार के लिए स्क्रीन टेस्ट किया गया। लोगों से पता चला कि वह लड़की यास्मीन जोसेफ (मंदाकिनी) है और वह मेरठ से आई है।
उन्हें ही इस फिल्म में गंगा के किरदार के लिए चुना गया। फिल्म को कई अलग-अलग लोकेशन पर शूट किया गया था। फिल्म के क्लाइमेक्स सीन में पहले सारा राज खुलने के बाद राधा खुद को गोली मार लेती है और भगवत चौधरी को बहुत अफसोस होता है। यह पूरा सीन फिल्मा लिया गया था, लेकिन राज साहब को यह ठीक नहीं लग रहा था। फिर उन्होंने कुछ बदलाव करके दोबारा इस फिल्म का क्लाइमेक्स सीन शूट किया। जिसमें जहां गंगा अपना बेटा नरेन के हाथ में देकर वहां से भागने लगती है और नरेन भी उसके पीछे भागता है। इसी बीच भगवत गोली चलाता है जो गंगा को लग जाती है। इस सीन के इंटीरियर शॉट्स आर के स्टूडियो में और एक्सटीरियर पुणे के ग्वालियर पैलेस में शूट किए गए थे।
नरेन के कॉलेज टूर में जिन लोकेशंस को दिखाया गया है, वे सभी दृश्य कश्मीर में शूट किए गए थे। उस समय राज साहब की तबीयत ठीक नहीं रहती थी, ऊपर से पहाड़ों पर ऑक्सीजन की कमी से उन्हें चलने में भी समस्या होती थी। ऐसे में फिल्म की शूटिंग के दौरान उन्हें डोली में बैठा कर सेट तक लाया जाता था। एक सीन में सी एस दुबे द्वारा अभिनीत पंडित बनारस (वाराणसी) के घाट पर गंगा को छेड़ता है। इस सीन को बनारस में नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के वाई शहर में स्थित एक नदी के घाट पर शूट किया गया था। फिल्म का सुपरहिट गाना 'राम तेरी गंगा मैली हो गई...' को भी बनारस में नहीं, बल्कि आर के स्टूडियो में ही बनारस का सेट लगाकर शूट किया गया था।
राज जी खाने और खिलाने दोनों के बहुत शौकीन थे। उनकी फिल्मों के सेट पर विविध किस्म के व्यंजन रहते थे। उनका कहना था कि काम लेता हूं कसाई की तरह और खिलाता हूं जमाई की तरह। बहरहाल, इस फिल्म में मेरी परफॉर्मेंस देखने के बाद फिरोज खान जी ने रात के करीब दो बजे मुझे फोन किया और फिल्म में मेरे काम की तारीफ करते हुए मुझे 'जांबाज' ऑफर की थी।